छुक छुक करती ट्रेन पर तो हम बचपन से ही सफ़र करते आ रहे हैं. चाहे वो हर सीट से आती आलू-पूड़ी की ख़ुशबू हो या विंडो सीट के झगड़े हों या सहयात्रियों के क़िस्से. ये कुछ ऐसे अनुभव हैं जो हर भारतीय को हुए ही होंगे.
1. भीख मांगते एक बच्चे की पिटाई
Vanessa Rodrigues नामक एक शख़्स ने इंदौर से मुंबई जाते हुए एक घटना का ज़िक्र किया. ट्रेन में झाड़ू लगाती एक वृद्ध महिला पेसै मांगने आई. इसके बाद एक और बच्चा आया लेकिन वो असहाय होने का अभिनय कर रहा था. इस बच्चे के जाने के बाद एक पैसेंजर के जूते चोरी हो गये, वो और उसके साथ सफ़र करने वाले जूते ढूंढने में लगे. इसी सब के बीच एक और बच्चा आया झाड़ू लगाने और पैसे मांगने के लिए. जिस आदमी का जूता खोया था उसने अपने साथियों के साथ मिलकर बच्चे को बुरी तरह मारा, घसीटा, गाली-गलौच की. किसी ने भी उस बच्चे की मदद नहीं कि, Rodrigues ने भी नहीं.
2. गंतव्य स्टेशन पर उतर नहीं पाए और हुई भसड़
इमरान मिर्ज़ा ने अपना क़िस्सा सुनाते हुए लिखा कि वो दिल्ली से ग्वालियर जा रहा था. जिस गाड़ी से जाना था वो लेट हो गई और दूसरी ट्रेन लेनी पड़ी. टीटी से बात-चीत करके सीट मिल गई और नींद आ गई। जब आंख खुली तो ट्रेन स्लो हो रही थी, सहयात्री से पूछने पर पता चला कि ग्वालियर स्टेशन है. बैग लेकर तैयार तो हो गया लेकिन ट्रेन ने स्पीड पकड़ ली और तब पता चला कि ट्रेन ग्वालियर से निकल रही है. ट्रेन का अगला स्टॉप झांसी था, वहां उतरकर अगली ट्रेन ली गई और टीटी से ग्वालियर के टिकट के लिए बात की गई. टीटी ने बताया कि ट्रेन का ग्वालियर में स्टॉपेज नहीं है और आगरा का स्टॉप है. इससे बुरा क्या होगा भला, इमरान आगरा तक गया और वहां जाकर सबसे पहले नाश्ता किया.
3. Molestation का झूठा आरोप लगाया गया
माधव कुमार झा ने एक ऐसी कहानी शेयर की जो बहुत सारे सवाल करती है. दादाजी के दाह-संस्कार के बाद वो एर्णाकुलम एक्सप्रेस से अपने कॉलेज लौट रहे थे. रास्ते में एक महिला ने आरोप लगाया कि माधव ने उस महिला की बेटी को बाथरूम में स्टॉक कर रहा था. माधव ने बहुत बार कहा कि वो महिला अपनी बेटी को बुलाए और पहचान करने को बोले की क्या वो लड़का माधव ही था. महिला नहीं मानी और माधव को सुनाती रही. आख़िर में एक सहयात्री महिला ने धीरे से कहा कि वो लड़का तो सीट से उतरा ही नहीं. तब आरोप लगाने वाली महिला ने कहा कि उसकी बेटी ने बताया कि स्टॉक करने वाले लड़के का सिर मुंडा था. कुछ देर बाद एक और शख़्स वहां से गुज़रा जिसका सिर मुंडा था. महिला ने न माधव से माफ़ी मांगी और न ही सफ़ाई दी.
4. बगल में बैठे बूढ़े ने चला दिया पॉर्न वीडियो
Vaas Montenegro ने एक ऐसी कहानी शेयर की जो बेहद अजीब है. गर्मी की छुट्टियों में Vaas घर जा रहा था और उसके बगल में एक बूढ़ा व्यक्ति आकर बैठा. सामने की सीट पर फ़ैमिली बैठी थी. बूढ़ा उनसे बात करने की कोशिश करने लगा और उसकी नज़रें भी बेहद ख़राब थी. इसके बाद उसने पॉर्न वीडियो चला दिया और वॉल्यूम इतना हाई था कि आस-पास वालों को सुनाई दे. जब Vaas ने बंदे को घूरकर ग़ुस्से से देखा तो उसने कहा ‘तुम भी Enjoy कर सकते हो.’ Vaas और एक सहयात्री ने टीटी से बात करके उस आदमी को ट्रेन से निकलवा दिया.
5. फ़र्स्ट एसी में कन्फ़र्म टिकट होने के बाद भी सेकेंड एसी में करना पड़ा सफ़र
वेंकटरमन नागराजन ने एक क़िस्सा शेयर किया जिसमें रेलवे की भारी ग़लती की. नागराजन के माता-पिता के पास कन्फ़र्म एसी फ़र्स्ट क्लास टिकट थी. 2015 में लिखे गये इस क़िस्से के मुताबिक़, एसी फ़र्स्ट क्लास में सीट नंबर कोच के गेट पर लिखा होता है. तय दिन पर स्टेशन पहुंचने पर पता चला कि वेंकरमने के माता-पिता को अलग-अलग एसी 2 टियर कोच में सीट मिली. और पैसे फ़र्स्ट क्लास के ही लिए गए.
