होश न उनको था और न ही हमें, आज़ादी भी मिली, संविधान भी बना, कई सरकारें आईं और कई चली भी गईं, लेकिन… किसी ने उसकी सुध लेने की कोशिश नहीं की, जिसने हमारी इस आज़ादी के लिए अपनी ज़िंदगी तक कुर्बान कर दी. कोई कहता है कि उनकी मौत प्लेन क्रैश होने से हुई है, तो कईयों का कहना है कि उनकी मौत नहीं हुई थी.

भारतीय इतिहास में सुभाष चंद्र बोस एक ऐसे साहसिक क्रांतिकारी के रूप में जाने जाते हैं, जिन्होंने अपनी बदौलत अंग्रेज़ी हुकूमत की नींव हिला दी थी. कई बार गिरफ़्तार हुए, लेकिन अपनी रफ़्तार से फ़रार भी हो गए. देश से बाहर गए और अपनी सेना खड़ी कर दी. वैसी सेना, जो विदेशी धरती से भारत को आज़ाद कराने के सपने देख रही थी.

लेकिन… इसे क़िस्मत का ही खेल कहा जाए, या फ़िर उनकी बदक़िस्मती!, अभी तक उनकी मौत की पुष्टि नहीं हुई है. सुभाष चंद्र बोस की फाइलों को सार्वजनिक कर मोदी सरकार ने एक अच्छी पहल की है. अभी हाल में ही कुछ ऐसे सबूत मिले हैं, जिनसे पता चलता है कि नेताजी की मौत प्लेन क्रैश में नहीं, बल्कि भारत में ही हुई थी.

क्या गुमनामी बाबा ही ‘नेताजी’ थे?

गुमनामी बाबा एक बार फ़िर से चर्चा में हैं. कई लोगों का मानना है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस ही गुमनामी बाबा थे. कुछ दिन पहले उनसे जुड़े कई बक्सों को खोला जा रहा है, जिसे देख कर ऐसा लगता है कि गुमनामी बाबा ही नेताजी थे.

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ये रहे सबूत

आज़ादी से पहले जिन लोगों की मुलाक़ात नेताजी से हुई थी, उन लोगों का मानना है कि दोनों का चेहरा काफ़ी मिलता-जुलता है.

मुखर्जी कमीशन ने भी अपनी रिपोर्ट में स्वीकार किया है कि गुमनामी बाबा और नेताजी सुभाष चंद्र बोस में काफ़ी समानताएं थीं.

गुमनामी बाबा के पास मौजूद है सुभाष चंद्र बोस का सामान

फैजाबाद के डीएम योगेश्वर राम मिश्रा के अगुवाई में गुमनामी बाबा से जुड़े 24 बक्सों को खोला जाना है, अभी तक 14 बक्से खोले गए हैं, जिनमें से निम्नलिखित चीज़ें मिली हैं.

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विदेशी चाकू गड़ासा, कुल्हाड़ी और रेतीचश्मा घड़ी लेटरएलेक्जेंडर ड्यूमस का उपन्यास थ्योरी ऑफ योगाब्लैक आर्टरिचर्ड केविन नेताजी स्पीक्स

रात के अंधेरे में लोग क्यों आते थे मिलने गुमनामी बाबा से?

अयोध्या में गुमनामी बाबा के मकान मालिक रहे गुरु बसंत सिंह के बेटे शक्ति सिंह ने बताया, “यहां गुमनामी बाबा 1982 में रहने आए थे. 16 सितंबर 1985 को उनकी मौत हुई. उनसे जो मिलने आते थे, वे बहुत नॉर्मल लोग थे. कभी-कभी कुछ लोग घर के पीछे से मिलने आते थे. वे आर्मी के भी हो सकते हैं और पॉलिटिशियन भी. जो भी मिलने आता था, रात के अंधेरे में आता था और सुबह होने से पहले ही चला जाता था.”

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“मेरा नाम इस देश के रजिस्टर से काट दिया गया है”

(दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के आधार पर) इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्टर वी. एन. अरोड़ा ने बताया, “अयोध्या में जो संत रहते थे, लोग उन्हें दो नामों से बुलाते थे, एक भगवन और दूसरा स्वामी जी. कोलकाता से आने वाले लोग उन्हें स्वामी जी कहते थे. कभी-कभी उनके घर पर रात गुजारने वाले करीबी जब उनसे पूछते थे कि आपका जन्म कहां हुआ? तो वह हंसते हुए कहते थे कि मेरा जन्म इस देश में ज़रूर हुआ है, लेकिन मेरा नाम रजिस्टर से काट दिया गया है.”

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सभी सामानों की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी करवाई जाएगी, ताकि मामला पूरी तरह से पारदर्शी रहे. साथ में गुमनामी बाबा से प्राप्त चीज़ों की जांच टेक्नोलॉजी कमेटी करेगी. बाद में सभी सामग्रियों को अयोध्या में बने इंटरनेशनल रामकथा म्यूजियम में रखा जाएगा.

News Source: Dainik Bhaskar