होली के दिन रंग गुलाल, पकवान और मस्ती के अलावा जो एक चीज़ बेहद सामान्य होती है वह है भांग. देश के पूर्वी हिस्सों में होली और शिवरात्रि के दिन भांग का खूब जोर-शोर से इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन आखिर क्या वजह है कि एक ही पौधे के होने के बावजूद देश में गांजे पर तो प्रतिबंध लगा है वहीं भांग का इन दिनों में खुलेआम इस्तेमाल होता है?

दरअसल भांग केवल नशे का जरिया नहीं है, बल्कि इसका देश के लोगों के साथ एक भावनात्मक जुड़ाव भी है. भारत के प्राचीन वेद अथर्ववेद में गांजा के पौधे को पृथ्वी के पांच सबसे पवित्र पौधों में शुमार किया है. इसे एक ऐसे पौधे के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था जो बैचेनी दूर करता है, बुखार ठीक करने में मदद करता है और पाचन शक्ति को बेहतर करता है. आयुर्वेद और सुश्रुत संहिता में इस पौधे की कई औषधीय लाभ बताए गए हैं, केवल हिंदू ही नहीं बल्कि मध्यकालीन भारत में यूनानी सिस्टम में विश्वास करने वाले मुस्लिम भी गांजे को तंत्रिका तंत्र के रोगों की बेहतरी के लिए इस्तेमाल करते थे.

भांग को पहली बार 1000 BC के आसपास इस्तेमाल किया गया था और जल्द ही ये हिंदू संस्कृति का अभिन्न अंग बन गया. देश के कई साधु भांग का इस्तेमाल ध्यान लगाने के लिए और मोह माया से दूर एक Alternate Consciousness को पाने के लिए भी करते थे. कई सूफी-संत भी भांग का इस्तेमाल आध्यात्मिक चेतना को पाने के लिए करते थे.

भगवान शिव के साथ इसका जुड़ाव होने की वजह से देश के कई हिंदुओं का इसके साथ भावनात्मक जुड़ाव भी है. कई जगहों पर तो ये भी माना जाता है कि किसी से मिलने से पहले भांग ले जाना शुभ होता है

1894 में अपनी एक रिपोर्ट में अंग्रेजों ने देश के लोगों में इनकी दिलचस्पी और अहमियत पर काफी हैरानी जताई थी. 1961 में ड्रग्स पर हुई एक अंतराष्ट्रीय संधि के दौरान गांजे को खतरनाक ड्रग्स के साथ शामिल किया गया.

भारत ने इसका विरोध किया और कहा कि भारत में गांजे से कई सामाजिक और धार्मिक आस्थाएं जुड़ी हुई है और इस पर पूरी तरह से प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता. इस अंतराष्ट्रीय संधि में भारत की बात को माना गया और गांजे को गैरकानूनी भले ही करार दिया गया हो लेकिन भांग अब भी लीगल था.

एनडीपीएस ने इस पौधे के फूल और रेसिन पर तो प्रतिबंध लगा दिया लेकिन इसकी पत्तियों और बीज पर कोई प्रतिबंध नहीं था. हालांकि भारत को इस संधि में ढाई दशकों का समय दिया गया. इन 25 सालों में भारत को अपने यहां पनपने वाले खतरनाक ड्रग्स के अलावा इन पदार्थों पर भी लगाम कसनी थी. 1985 में भारत सरकार ने Narcotic Drugs and Psychtotropic Substances Act पास किया और इस एक्ट में भी भांग को प्रतिबंधित ड्र्ग्स की सूची से बाहर रखा और भारत में इसका इस्तेमाल बदस्तूर जारी रहा.

भांग दरअसल भारत के कई हिस्सों में रच बस चुका है और अगर इसे अवैध घोषित करने की कोशिश भी की जाती है, तब भी इसके उत्पादन या इसके इस्तेमाल करने वाले लोगों में कमी आने की संभावना नहीं है, क्योंकि भांग सदियों से भारत के आध्यात्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक समाज का हिस्सा रहा है.