अख़बारों में आप ज़हरीली शराब पीकर मौत होने के मामले पढ़ते ही रहते होंगे. कभी-कभी तो मरने वालों का आंकड़ा 100 के पार भी चला जाता है. अक्सर ऐसे मामले देसी शराब पीने से जुड़े होते हैं.

ndtv

ये भी पढ़ें: शराब की भी एक्सपायरी डेट होती है या नहीं? आज दूर कर लें अपना कंफ़्यूज़न

इन सबके बीच ये सवाल ज़हन में आना लाज़मी है कि आख़िर देसी शराब में ऐसा क्या मिला दिया जाता है, जिससे लोगों की पीते ही मौत होने लगती है?

कैसे बनती है देसी शराब?

liquor
ibtimes

देसी शराब को ‘कच्ची दारू’ भी कहते हैं. इसे बनाने का तरीक़ा बहुत साधारण है. आम तौर पर महुआ के फूल, गन्ने या खजूर के रस, शक्कर, शोरा, जौ, मकई, सड़े हुए अंगूर, आलू, चावल, खराब संतरे वगैरह का इस्तेमाल होता है. ये विशुद्ध एल्कोहल होता है. इसे एथेनॉल भी कहते हैं. स्टार्च वाली इन चीजों में ईस्ट मिलाकर फर्मेंटेशन कराया जाता है. 

कैसे बन जाती है देसी शराब ज़हरीली?

अब परेशानी तब शुरू होती है, जब देसी शराब में नशा तेज़ करने और उसे टिकाऊ बनाने के लिए दूसरी चीज़ें भी मिलाई जाने लगती हैं. मसलन, इसमें यूरिया और बेसरमबेल की पत्तियां डाल दी जाती हैं. इन्हें सड़ाने के लिए ऑक्सीटॉक्सिन का इस्तेमाल किया जाता है. माना जाता है कि ऑक्सिटोसिन से नपुंसकता और नर्वस सिस्टम से जुड़ी कई तरह की भयंकर बीमारियां हो सकती हैं. इतना ही नहीं, आखों की रौशनी भी जा सकती है. 

indiatvnews

साथ ही, कच्ची शराब में यूरिया और ऑक्सिटोसिन जैसे केमिकल पदार्थ मिलाने की वजह से मिथाइल एल्कोहल बन जाता है. ये मेथिल अल्कोहल ही शराब को ज़हरीला बनाने का कारण होता है. 

बता दें, मेथेनॉल या मेथिल एल्कोहल की गंध बिल्कुल एथेनॉल की तरह ही होती है. मगर ये पीने के लिए नहीं होता. इसका इस्तेमाल एंटीफ़्रीज़र यानि फ्रीजिंग प्वॉयंट कम करने और दूसरे पदार्थों का घोल तैयार करने के काम में किया जाता है. ईंधन के रूप में भी इसका यूज़ होता है. 

क्यों होती है मौत?

indiannation

मिथाइल एल्कोहल का शरीर में जाते ही केमि‍कल रि‍एक्‍शन तेज़ होता है. दरअसल, ये फॉर्मेल्डाइड नामक के ज़हर में बदल जाता है. इसका सबसे ज़्यादा असर आंखों पर पड़ता है. मिथाइल एल्कोहल का अधिक सेवन होने पर फॉर्मिक एसिड नाम का ज़हरीला पदार्थ शरीर में बनने लगता है. इसका सीधा असर दिमाग़ पर पड़ता है. इतना ही नहीं, शरीर के अंदरूनी अंग भी काम करना बंद कर देते हैं. शरीर का पूरा संतुलन बिगड़ जाता है.

उल्टी, जलन, ख़राश और तमाम तरह की दिक्कतें महसूस होने लगती हैं. हालांकि, कुछ लोगों पर इसका असर थोड़ा देर से मालूम होता है, मगर कुछ लोग फ़ौरन ही इन लक्षणोंं की चपेट में आ जाते हैं. ऐसे में जल्द इलाज न मिले, तो मौत होनी तय हो जाती है.