कभी किसी ने ये बात कही थी कि इस धरती पर कोई भी प्रजाति अगर ख़त्म होती है, तो उसका बुरा असर दूसरी प्रजातियों पर भी पड़ता है. आखिर में पृथ्वी को भी उसका नुक़सान उठाना पड़ता है. बस ये बात इंसानों के लिए सही नहीं है. इंसान अगर न रहें तो ये दुनिया और भी बेहतर हो जाएगी. हालांकि, ये बात अच्छी नहीं है लेकिन सही ज़रूर मालूम पड़ती है. ओडिशा के समुद्री तट का नज़ारा देखकर तो ऐसा ही लगता है. 

बंगाल की खाड़ी में ओडिशा के तट ओलिव रिडले कछुओं के अंडे देने की सबसे मुफ़ीद जगह है. मगर इंसानी गतिविधियों के कारण ये ज़गह न सिर्फ़ बरबाद होती जा रही थी, बल्कि ओलिव रिडले कछुओं की प्रजाति ही ख़तरे में पड़ गई थी. मगर कोरोना वायरस ने एक बार फिर से यहां बहार लौटा दी है. 

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दरअसल, कोरोना वायरस के कारण सबकुछ लॉकडाउन है. समुद्र तट पर कोई चहल-पहल नहीं है. ऐसे में ओडिशा के ऋषिकुल्या तट पर लुप्तप्राय ओलिव रिडलिस घोंसले खोदने और अंडे देने के लिए वापस आ गए हैं. 

वन विभाग के अनुसार, 2,78,502 से अधिक मां कछुए दिन-प्रतिदिन की घोंसले की गतिविधि का एक हिस्सा बन गए. मंगलवार की सुबह से 72,142 से अधिक ओलिव रिडले घोंसले खोदने और अंडे देने के लिए समुद्र तट पर पहुंचे हैं. 

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अब तक अपने अंडे देने वाले कछुओं की कुल संख्या 7.9 लाख से अधिक है. जबकि गहिरमथा में सामूहिक घोंसला ख़त्म हो गया है, ये ऋषिकुल्या में जारी है. अनुमान है कि इस साल लगभग छह करोड़ अंडे दिए जाएंगे. 

साथ ही वन विभाग ने इस साल सबसे अधिक कछुए देखे जाने का दावा भी किया है. 

‘प्रत्येक वैकल्पिक वर्ष या तो एक बुरा वर्ष होता है या एक अच्छा वर्ष. हालांकि, पिछले दो वर्षों में हमने घोंसले की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि देखी है. इस साल हमने अनुमान लगाया है कि ऋषिकुल्या समुद्र तट पर कम से कम 4.75 लाख कछुए घोंसले में आए थे.’ 

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लुप्तप्राय प्रजाति की संख़्या में इस तरह की बढ़ोतरी देखना यकीनन खुशी की बात है. उम्मीद है कि आगे भी इसी तरह से ओलिव रिडले कछुए यहां आते रहेंगे और इसके लिए कोरोना वायरस जैसी किसी महामारी की जरूरत नहीं पड़ेगी.