भारत आज एक परमाणु संपन्न देश बन चुका है. आज भारत दुनिया का चौथा सबसे पावरफ़ुल देश बन चुका है. ‘स्पेस रिसर्च’ से लेकर ‘नूक्लियर एनर्जी’ तक भारत दुनिया के कई विकसित देशों को काफ़ी पीछे छोड़ चुका है. आज पूरी दुनिया की नज़र भारत के इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइज़ेशन (ISRO) और डिफ़ेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइज़ेशन (DRDO) पर टिकी हुई हैं. इसरो हर साल अंतरिक्ष के क्षेत्र में बड़े-बड़े कारनामे करता जा रहा है. आज हालत ये बन गये हैं कि रूस, अमेरिका समेत दुनिया के कई सुपरपावर देश इसरो पर निर्भर हैं. क्योंकि इसरो कम क़ीमत में सेटेलाईट लॉन्च करने के लिए जाना जाता है. भारत की इन बड़ी उपलब्धियों के पीछे हमारे वैज्ञानिकों की दिन रात की मेहनत है. होमी जहांगीर भाभा, विक्रम साराभाई और डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम वो नाम हैं जिनकी वजह से आज भारत को आज सुपरपावर बना है. (Rocket Boys)

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चलिए आज भारत के इन 3 महान वैज्ञानिकों के बारे में जान लेते हैं जिन्हें हमने समय के साथ भुला सा दिया है-

1- होमी जहांगीर भाभा

होमी जहांगीर भाभा (Homi Jehangir Bhabha) का जन्म 30 अक्टूबर 1909 को मुंबई के एक अमीर पारसी परिवार में हुआ था. उनके पिता जहांगीर भाभा एक जाने-माने वकील थे. ‘नूक्लियर फ़िज़िक्स’ का वो चमकता सितारा, जिसका नाम सुनते ही हर भारतवासी का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है. डॉ होमी जहांगीर भाभा ही वो शख्स थे, जिन्होंने भारत के ‘परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम’ की कल्पना की थी और भारत को परमाणु शक्ति सम्पन्न और वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्र में अग्रसर बनाने की नींव रखी थी. यही वजह है कि उन्हें ‘भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम’ का जनक कहा जाता है.

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होमी जहांगीर भाभा (Homi Jehangir Bhabha) न केवल वैज्ञानिक थे, बल्कि बहुमुखी प्रतिभा के धनी भी थे. वो इतने सादगी पसंद इंसान थे कि चपरासी तक को अपना ब्रीफ़केस नहीं उठाने देते थे. होमी जहांगीर भाभा की शख्सियत ऐसी थी कि नोबेल पुरस्कार विजेता सीवी रमन उन्हें भारत का ‘लियोनार्दो द विंची’ कहकर बुलाते थे. डॉक्टर भाभा 1950 से 1966 तक परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष थे. तब वो भारत सरकार के सचिव भी हुआ करते थे. (Rocket Boys)

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18 महीने में ‘परमाणु बम’ बनाने का दावा  

होमी जहांगीर भाभा ने निधन से 3 महीने पहले अपनी एक घोषणा से दुनिया के बड़े मुल्कों को चौंका दिया था. इस दौरान उन्होंने ‘ऑल इंडिया रेडियो’ पर घोषणा करते हुए कहा था कि अगर उन्हें छूट मिले, तो वो 18 महीने में ‘परमाणु बम’ बनाकर दिखा सकते हैं. भाभा हमेशा देश की सुरक्षा, ऊर्जा, कृषि और मेडिसिन के क्षेत्र में न्यूक्लियर एनर्जी के डेवलपमेंट का जिक्र करते थे. वो देश के विकास के लिए इसे ज़रूरी मानते थे. अगर उनका विमान क्रैश नहीं होता, तो भारत न्यूक्लियर साइंस की फ़ील्ड में कई बड़ी उपलब्धियां तो सालों पहले ही हासिल कर चुका होता.

