Dhanora Smart Village: भारत (India) को गांवों का देश भी कहा जाता है, ऐसा इसलिए क्योंकि यहां की 69 प्रतिशत आबादी गांवों में ही रहती है. इस वजह से गांवों के विकास से ही देश का विकास आंका जाता है. लेकिन ऐसे बेहद कम ही गांव हैं, जिनके विकास पर ध्यान दिया जाता है. आज भी कई गांवों में जर्जर हालात हैं. कुछ में तो ज़रूरत के संसाधन भी नहीं हैं, जिन्हें देखकर ऐसा लगता है कि भले ही उच्च स्तर पर हम आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर लगातार पिछड़ते चले जा रहे हैं. लेकिन वहीं कुछ गांव ऐसे भी हैं, जिन्होंने अपने अद्भुत विकास के ज़रिए ख़ुद की एक अलग़ पहचान बनाई है.

इन्हीं में से एक राजस्थान के धौलपुर ज़िले का धनौरा गांव भी है. साफ़-सुथरी और बड़ी-बड़ी सड़कें, पक्के मकान, छाया के लिए बड़े हरे भरे पेड़, बच्चों के लिए स्कूल, वेस्ट मैनेजमेंट, पेय जल की सुविधा, रेगुलर बिजली, अच्छे से सीमांकित प्रॉपर्टीज़. शॉर्ट में कहें तो जीवन यापन करने के लिए धनोरा एक आदर्श जगह बन चुका है. लेकिन एक दशक पहले, इस गांव की स्थिति कुछ ऐसी नहीं थी.

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तो आइए आज हम आपको भारत के पहले स्मार्ट गांव कहे जाने वाले धनोरा गांव (Dhanora Smart Village) के बारे में सब कुछ बताते हैं.

Dhanora Smart Village

कहां है धनोरा गांव?

धनौरा गांव ज़िला मुख्यालय से क़रीब 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यहां की आबादी क़रीब 2 हज़ार है. इस गांव में आपको हरियाली, सोलर स्ट्रीट लाइट, ख़ूबसूरत रंगों की ईंटों से बने घर, एक कौशल विकास केंद्र, एक मेडिटेशन सेंटर, साफ़-सुथरी सड़कें और यहां तक पब्लिक लाइब्रेरी भी देखने को मिल जाएगी. ये ‘आदर्श ग्राम सम्मान‘ पुरुस्कार पाने वाला देश का पहला गांव है. इसके साथ ही धनौरा को राज्य स्तरीय पंचायत अवार्ड भी मिला है. 

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कैसे इस गांव की बदली तस्वीर?

साल 2016 में, धनौरा गांव को तब नई ज़िंदगी मिली, जब इको नीड्स फ़ाउंडेशन ने इस गांव को गोद ले लिया और ‘स्मार्ट गांव प्रोजेक्ट‘ की शुरुआत की. इस प्रोजेक्ट के अंतरगत, सतत विकास की ओर कई प्रयास किए गए, जिसमें साफ़ सफ़ाई, प्रॉपर हाउसिंग, रोड री-कंस्ट्रक्शन, सोलर पॉवर के लिए एक्सेस और साफ़ पीने का पानी, जल संरक्षण आदि शामिल हैं. ये 2 सालों में ‘पिछड़े गांव’ से ‘डिजिटल गांव’ में तब्दील होने की हकीकत है. 

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क्या होता है स्मार्ट गांव?

एक गांव को स्मार्ट गांव तब कहा जाता है, जब इसका विकास 5 बेसिक कैटेगरी के अंतर्गत सारी आवश्यकताएं पूरी कर लेते हैं. इन 5 कैटेगरी में रेट्रोफिटिंग, रीडेवलेपमेंट, हरे खेल, इलेक्ट्रॉनिक प्लानिंग और आजीविका शामिल हैं. स्थानीय लोगों को मदद से ‘इको नीड्स फ़ाउंडेशन’ और राजस्थान की राज्य सरकार ने धनौरा गांव के लिए इसे हकीक़त में तब्दील किया है. उन्होंने इसकी शुरुआत सड़कों की हालत को सुधारने से की थी.  

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सड़कें सही होने के बाद आया तेज़ी से बदलाव

सड़कों की बेकार हालत की वजह से गांव बिल्कुल पहुंच योग्य नहीं था और लंबे समय तक इसकी उपेक्षा जारी रही. एक बार जब सड़कें सही हो गईं, तो गांव की पहुंच देश के बाकी हिस्सों तक हो गई. नई सड़कों के साथ उचित आवास, कम्युनिटी हॉल का पुनर्विकास, मनोरंजन क्षेत्र और स्कूल आए. ग्रीनफ़ील्ड प्रोजेक्ट के अंतर्गत, गांव की नई एरिया वेस्ट डिस्पोज़ल, वेस्ट वाटर मैनेजमेंट प्लांट और पेड़ उगाने जैसी सुविधाओं के लिए डेवलप की गईं. 

इलेक्ट्रॉनिक प्लानिंग ने इंटरनेट कनेक्शन, गांव को बिना रुके देने वाली सोलर बिजली, कंप्यूटर के साथ स्कूल और पब्लिक लाइब्रेरी के ज़रिए गांव को बाकी दुनिया के और क़रीब पहुंचाया. इस सब ने धनौरा गांव के लिए देश और दुनिया के बाकी हिस्सों के लिए खुद को खोलना संभव बना दिया. यदि आप ये देखने के लिए इस गांव का दौरा करते हैं कि एक मॉडल स्मार्ट गांव कैसा दिखता है, तो आपके पास एक कम्यूनिटी सेंटर तक पहुंच होगी, जहां से आप सारी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं. अब गांव तक जाना कोई समस्या नहीं है और यहां वो सभी बेसिक सुविधाएं हैं, जो एक डेस्टिनेशन का अनुभव करने के लिए एक व्यक्ति को चाहिए होती हैं. 

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इस गांव का आप भी एक बार ज़रूर टूर कर आइए.