ये बात तो धूम्रपान करने वाले भी जानते हैं कि सिगरेट पीना सेहत के लिए हानिकारक होता है. सिगरेट के पैकेट पर भी ये बात साफ़-साफ़ अक्षरों में लिखी देखी जा सकती है. आपको ऐसे कई लोग भी मिले होंगे, जिन्होंने सिगरेट पीने से शरीर में होने वाली नुकसान की पूरी गाथा ही बता दी होगी. लेकिन आज हम आपको दो ऐसे भाइयों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनको सिगरेट से नुकसान तो नहीं, बल्कि करोड़ों का मुनाफ़ा ज़रूर हुआ है. आप सोच रहे होंगे कि या तो हमारा दिमाग़ फिर गया है, या फिर हम धूम्रपान को प्रमोट करने वाले व्यक्तियों की लिस्ट में आते हैं. यकीन मानिए, इन दोनों ही बातों से दूर-दूर तक हमारा कोई नाता नहीं है. 

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उत्तर प्रदेश के नोएडा में रहने वाले दो भाइयों नमन गुप्ता और विपुल गुप्ता सिगरेट तो नहीं पीते, लेकिन अगर यूं कह लें कि सिगरेट ने इनकी ज़िंदगी बदल दी तो बिल्कुल गलत नहीं होगा. आइए आपको विस्तार से बताते हैं कि इन दोनों भाइयों ने मिलकर सिगरेट के इस्तेमाल से क्या क़माल दिखाया है.

Noida Brothers Cigarette Butt Business

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भारत में 120 मिलियन है स्मोकर्स की संख्या

आंकड़ों की बात करें, तो भारत में स्मोकिंग करने वालों की संख्या 120 मिलियन है. दुनिया भर में हर साल लगभग 4.5 ट्रिलियन सिगरेट बट्स फेंके जाते हैं. भारत में हर साल क़रीब तीन करोड़ टन सिगरेट वेस्ट निकलता है और एक छोटे से सिगरेट बट को डीकंपोज़ होने में 10 साल का वक्त लगता है. तो आप ज़रा सोचिए कि इतने करोड़ सिगरेट बट को डीकंपोज़ होने में कितने सालों का समय लगेगा? सोच में पड़ गए न?

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नोएडा के इन भाइयों ने ढूंढ लिया तरीका

दिमाग़ दौड़ाने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि नोएडा के रहने वाले दो भाई नमन गुप्ता और विपुल गुप्ता ने इसका तरीका ढूंढ लिया है.ये दोनों भाई ‘Code Effort Pvt. Ltd’ कंपनी चलाते हैं, जो सिगरेट पीने के बाद बचे सभी वेस्ट को रिसाइकल करती है. वे देश के अलग-अलग राज्यों से सिगरेट बट इकठ्ठा करते हैं और उसे डीकंपोज़ कर देते हैं. रिसाइकल करने के बाद वो इससे कुशन से लेकर सॉफ़्ट टॉयज़, मॉस्किटो रिपलेंट, की-चेन तक प्रोडक्ट्स के कई रेंज बनाते हैं. उनकी इस तकनीक से सिगरेट पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचा पाती. (Noida Brothers Cigarette Butt Business)

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ऐसे दिमाग़ में आया था ये फाड़ू आइडिया

कंपनी के को-फ़ाउंडर नमन को ये आइडिया तब सूझा था, जब वो दिल्ली यूनिवर्सिटी से कॉमर्स फ़ील्ड में ग्रेजुएशन कर रहे थे. एक पार्टी को अटेंड करने के बाद उन्होंने नोटिस किया कि कॉलेज के काफ़ी सारे स्टूडेंट्स सिगरेट पीते थे और उसकी बट को कैंपस या चाय की दुकानों के पास फ़ेंक देते थे. फिर जब उन्होंने इस चीज़ को गूगल किया तो पाया कि एक ‘सिगरेट बट’ को डीकंपोज़ होने में 10 साल का वक्त लगता है. उन्होंने इस पर और रिसर्च की. उनके दिमाग़ में सवाल आने लगे कि आख़िर सिगरेट में ऐसा क्या है, जो इसे डीकंपोज़ होने में एक दशक लग जाता है. 