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होमी जहांगीर भाभा की मौत के पीछे CIA का हाथ

24 जनवरी 1966 को भारतीय न्यूक्लियर प्रोग्राम के जनक होमी जहांगीर भाभा का एक प्लेन क्रैश में निधन हो गया था. एयर इंडिया का ये विमान मुंबई से न्यूयॉर्क जा रहा था, लेकिन अमेरिका पहुंचने से पहले ही ये विमान यूरोप के आलप्स माउंटेन रेंज में क्रैश हो गया. इस हादसे में होमी जहांगीर भाभा समेत 117 लोगों की जान गई थी. साल 2008 में जर्नलिस्ट ग्रेगरी डगलस ने अपनी किताब Conversation With the Crow में होमी जहांगीर भाभा की मौत के पीछे अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी CIA का हाथ होने का दावा किया था. ये भारत के ‘न्यूक्लियर एनर्जी प्रोग्राम’ को रोकने के लिए होमी जहांगीर भाभा की मौत की साजिश थी. (Rocket Boys)

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2- विक्रम साराभाई

विक्रम साराभाई (Vikram Sarabhai) ही वो शख़्स थे जिन्होंने होमी जहांगीर भाभा के सपने को पूरा करने का काम किया था. विक्रम साराभाई का जन्म 12 अगस्त, 1919 को गुजरात के अहमदाबाद में हुआ था. उनके पिता अंबालाल साराभाई बड़े उद्योगपति थे. उन्हें बचपन से ही गणित और विज्ञान में बेहद रुचि थी. गुजरात कालेज से इंटरमीडिएट तक विज्ञान की शिक्षा पूरी करने के बाद वो सन 1937 में इंग्लैंड चले गए. इंग्लैंड के मशहूर ‘कैंब्रिज यूनिवर्सिटी’ से पढ़ाई पूरी करने के बाद वो सन 1940 में भारत लौट आये. इसके बाद केवल 28 साल की उम्र में उन्होंने 11 नवंबर, 1947 को अहमदाबाद में ‘भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला’ की स्थापना की. (Rocket Boys)

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कास्मिक रे पर की रिसर्च

सन 1947 भारत की आज़ादी के साथ ही विक्रम साराभाई को भी अपनी रिसर्च की आज़ादी मिल गयी. अब वो पूरी तरह से अपने रिसर्च कार्य में लग चुके थे. इस बीच वो देश के महान विज्ञानी सर सीवी रमन के मार्गदर्शन में ‘कास्मिक रे’ पर अनुसंधान कार्य कर रहे थे. लेकिन ‘द्वितीय विश्व युद्ध’ की समाप्ति के बाद वो एक बार फिर ‘कैंब्रिज यूनिवर्सिटी’ चले गये. सन 1947 में ‘कैंब्रिज यूनिवर्सिटी’ ने ‘कास्मिक रे’ पर विक्रम साराभाई के शोध कार्य के लिए उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया. (Rocket Boys)

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विक्रम साराभाई चाहते थे कि भारत भी पश्चिमी देशों की तरह अंतरिक्ष के क्षेत्र में आगे बढ़े. साराभाई को शुरुआती दौर में भारत सरकार को इस कार्य के लिए मनाने में मुश्किलों का सामना भी करना पड़ा था, लेकिन 1957 में जब तत्कालीन सोवियत संघ (रूस) ने अपना उपग्रह अंतरिक्ष में भेजा, तो साराभाई के लिए भारत सरकार को राजी करना थोड़ा आसान हो गया. विक्रम साराभाई बतौर वैज्ञानिक स्पेस रिसर्च की अहमियत अच्छे से समझते थे. इसीलिए उनके प्रयासों से सन 1962 में ‘इंडियन नेशनल कमिटी फ़ॉर स्पेस रिसर्च’ का गठन किया, जिसे बाद में इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइज़ेशन (ISRO) के नाम से जाना गया.

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विक्रम साराभाई थे ISRO के जनक

विक्रम साराभाई (Vikram Sarabhai) भारत के प्रमुख वैज्ञानिक थे, जिन्होंने 83 वैज्ञानिक शोध पत्र लिखे और देशभर में 40 संस्थान खोले. इनको विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में सन 1966 में भारत सरकार द्वारा ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया गया था. विक्रम साराभाई ही वो शख़्स थे जिन्होंने अंतरिक्ष अनुसंधान (Space Research) के क्षेत्र में भारत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई थी. विक्रम साराभाई को इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइज़ेशन (ISRO) का जनक भी कहा जाता है.  (Rocket Boys)

