Law For Arresting a Woman in India : महिलाओं के अधिकार और उनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए क़ानून में महिलाओं की गिरफ़्तारी को लेकर विशेष नियम बनाए गए हैं. दरअसल, ये नियम इसलिए बनाए गए हैं, ताकि पुलिस हिरासत में लिए जाने के बाद महिलाओं को यौन हिंसा, शोषण, प्रताड़ना व मृत्यु से बचाया जा सके. इसलिए, इस गंभीर विषय में व्यक्तियों विशेषकर महिलाओं को जानकारी होना ज़रूरी है. इस विषय पर बेहतर तरीक़े से प्रकाश डालने के लिए स्कूपव्हूप ने युवा एडवोकेट जय दत्त भट्ट से ख़ास बातचीत की, जो कि दिल्ली उच्च न्यायलय बार एसोसिएशन के सदस्य हैं और माननीय दिल्ली उच्च न्यायलय में वक़ालत करते हैं.  

आइये, अब विस्तार से जानते महिला की गिरफ़्तारी (Law For Arresting a Woman in India) से जुड़ी ज़रूरी बातों को. 

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जय दत्त भट्ट, एडवोकेट (सदस्य दिल्ली उच्च न्यायलय बार एसोसिएशन) ने बताया कि, “भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 ‘प्रोटेक्शन ऑफ़ लाइफ़ एंड पर्सनल लिबर्टी’ की बात कहता है, यानी किसी भी व्यक्ति को चाहे वो नागरिक हो या ग़ैर नागरिक, उसे उसके प्राण व शारीरिक स्वतंत्रता से वंचित नहीं रखा जा सकता है. हालांकि, इसमें विधी द्वारा स्थापित प्रक्रिया का पालन ज़रूरी है. 

वहीं, अनुच्छेद 22 गिरफ़्तार (Law For Arresting a Woman in India) किए गए व्यक्ति के अधिकारों का संरक्षण और विशेष अधिकार प्रदान करता है, जिसमें गिरफ़्तार किए जाने वाले व्यक्ति को अपनी पसंद के सक्षम वकील से मशविरा लेने और अपने बचाव करने का अधिकार है. साथ ही उसे गिरफ़्तारी के 24 घंटे के भीतर नज़दीकी मजिस्ट्रेट से पास पेश करने का प्रावधान है”. 
वहीं, महिला की गिरफ्तारी से जुड़ी जानकारी देते हुए जय दत्त भट्ट ने बताया कि, ‘अगर किसी महिला को आपराधिक मामले में हिरासत में लिया जाता है, तो कुछ ज़रूरी बातों का ध्यान रखना एक पुलिस अफ़सर के लिए ज़रूरी हो जाता है. अगर वो इन सभी बातों का उल्लंघन करता है, तो ऐसी गिरफ़्तारी अवैध मानी जाएगी और साथ ही संबंधित पुलिस अधिकारी के खिलाफ़ डिपार्टमेंटल इन्क्वायरी भी बैठाई जा सकती है’. 
प्रावधानों का ज़िक्र करते हुए जय दत्त भट्ट आगे बताते हैं कि, ‘आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure) 1973 का चैप्टर 5 व्यक्ति की गिरफ़्तारी के संबंध में बताता है, जिसमें कि धारा 41B गिरफ़्तारी की प्रक्रिया और गिरफ़्तार करने वाले ऑफ़िसर के दायित्वों का वर्णन करता है. वहीं, धारा 46, कैसे गिरफ़्तारी की जाए, उस विषय में प्रकाश डालता है तथा धारा 60A हर गिरफ़्तारी को सीआरपीसी (CRPC) के अनुसार होने पर ज़ोर देता है.

महिलाओं की गिरफ़्तारी को लेकर प्रावधान

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एडवोकेट जय दत्त भट्ट ने आगे बताया कि महिलाओं की गिरफ़्तारी को लेकर प्रावधान दिया गया है, जो निम्नलिखित हैं :  

1. धारा 46 (4) में महिलाओं की गिरफ़्तारी को लेकर प्रावधान दिया गया है, जिसे सीआरपीसी में संशोधन कर 2005 में जोड़ा गया था. किसी भी महिला को सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले गिरफ़्तार नहीं किया जा सकता है, कुछ अपवादों को छोड़कर. 


 2. कुछ स्थितियों में (धारा 46 (4)) अगर महिला की गिरफ़्तारी सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले की जानी ज़रूरी है, तो पुलिस रिपोर्ट पर प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट की लिखित आज्ञा पर एक महिला पुलिस अधिकारी द्वारा ही किसी महिला की गिरफ़्तारी की जा सकती है. 

