भारतीय सेना में शामिल हर एक जवान बिना डरे बॉर्डर पर चटा रहता है ताकि वो हमारी और देश की रक्षा कर सके. कई बार ऐसा होता है हमारी रक्षा करते हुए कितनी ही मांओं की गोद तक सूनी हो जाती है क्योंकि उनके बेटे हमारे लिए शहीद जो हो जाते हैं. ऐसे में शहीद हुए जवानों और ऑफ़िसर्स को एक ख़ास तरह के सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी जाती है, जो उनके शौर्य को सम्मानित करते हुए राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाता है. मगर इस राजकीय सम्मान को एक पूरी प्रक्रिया के साथ पूरा किया जाता है. तो आइए जान लीजिए क्या होती है वो प्रक्रिया और उस झंडे का क्या होता है?
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ये होती है पूरी प्रक्रिया
जब सेना का कोई जवान शहीद होता है तो सबसे पहले उसके पार्थिव शरीर को सेना के कुछ जवानों के साथ परिवार तक पहुंचाया जाता है. इसके बाद पूरे राजकीय सम्मान के साथ पार्थिव शरीर को तिरंगे में लपेटा जाता है और झंडे लगाने का भी नियम होता है. इस दौरान झंडे के केसरिया वाले भाग को शव रखने वाले बॉक्स के आगे वाले हिस्से की तरफ़ करके रखा जाता है, ताकि झंडा सीधा रहे और झंडे को चादर की तरह नहीं उढ़ाया जाता है.
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झंडे का क्या होता है?
जब शहीद के अंतिम संस्कार का वक़्त क़रीब आता है तो झंडे को पूरे सम्मान के साथ लपेट कर शहीद के परिवार वालों को सौंप दिया जाता है. झंडे को कब्र में दफ़नाया या जलाया नहीं जाता है. झंडे को ख़ास तरीक़े से लपेटा जाता है, ताकि उसका अशोक चक्र सबसे ऊपर रहे.
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कई तरह की रस्में होती हैं
शहीद हुए जवान के अंतिम संस्कार के दौरान मिलिट्री बैंड की ओर से ‘शोक संगीत’ बजाया जाता है और बंदूकों से सलामी दी जाती है. सलामी देते समय बंदूकों को पकड़ने का तरीक़ा भी ख़ास होता है. बंदूकों को एक प्रक्रिया के तहत झुकाया और उठाया जाता है.
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झंडे को लेकर क्या है नियम?
राज्य, सेना, केंद्रीय अर्द्ध सैनिक बलों की ओर से किए जाने वाले अंतिम संस्कारों के अलावा झंडा के इस्तेमाल और कहीं नहीं किया जाएगा. इसे गाड़ी, रेल-गाड़ी अथवा किसी भी वस्तु को लेने, देने, पकड़ने या ले जाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाएगा.
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आपको बता दें, भारतीय झंडा संहिता 2002 के अनुसार, राष्ट्रीय ध्वज को सिर्फ़ सैनिकों या राजकीय सम्मान के वक़्त ही शव को लपेटने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा बाकि और कहीं नहीं.