इसके बाद उन्होंने पाया कि ‘सिगरेट बट’ के अंदर के फ़िल्टर वाला हिस्सा एक पॉलीमर सेल्युलोस एसिटेट से बना होता है. जब सिगरेट के सारे पार्ट्स को अलग किया जाता है. नमन इस पर अपनी रिसर्च करते रहे और 4 महीने के बाद उन्हें पता चला कि इस मैटेरियल को रिसाइकल करके उससे प्रोडक्ट्स बनाए जा सकते हैं. (Noida Brothers Cigarette Butt Business)

साल 2018 में बनाई अपनी कंपनी

रिसर्च के बाद नमन ने अपने इस आइडिया को हकीक़त में बदलने की सोची और साल 2018 में ‘कोड एफ़र्ट प्राइवेट लिमिटेड’ नाम की कंपनी की अपने भाई विपुल के साथ मिलकर शुरुआत की. चूंकि वो दिल्ली-एनसीआर के इलाके से ज़्यादा परिचित थे, तो उन्होंने इसकी शुरुआत यहीं से की. उन्होंने धीरे-धीरे इसके पैम्प्लेट बांटने शुरू किए और सिगरेट वेंडर्स को बताने की कोशिश की कि वो क्या करना चाह रहे हैं. इसके साथ ही उन्होंने इन वेंडर्स को एक सिगरेट वेस्ट कलेक्ट करने के लिए एक बिन भी दिया, जिसे वो ‘VBin’ कहते हैं. वेंडर्स को उन्होंने 250 रुपये प्रति किलो सिगरेट वेस्ट देने का वादा किया. इस बिन को उनके टीम मेंबर्स हर 15 दिन में ख़ाली करके सिगरेट बट इकठ्ठा करते हैं.  

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शुरुआत में हुई समस्या, फिर चल पड़ी गाड़ी

पहले महीने में उन्हें सिर्फ़ 10 ग्राम ही सिगरेट वेस्ट मिला. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपने काम के प्रति डटे रहे. समय के साथ उन्हें कॉर्पोरेट और कमर्शियल स्पेस का सपोर्ट मिलने लगा. ये स्टार्टअप देश भर में आपूर्तिकर्ताओं को विशिष्ट अनुबंध जारी करता है. इसमें कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर सहयोगी भी हैं, जिन्हें हर महीने थोक में कम से कम 30 किलो सिगरेट कचरे की आपूर्ति करनी होती है. इन सहयोगियों का हर जिले में 500 तैयार प्रोडक्ट्स बेचने का भी लक्ष्य है. मौजूदा समय में उनके पूरे देश में 100 से भी अधिक सप्लायर्स हैं और ये हर महीने 7000 किलो सिगरेट वेस्ट रिसीव करते हैं. ITC और मालबोरो जैसी सिगरेट बनाने वाली कंपनियां भी उनको अपना रिजेक्टेड माल बेच देती हैं. (Noida Brothers Cigarette Butt Business)

करोड़ों का है टर्नओवर

विपुल और नमन ने इस कंपनी की शुरुआत 20 लाख के इन्वेस्टमेंट से करी थी, लेकिन आज उनका क़रीब 2 करोड़ का टर्नओवर है. उनका रिसाइकलिंग प्लांट नोएडा के सेक्टर 134 में नांगली गांव में स्थित है. उनकी कंपनी में क़रीब 40-50 महिलाएं भी काम करती हैं. उनके प्रोडक्ट्स सिर्फ़ सोशल मीडिया पर बेचे जाते हैं. ये आपको अमेज़न, फ्लिपकार्ट या Myntra जैसी वेबसाइट्स पर नहीं मिलेंगे. उन्होंने हाल ही में अपनी वेबसाइट भी बनाई है. (Noida Brothers Cigarette Butt Business)

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विपुल और नमन की कंपनी की ये पहल वाकई क़ाबिल-ए-तारीफ़ है.