हाल ही में हिमाचल प्रदेश के कृषि और जनजातीय कल्याण मंत्री राम लाल मारकंडा के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने के लिए स्पीति के काज़ा गांव के लगभग हर घर की एक महिला पर स्थानीय पुलिस ने केस दर्ज़ कर लिया है.   

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पुलिस ने महिला मंडल के 200 से अधिक सदस्यों के ख़िलाफ़ कानूनी कार्रवाई शुरू की है, जिन्होंने 9 जून को समित द्वारा तय किए गए क्वारंटीन नियमों का उल्लघंन करने का आरोप लगाते मंत्री और उनके दल को घाटी में एंट्री करने से रोक दिया था. लाहौल-स्पीति के विधायक मारकंडा उस दिन तो वहां से चले गए लेकिन अगले ही दिन पुलिस ने प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज कर ली, जिसका पता लोगों को तब चला जब उन्हें कुछ दिन पहले समन मिलना शुरू हुआ.  

काज़ा गांव की आबादी लगभग 1,700 है. 200 से अधिक के ख़िलाफ़ एफ़आईआर के साथ गांव की कुल आबादी के 10 फ़ीसदी लोग अब इस मामले में आरोपी हैं.   

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महिला मंडल की अध्यक्ष सोनम डोलमा भी आरोपियों की लिस्ट में शामिल हैं. उन्होंने कहा, ‘महिला प्रदर्शनकारियों की पहचान करने के लिए पुलिस हर घर में आ रही थी. इसलिए हमने स्वयं एक सूची प्रस्तुत की. नामों में लगभग हर गांव की महिलाएं शामिल हैं, और अब उन सभी पर केस हो चुका है.’  

हालांकि, इस मामले में अभी तक किसी की गिरफ़्तारी नहीं हुई है.  

जानिए क्या है पूरा विवाद?  

ज़्यादातर जनजातीय क्षेत्रों में स्थानीय संगठनों द्वारा किए गए सामूहिक निर्णय कभी-कभी सरकारी नियमों से ज़्यादा महत्व रखते हैं. स्पीति के मामले में एक स्थानीय समिति है जिसमें पांच मठों (गोम्पा) के सदस्य और अन्य समुदाय के नेता शामिल हैं. कोरोना वायरस के चलते समिति ने 15 मार्च तक बाहरी लोगों के प्रवेश पर रोक लगा दी. अप्रैल के अंत में जब सरकार ने हिमाचलियों को घर लौटने की अनुमति दी तो समिति ने सभी वापस आने वालों को अनिवार्य रूप से क्वारंटीन रखने का फ़ैसला किया.   

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9 जून को महिला मंडल, युवा मंडल और व्यापार मंडल के सदस्यों समेत अन्य लोग सरकार के साथ स्थानीय मुद्दों पर चर्चा करने के लिए गेट के पास जमा हुए. उसी वक़्त कृषि मंत्री मारकंडा का काफ़िला भी वहां पहुंच गया. उसके बाद मारकंडा पर क्वारंटीन नियमों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए आदिवासी महिलाओं ने प्रदर्शन शुरू कर दिया.  

मारकंडा ने Indianexpress को बताया कि उन्हें ऑफ़िशियल काम से शिमला वापस जाना था और वे क्वारंटीन में नहीं रह सकते थे, इसलिए वहां से चले गए. उन्होंने आरोप लगाया कि उनके ख़िलाफ़ विरोध को राजनीतिक रूप से उकसाया गया. उनका आरोप है कि कुछ प्रदर्शनकारियों ने कांग्रेस समर्थक नारे भी लगाए.  

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वहीं, अध्यक्ष सोनम डोलमा ने इन आरोपों से इनकार किया है. उनका कहना है कि कुछ लोग उनसे माफ़ी मांगने के लिए कह रहे हैं लेकिन जो काम उन्होंने किया ही नहीं उसके लिए माफ़ी क्यों मांगे. ये कोविड-19 के ख़िलाफ़ और एक गैर-राजनीतिक विरोध प्रदर्शन था.   

लाहौल-स्पीति के एसपी का कहना है कि राज्य के नियमों के तहत अंतर-राज्यीय यात्रा के लिए क्वारंटीन की ज़रूरत नही है. लेकिन इसके बाद भी लोगों ने मंत्री की एंट्री रोकी, जिसके कारण मामला दर्ज किया गया था.