3. वहीं, धारा 51 (2) के तहत गिरफ़्तार की गई महिला के सम्मान को ठेस पहुंचाए बिना एक महिला पुलिस अधिकारी द्वारा ही सर्च यानी शारीरिक जांच किया जाना अनिवार्य है. 

 4. वहीं, सीआरपीसी के सेक्शन 54 में गिरफ़्तार की गई महिला की मेडिकल जांच की बात की गई है. इसमें ये भी कहा गया है कि ये जांच एक महिला डॉक्टर द्वारा ही की जानी चाहिए, जो कि केंद्रीय या राज्य सरकार के अंतर्गत हो. वहीं, अगर सरकारी महिला डॉक्टर उपलब्ध न हो, तो ऐसी स्थिति में किसी रजिस्टर्ड महिला मेडिकल प्रैक्टिशनर द्वारा जांच अनिवार्य है. 

5. वहीं, जिस महिला डॉक्टर द्वारा गिरफ़्तार (Law For Arresting a Woman in India) की गई महिला की मेडिकल जांच की गई है, उसके द्वारा जांच की रिपोर्ट बनाना अनिवार्य (सेक्शन 54) है, जिसमें कि उस दौरान महिला के शरीर पर मौजूद घाव या किसी तरह की बाहरी चोट व संभावित समय के बारे में बताना ज़रूरी है, ताकि हिरासत में होने वाली हिंसा से महिला को बचाया जा सके. वही, इस मेडिकल रिपोर्ट की एक कॉपी गिरफ़्तार की गई महिला या उसके द्वारा बताए गए किसी व्यक्ति (परिवार, रिश्तेदार, मित्र या अन्य) विशेष को दिया जाना अनिवार्य है. 

6. वहीं, अगर लड़की नाबालिग है, तो जांच-पड़ताल के दौरान माता-पिता का होना ज़रूरी है. 

7. अगर महिला गर्भवती है, तो वो अपने साथ किसी सहयोगी की मांग कर सकती है. 

8. वहीं, गिरफ़्तारी के वक़्त महिलाओं को हथकड़ी नहीं पहनाई जाती है. अगर किसी गंभीर मामले में पुलिस द्वारा महिला को हथकड़ी पहनाना है, तो उसके लिए कोर्ट का ऑडर अनिवार्य है. 

9 साथ ही गिरफ़्तारी (Law For Arresting a Woman in India) के समय पुलिस का दायित्व है कि महिला के सम्मान और किसी भी तरह के उत्पीड़न से उसकी रक्षा करे.      

डी.के बासु बनाम पश्चिम बंगाल सरकार

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वहीं, इस विषय को समझाते हुए जय दत्त भट्ट ने माननीय सर्वोच्च न्यायलय के निर्णय डी.के बासु बनाम पश्चिम बंगाल सरकार 1997 के ऐतिहासिक फ़ैसले का ज़िक्र किया, जिसमें कि माननीय सर्वोच्च न्यायलय ने दिशा निर्देश दिये थे जो किसी भी पुलिस अधिकारी द्वारा पालन करना अनिवार्य है, अन्यता ये माननीय सर्वोच्य न्यायलय की अवमानना मानी जाएगी (Contempt of Court Act, 1971). ये दिशा निर्देश इस प्रकार हैं :   

1. अगर कोई पुलिस अधिकारी किसी महिला को गिरफ़्तार (Law For Arresting a Woman in India) करने जाता है, तो वो वर्दी में हो, पद सहित नेम प्लेट लगी हो और वो स्पष्ट दिखाई दे. साथ ही पुलिस पहचान पत्र का होना भी अनिवार्य है. 


2. गिरफ़्तारी के समय पुलिस अधिकारी का ये कर्तव्य है कि वो ‘Memo of Arrest’ तैयार करे, जिसमें कि गिरफ़्तार किए जाने वाले व्यक्ति या महिला का विवरण, किस अपराध में गिरफ़्तार किया गया है उसका ब्योरा व गिरफ़्तारी का समय तथा एक गवाह का हस्ताक्षर लिया जाना जरूरी है. इसके अलावा, गिरफ़्तार किए गए व्यक्ति या महिला का हस्ताक्षर भी ज़रूरी है. 

 3. साथ ही गिरफ़्तारी की स्थिति में गिरफ़्तार किए जाने वाले व्यक्ति के परिवार के सदस्य या किसी मित्र को (जिसे महिला सूचित करवाना चाहती है) सूचित किया जाना अनिवार्य है. 

