28 अगस्त 2017 यानि आज जस्टिस दीपक मिश्र ने देश के 45वें न्यायाधीश के तौर पर शपथ ली. राष्ट्रपति भवन के ऐतिहासिक दरबार में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें पद एंव गोपनीयता की शपथ दिलाई. 63 साल के जस्टिस मिश्रा 3 अक्टूबर 2018 को रिटायर होंगे.

देश के 45वें न्यायाधीश से जुड़ी कुछ ख़ास बातें.
1. जस्टिस दीपक मिश्र का जन्म 3 अक्टूबर 1953 को हुआ था. सन् 1977 में उन्होंने उड़ीसा हाईकोर्ट में वकालत की प्रैक्टिस शुरू की थी. वहीं 1996 में उन्हें उड़ीसा हाईकोर्ट का एडिशनल जज बनाया गया और इसके बाद मध्यप्रदेश हाईकोर्ट उनका ट्रांसफ़र कर दिया गया.
2. जस्टिस मिश्र उड़ीसा हाईकोर्ट और सर्विस ट्रिब्यूनल में काफ़ी लंबे समय तक संवैधानिक सिविल, आपराधिक, राजस्व और सेल्स टैक्स सहित कई मामलों की वक़ालत भी कर चुके हैं.

3. साल 2009 में दीपक मिश्र को पटना हाईकोर्ट का चीफ़ जस्टिस बना दिया गया, फिर 24 मई, 2010 को वो दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस बन गए और 10 अक्टूबर 2011 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त कर दिया गया.
दिल्ली के निर्भया गैंगरेप के दोषियों की फांसी की सज़ा बरकरार रखने से लेकर पिछले साल सिनेमा घरों में राष्ट्रगान अनिवार्य करने तक, जस्टिस दीपक मिश्र अपने कई अहम आदेशों की वजह से चर्चा में रह चुके हैं.
अब हम आपको विस्तार से जस्टिस मिश्रा द्वारा लिए गए 5 अहम और चर्चित आदेश.
1. FIR की कॉपी 24 घंटों के अंदर वेबसाइट पर डालें
बीते साल 7 सितंबर को जस्टिस मिश्र और जस्टिस नगाप्पन की बेंच ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आदेश जारी करते हुए, पुलिस FIR की कॉपी 24 घंटों के अंदर अपनी वेबसाइट पर अपलोड करने के लिए कहा था. वहीं दिल्ली के चीफ़ जस्टिस रहते हुए, 6 दिसंबर 2010 को उन्होंने दिल्ली को भी ऐसा ही आदेश दिया था.
2. सिनेमा घरों में राष्ट्रगान अनिवार्य

30 नवंबर 2016 को दिए अपने ऐतिहासिक फै़सले में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दीपक मिश्र की अगुवाई वाली बेंच ने कहा था कि पूरे देश में सिनेमा घरों में फ़िल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान चलाया जाए और इस दौरान सिनेमा हॉल में मौजूद सभी लोग राष्ट्रगान के सम्मान में खड़े होंगे.
3. आपराधिक मानहानि की संवैधानिकता बरकरार
बीते साल 13 मई को सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने आपराधिक मानहानि के प्रावधानों की संवैधानिकता को बरकरार रखने का आदेश सुनाया था, जिसमें जस्टिस मिश्र भी थे. ये निर्णय सुब्रमण्यन स्वामी, राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल और अन्य बनाम यूनियन के केस में सुनाया गया था. बेंच का कहना था कि अभिव्यक्ति का अधिकार असीमित नहीं है.
4. याकूब मेमन की फांसी
मुंबई ब्लास्ट के आरोपी याकूब मेमन को फ़ांसी की सज़ा भी जस्टिस दीपक मिश्र की अगुवाई वाली बेंच ने ही सुनाई थी. पहली बार सुप्रीम कोर्ट में रात भर किसी केस की सुनवाई चली थी. सुप्रीम कोर्ट में रात के वक़्त सुनवाई करने वाले बेंच की अगुवाई जस्टिस दीपक मिश्र ने ही की थी. दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद याकूब की अर्जी ख़ारिज कर, उसकी फांसी की सज़ा बरकार रखते हुए कुछ ही देर बाद उसे फांसी दे दी गई.
5. प्रमोशन में आरक्षण की नीति पर रोक
बसपा सुप्रीमो और मायावती सरकार द्वारा लागू की गई प्रमोशन में आरक्षण की नीति पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी. इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा और सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फ़ैसले को बरकरार रखा और 27 अप्रैल, 2012 को सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला सुनाते हुए कहा, प्रमोशन देने से पहले से जानकारियां जुटाई जाएं. ये फ़ैसला देने वाली दो जजों की बेंच में दीपक मिश्र भी थे.
Source : bbc