Pandit Ji Kitchen Meerut: अगर आपके सारे अंग काम कर रहे हैं फिर आपको जीवन बोझ या बहुत मुश्किल भरा लग रहा है तो ज़रा उनसे पूछिए जो दिव्यांग हैं. वो कैसे जीवन जी रहे हैं. क्योंकि उनके लिए हर दिन ज़िंदगी चुनौती से भरी है. हर किसी की नज़र में उनके लिए तरस होता है मगर किसी की नज़र में उनके लिए भरोसा नहीं होता है कि ये भी कुछ कर सकते हैं. इसलिए इन्हें हर कदम पर ख़ुद को प्रूफ़ करना होता है. जैसे उत्तर प्रदेश के मेरठ के रहने वाले अमित शर्मा ने किया.
अमित दिव्यांग हैं, जब कई कोशिश करने के बाद जॉब नहीं मिली तो इन्होंने ख़ुद ही कुछ करने की सोची और साल 2020 में ‘पंडित जी किचन’ (Pandit Ji Kitchen Meerut) की शुरुआत की. अमित अपने साथ-साथ अपने जैसे स्पेशल लोगों की भी मदद करना चाहते थे ताकि उन्हें भी जॉब के लिए भटकना न पड़े.
अमित ने द बेटर इंडिया को दिए इंटरव्यू में बताया,
मैंने पहले मेरठ में जॉब के लिए बहुत ट्राई किया, लेकिन किसी ने जॉब नहीं दी. तब मैंने अपना काम शुरू करने का सोचा. इसके पीछे मेरी सोच ये थी कि इससे दिव्यांग समाज को प्रेरणा मिलेगी और हम भले ही शरीर से कुछ कम हों मगर साथ मिलकर बहुत कुछ कर सकते हैं.
Pandit Ji Kitchen Meerut
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उन्होंने ‘पंडित जी किचन’ की शुरुआत के बारे में बताया,
मैंने खाने का बिज़नेस इसलिए शुरू किया क्योंकि मैंने देखा कि ऐसे कई दिव्यांग लोग हैं, जो खड़े होकर प्याज़ काट सकते हैं और दोनों से तो नहीं एक हाथ से काम कर सकते हैं. तब मैंने तीन-चार लोगों का ग्रुप बनाया और 2 साल पहले इस किचन की शुरुआत की.
अमित अपने किचन में डायनिंग के साथ-साथ होम डिलीवरी भी करते हैं, जिसके लिए वो ख़ुद भी जाते हैं. अमित ने जगह और अपने काम के बारे में बताया,
मैं ये किचन अपनी टीम के साथ बागपत बाईपास पर चलाता हूं. मेरे किचन में दिव्यांग लोगों को फ़्री में और कूड़ा उठाने वालों को 10-20 रुपये खाना खिलाया जाता है. कभी-कभी ऑर्डर आने पर मैं डिलीवरी देने भी जाता हूं.
‘पंडित जी किचन’ में सुबह 10 बजे से लेकर शाम के 8 बजे तक खाना मिलता है. लोगों को 10 बजे खाना देने के लिए इनकी टीम और ये सुबह 6 बजे से लग जाते हैं. पंडित जी किचन के खाने का स्वाद तो लोगों को पसंद आता है मगर अभी भी कम ही लोग आते हैं. इस पर अमित का कहना है कि,
हम मेहनत तो जमकर कर रहे हैं, लेकिन हमें अपनी मेहनत का फल नहीं मिल रहा है क्योंकि हमारे किचन के बारे में मेरठ के आस-पास के लोग जानते हैं मगर हमें उस तरह से सपोर्ट या भरोसा नहीं करते, जैसे सामान्य लोगों पर करते हैं. मैं कहूंगा कि हमारे प्रति समाज में जो हीन भावना है उसकी वजह से कहीं न कहीं हमारे बिज़नेस पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है. मैं चाहता हूं कि पंडित जी किचन की फ़्रैंचाइज़ी जगह-जगह पर खुले और ज़्यादा से ज़्यादा दिव्यांगजनों को काम मिले, जिससे वो आत्मनिर्भर बनें.
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आखिर में अमित कहते हैं,
‘पंख नहीं हैं पर उड़ना चाहते हैं और पैर नहीं हैं मगर चलना चाहते हैं’ आप थोड़ा सा तो सहारा दो, हम भी देश के लिए कुछ करना चाहते हैं’.
किसी के आगे हाथ फैलाने की जगह इन दिव्यांगजनों ने अपने कदमों को कुछ करने की दिशा में उठाया है. क्या आपको नहीं लगता कि हमें इन्हें प्यार, भरोसा, विश्वास और साथ देना चाहिए?