बैंड बाजा बारात, सुनते ही अनुष्का और रणवीर सिंह की फ़िल्म की याद आती है. जो फ़िल्म में शादी की सजावट से लेकर खाने-पीने का इंतजाम देखने का काम करते थे. मध्य प्रदेश का ये बैंड बाजा बारात गैंग का काम शादी के कामों में मदद करना नहीं, बल्कि शादी के रंग में भंग डालने का है. इस गैंग का पर्दाफ़ाश दिल्ली पुलिस ने किया है.

बैंड बाजा बारात नाम का गैंग काफ़ी शातिर तरीकों से शादी में लूट की घटनाओं को अंजाम देता है. इस गिरोह के लोग मध्य प्रदेश के राजगढ़ के पास वाले गांवों के परिवार की रज़ामंदी से उनके बच्चों को अपने गिरोह में शामिल करके चोरी की घटनाओं को अंजाम देते थे.

पुलिस ने बताया कि इस गिरोह के लोग, गांव के उन नाबालिग बच्चों को चुनते थे, जो संपन्न परिवार के दिखाई देते हों. गिरोह बच्चों के घरवालों से एक साल का कॉन्ट्रैक्ट करते हैं. ये कॉन्ट्रेक्ट 3 लाख से 10 लाख रुपये तक का होता है. इसके बाद गिरोह के सदस्य इन बच्चों को तीन महीने तक ट्रेनिंग देते हैं. जिसके बाद इन्हें बड़े शहरों में शादी में चोरी करने के लिए भेजा जाता है.

दिल्ली पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि ये कॉन्ट्रैक्ट स्थानीय पंचायत के अनुसार तैयार किये जाते हैं. जिसमें बच्चों की नीलामी होती है. इस गिरोह के अधिकतर लोग पाचोर गांव के सांसी जनजाति और इनसे मिली-जुली जाति के लोग हैं. ब्रिटिश हुकूमत ने इन्हें क्रिमिनल घोषित किया हुआ था.

मध्य प्रदेश पुलिस ने इस मामले में एक और कड़ी को जोड़ते हुए कहा कि इस जनजाति के लोग नाबालिग बच्चों को बाल कल्याण समितियों से गोद लेकर इन गिरोह में शामिल कर रहे हैं. ये लोग नकली कागजात दिखा कर बच्चों को गोद लेते हैं.

एक स्थानीय नागरिक ने बताया कि गैंग के लोग बच्चों को बैच में ले जाते हैं और 20 लाख रुपये जमा होने पर छोड़ देते हैं. इस दौरान गैंग के लोग नए बच्चों की तलाश भी करते रहते हैं. भोपाल के आईजी योगेश चौधरी ने बताया कि इस जनजाति के लोगों का सोचना है कि अमीर लोगों को लूटने में कुछ भी बुरा नहीं है. ये लोग अस्पताल, स्कूल और गरीबों की शादी में चोरी नहीं करते हैं. साथ ही इन लोगों को बच्चों को चोरी के लिए किराये पर लेने में कोई हिचकिचाहट नहीं होती है. इन लोगों को लगता है कि ये कोई अपराध नहीं, बल्कि अपना धंधा कर रहे हैं.

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इस काम के लिए सांसी जनजाति के बच्चों को प्राथमिकता दी जाती है, ये गिरोह दूसरे कबीले के लोगों पर विश्वास नहीं करते हैं. इस गांव के लोग कहते हैं कि बच्चों को किराये पर देने में कुछ भी गलत नहीं है. एक स्थानीय के मुताबिक, हम अपने बच्चों को बेच नहीं रहे हैं, उन्हें काम के लिये बाहर भेजते हैं. ये हमारे लोग हैं, जो हमारे बच्चों को काम देते हैं और उनका ख़्याल रखते हैं. कॉन्ट्रैक्ट इसलिए बनाया जाता है कि रुपये दिये जा चुके हैं. जो लोग बच्चों को काम के लिए भेजते हैं, वो इस रुपये का प्रयोग इन बच्चों की भलाई के लिए ही करते हैं.

जब कभी भी स्थानीय पुलिस को कोर्ट से कोई वारंट मिलता है, तो वे गांव के सरपंच से संपर्क करते हैं. जो पुलिस और गांववालों को बीच मध्यस्थ की भूमिका अदा करता है. सरपंच सामान्यतः पुलिस वालों से कहता है कि जिस व्यक्ति के नाम से वारंट जारी हुआ है वो गांव में नहीं है. वारंट में Untraceable लिखकर वापस कोर्ट भेज दिया जाता है. पुलिस ने बताया कि इनका गिरोह काफ़ी मज़बूत है, कोई भी सूचना बाहर नहीं निकली है.

पुलिस का कहना है कि ये गिरोह आस-पास में किसी चोरी की घटना को अंजाम नहीं देते हैं. इनके खिलाफ़ आने वाली रिपोर्ट कम ही होती हैं, इसलिए वो इसे रोकने के लिए कुछ नहीं कर सकते हैं.

कड़ीया गांव की सरपंच मधु कहती हैं कि हम मामले को सुलझाने की भरसक कोशिश करते हैं, कोर्ट जाना किसे पसंद होता है? यदि हम उस व्यक्ति को जानते हैं, जिसने चोरी की है, तो हम उसे चोरी का सामान लौटाने के लिए कह देते हैं. फिर हम पुलिस को मामला बंद करने का अनुरोध करते हैं. अधिकतर मामलों में पुलिस इसके लिए तैयार हो जाती है.

गांव के एक निवासी ने बताया कि यदि कोई व्यक्ति समुदाय के खिलाफ़ जा कर पुलिस को कुछ भी बताने का दुष्साहस करता है, तो उसे दंड दिया जाता है. यदि कोई व्यक्ति किसी बाहर वाले को कुछ भी बताता है, उसकी वजह से कोई गिरफ़्तार हो जाता है, तो वह व्यक्ति उसके ट्रायल का सारा ख़र्च उठाता है. जमानत से लेकर वकील तक की सारी फ़ीस उसे ही देनी होती है. अगर उसकी सूचना से पुलिस चोरी का माल जब्त करती है, तो उसे उस माल की कीमत अदा करनी होती है.

ऐसे पकड़ा गया गिरोह

दिल्ली के एक व्यापारी मनोज चौधरी ने 19 जून को कापसहेड़ा पुलिस थाने में बेटी की शादी में जूलरी और रुपयों से भरा बैग चोरी होने की शिकायत दर्ज की थी.

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पुलिस ने फार्म हाउस में लगे सीसीटीवी कैमरों की मदद से 4-5 अजनबियों की पहचान की, जिसमें दो-चार बच्चे भी शामिल थे. इसके आधार पर पुलिस मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले में पहुंची. तमाम खोज-ख़बर के बाद पुलिस ने द्वारका से एक शख़्स को गिरफ़्तार किया.

पूछताछ के बाद पता चला की यही शख़्स गैंग का मास्टर माइंड है. गैंग के मास्टर माइंड इस शख़्स का नाम ‘राका’ है. राका ने बताया कि मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले में कुछ गांव ऐसे हैं, जहां चोरी के लिए नाबालिग बच्चों की नीलामी की जाती है. उसने बताया कि ऐसे बच्चों को किराये पर लिया जाता है, जो अच्छे घर का दिखाई दे, जिसे शादी-पार्टी में आसानी से ले जाया जा सके और वह चोरी की घटना को अंजाम दे सके.