दिल्ली हाई कोर्ट में समलैंगिक विवाह को मंज़ूरी देनी की पिटिशन दायर की गई थी. LGBTQ समुदाय के चार लोगों ने दिल्ली हाईकोर्ट में अर्ज़ी डाली थी. इन लोगों की मांग थी कि भारत में कोई भी दो इंसानों को स्पेशल मैरिड एक्ट के तहत शादी करने की स्वतंत्रता मिले. Live Law की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के केन्द्र सरकार ने इस पिटिशन का विरोध किया है. 

जस्टिस Rajiv Sahai Endlaw और जस्टिस अमित बंसल ने इस मामले पर केन्द्र सरकार की राय मांगी थी.

I Pleaders

बीते गुरुवार को केन्द्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट में कहा कि ज़्यादातर लोगों को लगता है कि सुप्रीम कोर्ट ने होमोसेक्शुएलिटी को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ़ एक ह्यूमन बिहेवियर को ही अपराध की श्रेणी से बाहर किया है. केन्द्र सरकार का कहना है कि सेक्शन 377 हटने के बाद भी याचिका डालने वालों द्वारा सेम सेक्स मैरिज को मौलिक अधिकार घोषित करने की मांग ग़लत है. 

केन्द्र सरकार का कहना है कि सेम सेक्स मैरिज को क़ानूनी मान्यता देनी है ये नहीं ये Legislature (विधान मंडल) का निर्णय होगा. ये मामला जूडिशियल मामला है ही नहीं. कोर्ट मौजूदा अधिकारों का विशलेषण कर सकता है लेकिन वो नये अधिकार नहीं बना सकता. 

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केन्द्र सरकार ने ये भी कहा कि सेम जेंडर की शादी से कहीं बड़ा है परिवार का मसला. साथ रहना, सेक्स करना और भारतीय परिवार का कोई कंपेरिज़न नही है. भारतीय परिवार का मतलब है Husband (पति), Wife (पत्नी) और इनके संगम से पैदा होने वाले बच्चे. केन्द्र सरकार द्वारा जमा किए गए एफ़िडेविट में ये भी लिखा था कि भारत में शादी का मतलब है ‘Biological Man’ और ‘Biological Woman’ का मिलन.  

केन्द्र सरकार ने जो-जो तुक दिए हैं उससे कई सवाल उठते हैं, सबसे बड़ा सवाल ये है कि ये किस सदी की तरफ़ बढ़ रहे हैं हम. 

The Indian Express

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