Jharkhand College Dropout Creates Micro Hydel Plant: झारखंड के एक 34 वर्षीय कॉलेज ड्रॉपआउट ने वो कमाल कर दिखाया है, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है. ऐसा शख़्स जिसने कभी साइंस नहीं पढ़ी, उसने बांस और कबाड़ की मदद से ‘माइक्रो-हाइड्रल पावर प्लांट‘ विकसित कर दिया. अब वो गांव की गलियों और मंदिर को मुफ़्त बिजली सप्लाई कर रहा है. उसके इस कारनामे में अब NABARD ने भी दिलचस्पी दिखाई है. (Story Of Kedar Prasad Mahto)

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पानी से बना दी बिजली

यूं तो पानी स्वयं एनर्जी का सीधा सोर्स नहीं है, मगर इसका इस्तेमाल ऊर्जा पैदा करने के साधन के रूप में किया जा सकता है. दरअसल, चलते हुए पानी में काइनेटिक एनर्जी होती है, जिसे टर्बाइनों के इस्तेमाल से बिजली पैदा करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. यही हाइड्रो पॉवर के पीछे का सिद्धांत है, जो बिजली पैदा करने के लिए बहते पानी का उपयोग करता है.

Jharkhand College Dropout Creates Micro Hydel Plant

रामगढ़ जिले के रहने वाले केदार प्रसाद महतो (Kedar Prasad Mahto) ने इसी प्रिसंपल पर काम कर ‘माइक्रो-हाइड्रल पावर प्लांट’ विकसित किया है. अब नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (NABARD) ने भी इसमें रुचि दिखाई है. बता दें, पिछले साल केदार प्रसाद महतो ने बांस और अन्य अपरंपरागत सामग्रियों का उपयोग करके प्लांट डेवलप किया था. नाबार्ड सहित कई संगठनों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए अपनी जेब से 3 लाख रुपये खर्च किए हैं.

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रिपोर्ट्स के मुताबिक, नाबार्ड के अधिकारियों का एक ग्रुप उस प्लांट को देखने गया, जो गांव की गलियों और मंदिरों में मुफ़्त 5KV बिजली का उत्पादन कर रहा है. नाबार्ड के डिप्टी डेवलपमेंट मैनेजर उपेंद्र कुमार ने कहा, ‘हम इस बात पर रिसर्च कर रहे हैं कि क्या छोटी नदियों में स्थापित ऐसे प्लांट किसानों को खेती के लिए बिजली मुहैया कर सकते हैं?’

गांव को मुफ़्त बिजली देने का सपना

महतो का सपना अपने गांव बयांग को फ़्री इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई करना है. उसके गांव में बहुसंख्यक परिवार किसान हैं और मुफ्त बिजली से सिंचाई उनके लिए वरदान साबित हो सकती है.

नाबार्ड के अधिकारियों के अनुसार, पारंपरिक तकनीक का उपयोग करके एक 2MW पनबिजली संयंत्र के निर्माण में 10 करोड़ रुपये खर्च होंगे, लेकिन अगर महतो के मॉडल को 2MW का उत्पादन करने के लिए बढ़ाया जाता है, तो अनुमानित लागत सिर्फ 2 करोड़ रुपये होगी. अधिकारियों के मुताबिक, प्लांट में 30 से 40 केवी उत्पादन करने की क्षमता है, लेकिन इसका पूरी क्षमता से उपयोग नहीं किया गया है.

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प्लांट का निर्माण बांस की छड़ियों से किया गया था, साथ ही एक कबाड़ जनरेटर और एक घर का बना टरबाइन भी इस्तेमाल किया गया. महतो जिन्होंने कभी साइंस की पढ़ाई नहीं की, कहते हैं कि प्लांट को ऑपरेट करने के लिए कुछ भी खर्च नहीं होता है और हर दिन लगभग चार घंटे चलता है.

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