ये रहे ScoopWhoop हिंदी के लेखकों के बुरे अनुभव-
1. टीटी ने मेरी कन्फ़र्म सीट किसी और को दे दी.- माहीपाल
मैं एक बार दिल्ली से कोलकाता ‘दुरंतो ट्रेन’ से जा रहा था. जब मैं ‘पटना जंक्शन’ पर पहुंचा तो टीटी ने मेरी टिकिट किसी और को अलॉट कर दी, जबकि मेरे पास सियालदाह तक की कंफ़र्म टिकट थी. ये मेरे लिए अजीब वाक़या था
2. मेरी सीट पर मैं लेट नहीं पाया क्योंकि डेली पैसेंजर ताश खेल रहे थे- अभय
देहरादून से जब लखनऊ आते हैं, तो कुछ लोग उस ट्रेन में हरिद्वार तक ट्रैवल करते हैं. उनमें से ज़्यादातर लोग रोज़ाना नौकरी के लिए आते-जाते हैं. ऐसे में सीट कंफ़र्म होने के बाद भी आप लेट नहीं सकते क्योंकि वो लोग टाइम पास के लिए उस पर ताश खेलते हैं. ये चीज़ इतनी आम है कि कोई उन्हें अब टोकता तक नहीं है.
3. एडमिशन के लिए जाना था, तत्काल नहीं हुआ और आस-पास की महिलाओं ने भी मदद नहीं की- संचिता
मास्टर्स में एडमिशन के लिए भोपाल जाना था. हफ़्तेभर पहले रिज़ल्ट आया था तो न टिकट बुक हुआ न तत्काल मिला. जैसे-तैसे पटना से प्रयागराज तक का टिकट मिला. प्रयागराज तक जो सीट हमारी थी उसमें 4 दक्षिण भारतीय अंकल आंटियों की आरएसी टिकट थी, प्रयागराज से. वे लोग बनारस से ही चढ़े और हमसे कहा कि सीट उनकी है. मैं और बाबा उठ गये. खड़े रहे खड़े रहे, घंटों. गर्मी का मौसम था तो तबीयत ख़राब हो सकती थी. कोई बैठने तक नहीं दे रहा था जबकि बता भी दिया था कि क्यों जा रहे हैं, कहां से हैं. और मज़े की बात आस-पास कई महिलाएं थीं. बाबा ने भी उनसे कहा कि बच्ची को बैठने दे दीजिए, वो कुछ जवाब ही नहीं दे रहे थे. हमने पैंट्री वाले से गत्ते लिए, दो लोअर के बीच बिछाया, बड़ी वाली पन्नी डाली चादर डाली और बाबा को आराम करने के लिए कहा. वो मान नहीं रहे थे लेकिन डांटकर मनाया. और हम जबलपुर तक आधे बैठे रहे लोअर पर. वो किसी एक छात्र की सीट थी जो रास्ते भर मुझे लेटने को कहता रहा और आधी सीट छोड़ रखी. ये सबसे बुरा अनुभव था जब आस-पास की महिलाओं ने कोई मदद नहीं की लेकिन एक छात्र ने की, वो समझ रहा होगा कि एडमिशन का चक्कर कितना मुश्किल हो सकता है.
4. ई-टिकट को टीटी ने कह दिया ‘मान्य नहीं है’, काग़ज़ दिखाओ- ईशी
मैं परिवार सहित वलसाड, गुजरात से कानपुर वापिस आ रही थी. हमारे पास 2AC का टिकट था. सफ़र लगभग 24 घंटे का था. जब TT आया तब हम ने उसे अपनी-अपनी E- Ticket दिखा दी. मगर TT बोला की ये मान्य नहीं है. आप के पास कागज़ में नहीं है तो मैं इसे नहीं मानूंगा. काफ़ी कहा-सुनी हुई लेकिन वो नहीं माना और उसने हम 4 लोगों को जनरल कम्पार्टमेंट में शिफ़्ट कर दिया. कंफ़र्म टिकट के बावजूद हम ने जनरल में सफ़र किया और शिकायत करने पर कोई सुनवाई भी नहीं की गई.
5. ट्रेन में चढ़ने की कोशिश में लोगों ने एक बूढ़ी महिला को धक्का दे दिया और उनका फ़्रैक्चर हो गया- आकांक्षा
2014 के आस-पास हम दीवाली करके घर से वापस आ रहे थे. ट्रेन में बहुत भीड़ थी. सबको चढ़ने-उतरने की जल्दी थी. उसी समय एक दादी ट्रेन में चढ़ने की कोशिश कर रही थीं, लेकिन लोगों ने ऐसा धक्का दिया कि वो नीचे गिर गईं और उनके में फ़ैक्चर हो गया. दादी को गिरता देख बहुत दुख है और जाहिल लोगों पर गु़स्सा भी आई.
भारतीय रेल में कई क़िस्से मिलते हैं, अगली बार सिर्फ़ सोते-सोते मत जाना.