निर्वाचन आयुक्त ने रविवार को लोक सभा चुनाव की तारीख घोषित की. 11 अप्रैल से लोक सभा चुनाव शुरू होंगे और 19 मई तक चलेंगे.


23 मई को मतगणना होगी. ये चुनाव भारतीय लोकतंत्र के लिए ऐतिहासिक होगा. 11 अप्रैल, 18 अप्रैल, 23 अप्रैल, 29 अप्रैल, 6 मई, 12 मई और 19 मई को 543 लोक सभा सीटों पर देश के लगभग 90 करोड़ मतदाता मतदान करेंगे.

आंध्र प्रदेश, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और ओडिशा में भी विधान सभा चुनाव होंगे. सुरक्षा कारणों से जम्मू-कश्मीर में चुनाव टाल दिए गए हैं. पिछले साल बीजेपी-पीडीपी का गठबंधन टूटने के बाद से ही जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगा हुआ है. 

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निर्वाचन आयुक्त ने ये भी कहा कि इस बार चुनाव में ‘Voter Verifiable Paper Audit Trail’ का इस्तेमाल किया जाएगा. 2014 में 9 लाख पोलिंग बूथ्स बनाए गए थे पर इस बार के चुनाव में 10 लाख पोलिंग बूथ्स बनाए जाएंगे. 


चुनाव की तारीख की घोषणा के साथ ही आचार संहिता लागू हो गई है.    

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क्या है आचार संहिता? 

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुसार, निर्वाचन आयुक्त केन्द्र और राज्य सरकार, सभी पार्टियों के सदस्यों की गतिविधियों पर निगरानी रखेगा. 

आचार संहिता के तहत कुछ नियम 

1. आचार संहिता के अनुसार, अलग-अलग पार्टियों के प्रत्याशी एक-दूसरे के काम के अनुसार एक दूसरे की आलोचना कर सकते हैं. जातिगत या धार्मिक टिप्पणी कर मतदाताओं को लुभाना ग़ैरकानूनी है.


2. किसी भी पार्टी के सदस्य को रैली करने से पहले लोकल पुलिस को अपनी गतिविधियों के बारे में जानकारी देनी होगी ताकी पुलिस समय रहते सुरक्षा व्यवस्था कर ले. 

3. प्रत्याशियों को अपने विरोधियों का पुतला लेकर चलना और उसे जलाने की आज्ञा नहीं है. अगर तो विरोधी एक स्थान पर रैली कर रहे हैं, तो उनके रास्ते अलग होने चाहिए. 

4. चुनाव के दिन, पार्टी कार्यकर्ताओं को अपने पार्टी के नाम और चिह्न का बैज पहनना अनिवार्य है. 

5. पोलिंग बूथ्स में मतदाता के अलावा वही लोग जो सकते हैं जिनके पास चुनाव आयुक्त का परमिट हो. 

6. बूथ के 100 मीटर के दायरे में कोई राजनीतिक पार्टी कैंपेनिंग नहीं कर सकती है.  

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कुछ मुद्दे जो इस बार के चुनाव में ‘कुर्सी के क़िस्से’ को बदल सकते हैं: 

1. नौकरी

ये विपक्ष का मौजूदा सरकार के खिलाफ़ सबसे बड़ा हथियार साबित हो सकती है. सरकार की कई नीतियों से जहां कुछ लोगों को रोज़गार मिला है वहीं नोटबंदी के बाद से ही कई लोगों के आय के साधन भी छिन गए हैं.

2. राष्ट्रीय सुरक्षा

90 के दशक में चुनावों के प्रमुख मुद्दों में से एक. पुलवामा हमले के बाद से ही ये मुद्दा एक बार फिर से चुनाव का मुद्दा बनता दिख रहा है. पुलवामा हमला, फिर एयरस्ट्राइक और विंग कमांडर की सकुशल वतनवापसी आगामी चुनावों की दशा और दिशा दोनों बदल सकते हैं.

3. ग्रामवासियों के बीच असहजता

देश के किसान, 2014 में चुनावी जीत की बहुत बड़ी वजह थे पर मौजूदा सरकार से भी किसान काफ़ी संतुष्ट नहीं हैं. बीते सालों में हुए कई किसान मार्च इस बात का सुबूत हैं. 

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 4. भ्रष्टाचार

2014 में कांग्रेस की हार की मुख्य वजहों में से एक.
बीजेपी ने इस दानव से ख़ुद को एक हद तक बचाकर रखा है पर पिछले सालों में देश में भगौड़ों की संख्या में इज़ाफ़ा हुआ है.

5. सोशल मीडिया

2014 के चुनावों में बहुत बड़ा हथियार बनकर उभरी थी सोशल मीडिया. बीजेपी की जीत के पीछे सोशल मीडिया का बहुत बड़ा हाथ था. सोशल मीडिया का जादू ऐसा ही कि कोई रातों-रात फ़र्श से अर्श और अर्श से फ़र्श तक पहुंच सकता है. 

6. सरकारी स्कीम्स

जन धन योजना, उज्जवला योजना, स्वच्छ भारत योजना, आयुष्मान भारत और भी कई. जनता के लाभ के लिए मौजूदा सरकार ने अनगिनत योजनाएं चलाई हैं. विपक्ष ने नामकरण ‘सूट बूट की सरकार’ कर दिया है पर बीजेपी की योजनाएं उनकी जीत में सहायक हो सकती हैं.

7. मोदी

बस नाम ही काफ़ी है. एक ऐसी शख़्सियत जो कि ब्रैंड बन चुका है. नमो की टी-शर्ट, बैग, कैप, मोबाईल कवर, स्वेटशर्ट सब कुछ आ चुके हैं. विपक्षी पार्टी के पास इन्हें टक्कर देने के लिए शायद कोई नहीं है. कई मतदाता इस पार्टी को सिर्फ़ इसी वजह से वोट देंगे और ऐसी घोषणा भी कर चुके हैं.

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8. गौ रक्षा 
गौ हत्या पर बैन लगाने का वादा यूपी में बीजेपी की जीत के मुख्य कारणों में से एक है. गौ की रक्षा के लिए राज्य में कई कदम उठाए जा रहे हैं. खुलेआम घूमने वाली गाय कई बार खेती को नुकसान पहुंचाते हैं पर किसान कुछ नहीं कर पाते क्योंकि ‘गौ’ सबकी माता है. किसानों का या किसी को भी गौ रक्षा से आपत्ति नहीं है, तब तक जब तक ये किसी इंसान की मृत्यु का कारण न बने. 

9. ध्रुवीकरण

देश में जो अलगाव की भावना पनप रही है, वो पहले से काफ़ी बढ़ी है. देश में धर्म और जाति की खाई बड़ी होती दिख रही है. यही नहीं, पड़ोसी मुल्कों से भी तनाव बढ़ा है.