African Continent Splitting : ये बात सभी जानते हैं कि धरती के अंदरूनी हिस्से में लगातार हलचलें हो रही हैं. आए दिन आने वाले भूकंप, उत्तराखंड के जोशीमठ में हाल ही में ज़मीन का फ़टना, ये सभी प्राकृतिक आपदाएं इस बात का संकेत हैं. अब अफ़्रीका को लेकर कई भूभर्ग वैज्ञानिकों ने ऐसी आशंका जाहिर की है कि ये महाद्वीप दो हिस्सों में बंट जाएगा. हाल ही में सामने आई कुछ वीडियोज़ में इस बात की पुष्टि भी हुई है.

असल में केन्या (Kenya) के नैरोबी-नारोक हाईवे के पास कई किलोमीटर लंबी दरार आ चुकी है. इस पर पूरी तरह से रिसर्च करने के बाद वैज्ञानिकों का मानना है कि ये अफ़्रीका महाद्वीप के दो हिस्सों में बंटने की शुरुआत है. उनका कहना है कि दरार आने के बाद दुनिया में एक और नए महासागर का जन्म होगा.

आइए आपको इस पूरी प्रक्रिया और इसकी शुरुआत कब से हुई, इन सभी चीज़ों के बारे में विस्तार से बताते हैं.

अफ्रीका के विभाजन के बारे में थ्योरीज़ कब सुर्ख़ियों में आने लगीं?

दरअसल, केन्या के पहले इथिओपिया के अफ़ार इलाके में ऐसी दरार देखी गई थी. 2005 में सिर्फ 10 दिनों के अंदर 60 किलोमाटर लंबी दरार 8 मीटर चौड़ी हो गई थी. ये घटना यकीन से परे है. दरार के गठन के बाद, वैज्ञानिकों ने भविष्यवाणी की कि इस क्षेत्र के साथ की भूमि, जिसे पूर्वी अफ्रीकी दरार के रूप में जाना जाता है, वो बाद अलग हो जाएगी और बीच में एक नए समुद्र के साथ पूर्वी इथियोपिया और जिबूती से मिलकर एक नया द्वीप बनाएगी. इसके बाद से ही उस थ्योरी का जन्म हुआ, जिसके मुताबिक महाद्वीप दो हिस्सों में बंट जाएगा.

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2018 में फिर केन्या में देखी गई दरारें

इसके बाद 2018 में केन्या की राजधानी नैरोबी से लगभग 142 किलोमीटर दूर नरोक नाम के छोटे से शहर में एक दरार दिखी थी. यहां पर भारी बारिश होने के चलते ये दरार धीरे-धीरे बढ़ती रही है. उस समय ये कहा जा रहा है कि ये दरार बारिश के चलते हो सकती है. लेकिन उस पर कई रिसर्च के बाद भूवैज्ञानिकों का मानना है कि ज़मीन के अन्दर हलचल के कारण ऊपर दरार बनी. ये दरार पूर्वी अफ़्रीकी दरार घाटी के क्षेत्र में स्थित थी. एक रिपोर्ट के मुताबिक, ये दरार 50 फीट ज़्यादा गहरी और 65 फीट चौड़ी थी. इसके बनने से नैरोबी-नारोक हाइवे का हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया था. जिसके बाद केन्या के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में सुसवा क्षेत्र से कई परिवारों को निकाला गया था.

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क्या है दरार पड़ने की वजह?

दरअसल धरती का क्रस्ट और मैंटल का ऊपरी हिस्सा यानि लिथोस्फेयर कई टेक्टॉनिक प्लेटों में बंटा होता है. ये सभी प्लेट्स अलग-अलग स्पीड से आगे बढ़ती हैं. लिथोस्फेयर के नीचे एस्थेनोस्फेयर होता है और ये प्लेट्स एस्थेनोस्फेयर के ऊपर सरकती रहती हैं. कहा जाता है कि एस्ठेनोस्फेयर के बहाव और प्लेटों की बाउंड्री से पैदा हुए फ़ोर्स इन्हें डायनैमिक बनाते हैं. ये डायनैमिक फ़ोर्स कभी-कभी टेक्टॉनिक प्लेट्स को तोड़ देता है. इससे धरती में दरार पैदा हो जाती है.

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कैसे होते हैं अफ़्रीकी महाद्वीप के दो हिस्से?

जानकारी के लिए बता दें कि पूर्वी अफ़्रीका दरार घाटी दक्षिण में ज़िम्बाब्वे की तरफ़ उत्तर में एडेन की खाड़ी से लगभग 3000 किलोमीटर की दूरी पर फ़ैली हुई है. ये घाटी अफ़्रीकी प्लेट को दो असमान भागों में बांटती है. जब लिथोस्फेयर क्षैतिज़ विस्तारिक बल के नीचे होता है, तो ये फ़ैलकर पतली होगी. इसे भू-भर्गीय भाषा में रिफ्ट कहा जाता है. रिफ्ट होने से आख़िरकार ये हिस्सा टूटेगा. रिफ्ट्स एक महाद्वीप के टूटने की शुरुआती प्रक्रिया है. अगर ऐसा हुआ, तो एक नया महासागर बेसिन के गठन का कारण बन सकता है.

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बदल जाएगा 6 देशों का नक्शा

अफ़्रीकी महाद्वीप में इस समय 6 ऐसे देश हैं जो सभी तरफ़ से ज़मीन से घिरे हुए हैं. लेकिन इस दरार के बाद इन 6 देशों को समुद्री तट मिल जाएगा. इन देशों में रवांडा, युगांडा, कॉन्गो, बुरुंडी, मलावी, ज़ाम्बिया शामिल हैं. जबकि केन्या, तंजानिया और इथियोपिया में दो-दो क्षेत्र होंगे. दरअसल, इथिओपिया के मरुस्थली इलाके का कुछ हिस्सा समुद्र तल से नीचे है. इसको काफ़ी छोटी सी ज़मीनी पट्टी अलग करती है. जैसे-जैसे ये दरार फ़ैलेगी, वैसे-वैसे समुद्र का पानी इसमें भरता चला जाएगा. इससे एक नया समुद्र बनेगा, जो सब सोमियाई प्लेटों को धकेल देगा. इस तरह सोमालिया, साउथ इथियोपिया, केन्या आदि अलग हो जाएंगे.

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इस प्रक्रिया में कितना वक़्त लगेगा?

ये दरार हर साल 7 मिमी दूर जा रही है. हालांकि, ये दरार काफ़ी धीमी दर से पड़ रही है. जिसके चलते वैज्ञानिकों का मानना है कि उसे पूरी तरह दिखने में कई लाख साल लग जाएंगे. दरार आने के बाद दुनिया में एक और महासागर का जन्म होगा, लेकिन इन्सान इसे तभी देख पाएगा अगर वो कुछ अगले लाख सालों तक ज़िन्दा रह जाए.

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