अफ़ग़ानिस्तान की पंजशीर घाटी हमेशा से ही तालिबान के लिए टेढ़ी खीर साबित हुई है. पंजशीर के लड़ाकों ने आज तक तालिबानियों को पंजशीर के क़रीब भी नहीं फटकने दिया है. हालांकि, तालिबानियों ने कई दफ़ा ‘पंजशीर घाटी’ को जीतने की कोशिशें की, लेकिन हर बार पंजशीर के मुजाहिदीन लड़ाकों ने तालिबानियों को पटक-पटक कर धोया है.

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20 साल बाद तालिबान ने आज भले ही पूरे अफ़ग़ानिस्तान पर कब्ज़ा कर लिया हो, लेकिन ‘पंजशीर घाटी’ को जीतना उसके लिए आज भी उतना ही मुश्किल है, जितना पहले था. अफ़ग़ानिस्तान के 34 प्रांतों में से पंजशीर एकमात्र ऐसा इलाक़ा है जो अब भी तालिबान के कब्ज़े में नहीं है. आख़िर ऐसा कैसे हो सकता है, वो कौन है जो तालिबानियों को इतने सालों से ‘पंजशीर घाटी’ में घुसने नहीं दे रहा है?

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दरअसल, अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के कब्ज़े के बाद राष्ट्रपति अब्दुल गनी देश छोड़कर भाग निकले थे. ऐसे में पंजशीर प्रांत से अफ़ग़ानिस्तान सरकार के पहले उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने ख़ुद को देश का राष्ट्रपति घोषित कर लिया था. सालेह ने कुछ दिन पहले ट्वीट कर ख़ुद को अफ़ग़ानिस्तान का कार्यवाहक राष्ट्रपति बताया था.

अमरुल्लाह सालेह! ये वही नाम है जिसने पिछले कई दशकों से तालिबानियों की नाक में दम कर रखा है. अमरुल्ला सालेह अफ़ग़ानिस्तान का उपराष्ट्रपति ही नहीं, बल्कि ‘पंजशीर घाटी’ का एक ट्रेंड मुजाहिदीन लड़ाका भी है, जो 20 साल की उम्र से ही ‘पंजशीर के शेर’ कहे जाने वाले अहमद शाह मसूद के लिए काम करता रहा है. अहमद शाह मसूद अब इस दुनिया में नहीं हैं. ऐसे में अमरुल्लाह सालेह और अहमद शाह मसूद का बेटा अहमद मसूद पंजशीर के प्रमुख लड़ाके हैं. अहमद शाह मसूद ने ही ‘नॉर्दन अलायंस’ की नींव रखी थी.

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आख़िर कहां है ये पंजशीर घाटी?

‘पंजशीर’ अफ़ग़ानिस्तान का वो इलाक़ा है जो चारों ओर से हिंदुकुश की पहाड़ियों से घिरा हुआ है. पंजशीर को ‘पंजशेर’ भी कहते हैं जिसका मतलब ‘5 शेरों की घाटी’ होता है. काबुल के उत्‍तर में 150 किमी की दूरी पर स्थित इस घाटी के बीच ‘पंजशीर नदी’ बहती है. माना जाता है कि 10वीं शताब्दी में 5 भाईयों ने बाढ़ के पानी को नियंत्रित कर गजनी के सुल्तान महमूद के लिए एक बांध बनाया था. इसी के बाद से इस इलाक़े को ‘पंजशीर घाटी’ के नाम से जाना जाता है.

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आज ‘पंजशीर घाटी’ में 1.5 लाख से अधिक लोग रहते हैं. पंजशीर के हर ज़िले में ताजिक जाति के लोग रहते हैं. ताजिक असल में अफ़ग़ानिस्तान के दूसरे सबसे बड़े एथनिक ग्रुप हैं, देश की आबादी में इनका हिस्‍सा 25-30% है. पंजशीर में हज़ारा समुदाय के लोग भी रहते हैं जिन्‍हें चंगेज ख़ान का वंशज माना जाता है. इसके अलावा पंजशीर में नूरिस्‍तानी, पशई जैसे समुदायों के लोग भी रहते हैं. 

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सात ज़िलों वाले ‘पंजशीर प्रांत’ के 512 गांवों में आज भी बिजली और पानी की सप्‍लाई नहीं है. यहां के लोग हर रोज कुछ घंटे जेनरेटर चलाकर काम चलाते हैं. पंजशीर की धरती के नीचे पन्‍ना का ऐसा भंडार है, जिसे अभी छुआ नहीं गया है. अमेरिका और सोवियत संघ इसी भंडार को हासिल करने की नाकाम कोशिश कर चुके हैं. इसीलिए ये क्षेत्र 1980 के दशक में सोवियत संघ और 1990 के दशक में तालिबान के ख़िलाफ़ प्रतिरोध का गढ़ बना रहा. इसलिए इस क्षेत्र को आज तक कोई जीत न सका. न सोवियत संघ, न अमेरिका और न तालिबान इस क्षेत्र पर कभी नियंत्रण कर सका. 

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‘पंजशीर घाटी’ क्षेत्र को ‘नॉर्दर्न एलायंस’ भी कहा जाता है. नॉर्दर्न एलायंस 1996 से लेकर 2001 तक काबुल पर तालिबान शासन का विरोध करने वाले विद्रोही समूहों का गठबंधन था. इस गठबंधन में अहमद शाह मसूद, मोहमम्द ख़ान, अमरुल्ला सालेह, करीम खलीली, अब्दुल राशिद दोस्तम, अब्दुल्ला अब्दुल्ला, मोहम्मद मोहकिक, अब्दुल कादिर, आसिफ़ मोहसेनी आदि शामिल थे. 

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अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के कब्ज़े के बाद अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद ने पश्चिमी देशों से मदद मांगी है. वॉशिंगटन पोस्ट में उन्होंने लिखा है, ‘मैं पंजशीर घाटी से लिख रहा हूं. मैं अपने पिता के नक़्शेकदम पर चलने को तैयार हूं. मुजाहिदीन लड़ाके एक बार फिर से तालिबान से लड़ने को तैयार हैं. हमारे पास गोला-बारूद और हथियारों के भंडार हैं, जिन्हें मैं अपने पिता के समय से ही जमा करता आ रहा हूं क्योंकि हम जानते थे कि ये दिन आ सकता है’.  

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रिपोर्ट में पंजशीर प्रांत के अधिकारियों ने बताया कि, पंजशीर के पास ठंड के अगले मौसम तक के लिए पर्याप्‍त खाना और मेडिकल सप्‍लाई है. पंजशीर के पास फ़िलहाल 6000 मुजाहिदीन लड़ाकों की संख्‍या है. तालिबान से मुक़ाबले के लिए हमें बड़े हथियारों की ज़रूरत है. 

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