 4. विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 के तहत गिरफ़्तार किए गए व्यक्ति या महिला को मुफ़्त तथा सक्षम विधिक सहायता के लिए राज्य या ज़िला न्यायिक सेवा प्राधिकरण तथा केंद्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (National Legal Services Authority (NALSA)) के संपर्क का ब्योरा देना अनिवार्य है. वहीं, गिरफ़्तार किया गया व्यक्ति अगर सक्षम है, तो वो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22 के तहत अपनी पसंद का वकील रख सकता है. 

 5. वहीं, गिरफ़्तार किए गए व्यक्ति को जांच के दौरान अपने वकील से मुलाक़ात करने का अधिकार है. हालांकि, ये अधिकार पूरी जांच के दौरान इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. 

 6. गिरफ़्तार किए गए व्यक्तियों की सूची गिरफ़्तारी (Law For Arresting a Woman in India) के 12 घंटे के अंदर पुलिस मुख्यालय व पुलिस कंट्रोल रूम के नोटिस बोर्ड पर लगाने का प्रावधान है. वहीं, हर ज़िले में पुलिस कंट्रोल रूम की स्थापना करना भी आवश्यक है. इसमें अन्य गाइडलाइन्स भी हैं, जिन्हें समय-समय पर संसद ने संशोधित कर सीआरपीसी का अभिन्न अंग बनाया दिया है. 

 7. इसके अलावा, सीआरपीसी की धारा 57 के अंतर्गत गिरफ़्तार (Law For Arresting a Woman in India) किए गए व्यक्ति को बिना वॉरेंट के 24 घंटे से अधिक पुलिस कस्टडी में नहीं रखा जा सकता है. वहीं, मजिस्ट्रेट के पास 24 घंटों के भीतर गिरफ़्तार किए गए व्यक्ति को पेश करना ज़रूरी है. वहीं, पुलिस जांच अगर 24 घंटे में पूरी न हो, तो इसके लिए धारा 167 सीआरपीसी में प्रावधान है, जो इस प्रक्रिया को विस्तार से समझाता है.     

महिला की गिरफ़्तारी से जुडे़ कुछ लिए गए महत्वपूर्ण निर्णय

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1. नीरव मोदी (पीएनबी बैंक फ्रॉड) मामले में हिरासत (Law For Arresting a Woman in India) में ली गई कर्मचारी कविता मानकीकर की गिरफ़्तारी को माननीय बॉम्बे हाई कोर्ट ने अवैध घोषित किया था, क्योंकि ये गिरफ्तारी धारा 46 (4) सीआरपीसी का उलंघन करती थी. कविता की गिरफ़्तारी रात 8 बजे की गई थी. 


 2. शिला वर्से बनाम महाराष्ट्र राज्य के मामले में माननीय उच्चतम न्यायलय ने ये स्पष्ट किया था कि महिला को महिला कांस्टेबल द्वारा ही गार्ड किया जाना चाहिए तथा पुरुष और महिलाओं के लिए कारागृह अलग-अलग होने चाहिए. वहीं, गिरफ़्तार की गई महिला से पूछताछ सिर्फ़ महिला पुलिस की उपस्थिति में की जानी चाहिए.

नियम व दिशा-निर्देशों का पालन न करने पर पुलिस अधिकारी पर कानूनी प्रक्रिया का प्रावधान  

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हिरासत में हिंसा (Custodial Violence) हमेशा से एक चिंता का विषय रही है, जिसमें पुलिस व न्यायिक हिरासत में मृत्यु, बलात्कार व शोषण शामिल है. वहीं, अगर पुलिस अधिकारी हिरासत में लिए गए व्यक्ति या महिला का उत्पीड़न करता है, तो ये भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 330331 तथा 348 में दिए गए अपराध की श्रेणी में आता है. 

साथ ही भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 25 व 26 के तहत पुलिस द्वारा लिया गया अभियुक्त का पुलिस कस्टडी में बयान उसी के खिलाफ़ अपराध सिद्धि में प्रयोग नहीं किया जा सकता है. इसके अलावा, अगर कोई पुलिस अधिकारी अपनी ड्यूटी में कोताही बरतता है या दिशा-निर्देशों का पालन नहीं करता है, तो ये इंडियन पुलिस एक्ट 1861 की धारा 29 का उलंघन है, जिसके लिए सज़ा का भी प्रावधान है. 
साथ ही भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20 (3) में किसी भी अपराध के आरोपी व्यक्ति को बाध्य नहीं किया जाएगा ख़ुद के खिलाफ़ गवाह बनने के लिए.