Peon Become Professor in Same University in Bihar: इसमें कोई दो राय नहीं कि किसी की अच्छी किस्मत लिखी लिखाई आती है, तो किसी को अपनी किस्मत ख़ुद बनानी पड़ती है. वहीं, कुछ बड़ा करने के लिए बड़े ख़्वाब देखने पड़ते हैं और इसके लिए करनी पड़ती है दम भर मेहनत, क्योंकि बिना मेहनत कुछ हासिल नहीं होता.
सक्सेस स्टोरी की इस कड़ी में हम बताते हैं आपको बिहार के रहने वाले कमल किशोर मंडल की प्रेरक कहानी, जो जिस यूनिवर्सिटी में कभी चपरासी का काम किया करते थे और आज अपनी मेहनत से वहां के प्रोफ़ेसर हैं.
आइये, विस्तार से जानते हैं क्या है बिहार के कमल किशोर मंडल की पूरी कहानी.
चपरासी और नाइट गार्ड की नौकरी
Peon Become Professor in Same University in Bihar: बिहार के कमल किशोर मंडल की कहानी सच में प्रेरणादायक है. उनकी ये कहानी बताती है कि इंसान कुछ भी कर सकता है, बशर्ते उसमें लगन हो. कमल किशोर बिहार के रहने वाले हैं और वहां की तिलकमांझी भागलपुर युनिवर्सिटी में उनका चयन असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के तौर पर हुआ है. ये ख़बर जहां-जहां तक पहुंची लोग हैरानी से पड़ गए.
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें, तो कभी चपरासी और नाइट गार्ड की नौकरी करने वाले कमल किशोर का चयन Bihar State University Service Commission के ज़रिये हुआ है.
कैसे पूरा किया कमल किशोर ने ये सफ़र?
बहुत लोगों के मन में ये सवाल आ सकता है कि आख़िर कैसे एक चपरासी यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर बन गया. दरअसल, जिस विश्वविद्यालय में वो चपरासी की नौकरी कर रहे थे, वहीं उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की.
कमल किशोर ने 23 साल की उम्र में मुंगेर के RD & DJ College में नाइट गार्ड के रूप में काम शुरू किया था. इसी दौरान उन्होंने पॉलिटिकल साइंस में बीए किया. इसके बाद उन्हें तिलकमांझी यूनिवर्सिटी के अंबेडकर विचार और सामाजिक कार्य विभाग में ट्रासफ़र दिया गया. 2008 में वो इसी विश्वविद्यालय के चपरासी बनें. चपरासी का काम करते-करते उन्होंने एमए की डिग्री हासिल की और साल 2019 में उन्होंने पीएचडी की और इस साल यानी 2022 में वो उसी विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर बन गए.
पिता चाय की दुकान चलाते हैं
Peon Become Professor in Same University in Bihar: कमल किशोर मंडल बिहार के मुंडीचक (भागलपुर) के रहने वाले हैं. उनके पिता चाय की दुकान चलाते हैं. आर्थिक हालत ठीक न होने की वजह से कमल किशोर की चपरासी की नौकरी करनी पड़ी, लेकिन आगे बढ़ने की चाह हमेशा बनी रही. उन्होंने मेहनत करना नहीं छोड़ा.
वहीं, पीचएडी के बाद उन्होंने एनओसी ली और फिर प्रोफ़ेसर की वेकेंसी की काउंसिलिंग पूरी की. कमल किशोर मंडल की सफलता की कहानी आपको कैसी लगी, हमें कमेंट में बताना न भूलें.