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आज अगर अंतरिक्ष की दुनिया में भारत की गिनती विश्व के अग्रणी देशों में होती है, तो इसका श्रेय डा. विक्रम साराभाई को ही जाता है. उन्होंने भारत को अंतरिक्ष की बुलंदियों पर पहुंचाने का सपना देखा था. आज भारत न केवल ‘चांद’ बल्कि ‘मंगल ग्रह’ तक पहुंच चुका है. ये उनकी कोशिशों का ही नतीजा है कि आज भारत अंतरिक्ष में नये-नये कीर्तिमान गढ़ता जा रहा है. वो देश के उन चुनिंदा वैज्ञानिकों में से थे, जिन्होंने भारत को एक वैश्विक शक्ति के तौर पर उभरते हुए देखने का सपना देखा था. (Rocket Boys)

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3- एपीजे अब्दुल कलाम  

भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (A. P. J. Abdul Kalam) को पूरी दुनिया ‘मिसाइलमैन’ के नाम से जानती है. डॉ. कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में हुआ था. उनका पूरा नाम अबुल पाकिर जैनुल्लाब्दीन अब्दुल कलाम है. वो बेहद ग़रीब परिवार से ताल्लुक रखते थे. उन्हें बचपन में ही अपनी ज़िम्मेदारियों का एहसास हो गया था. उस वक्त उनके घर में बिजली तक नहीं हुआ करती थी और वो केरोसिन तेल का दीपक जलाकर पढ़ाई किया करते थे. अब्दुल कलाम मदरसे में पढ़ने के बाद सुबह रामेश्वरम के रेलवे स्टेशन और बस अड्डे से न्यूज़ पेपर लेकर रामेश्वरम की सड़कों पर अख़बार बेचते थे. 12वीं के बाद एपीजे अब्दुल कलाम ‘मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी’ में दाखिला लिया. इस दौरान उन्होंने वहां ‘एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग’ की पढ़ाई की थी.

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सन 1960 में ‘मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी’ से ‘एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग’ में स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद वो रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के ‘एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट इस्टैब्लिशमेंट’ से जुड़ गये. इस दौरान उन्होंने एक छोटा Hovercraft डिज़ाइन करने से अपने करियर की शुरुआत की. इस दौरान वो प्रसिद्ध अंतरिक्ष वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के अधीन काम करने वाली INCOSPAR समिति का हिस्सा भी रहे. डॉ. कलाम ने पहली बार 1965 में DRDO में स्वतंत्र रूप से एक विस्तार योग्य रॉकेट परियोजना पर काम शुरू किया था. 1969 में कलाम को सरकार की मंजूरी मिली और उन्होंने अधिक इंजीनियरों को शामिल करने के लिए कार्यक्रम का विस्तार किया 

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सन 1969 में डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) में स्थानांतरित कर दिया गया, जहां वो भारत के पहले सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SLV-III) परियोजना के डायरेक्टर थे, जिसने जुलाई 1980 में ‘रोहिणी उपग्रह’ को पृथ्वी की कक्षा के निकट सफ़लतापूर्वक स्थापित किया था. डॉ. कलाम ने पोखरण में दूसरी बार में ही परमाणु ऊर्जा के सहयोग से सफ़लतापूर्वक न्यूक्लियर विस्फोट किया था. (Rocket Boys)

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‘अग्नि’ और ‘पृथ्वी’ मिसाइल्स का श्रेय

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम भारत के ‘मिसाइल कार्यक्रम’ के जनक माने जाते हैं. उन्होंने 20 साल तक भारतीय अंतरिक्ष शोध संगठन (ISRO) में काम किया और क़रीब इतने ही साल तक रक्षा शोध और विकास संगठन (DRDO) में भी काम किया. इस दौरान वो 10 साल तक DRDO के अध्यक्ष रहे और उन्होंने रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार की भूमिका भी निभाई. डॉ. कलाम ने ‘अग्नि’ और ‘पृथ्वी’ जैसी मिसाइल्स को स्वदेशी तकनीक से बनाने में अहम भूमिका निभाई थी. डॉ. कलाम के अथक प्रयासों की वजह से ही भारत ने परमाणु हथियार के निर्माण की क्षमता प्राप्त करने में सफ़लता अर्जित की थी. (भारतीय वैज्ञानिक)

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जब बने भारत के राष्ट्रपति

18 जुलाई, 2002 को डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम 90 प्रतिशत बहुमत के साथ भारत के राष्ट्रपति चुने गये थे. इनका कार्यकाल 25 जुलाई, 2007 को समाप्त हुआ. डॉ. कलाम को सन 1997 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया था. डॉ. कलाम की डिक्शनरी में असंभव जैसा शब्द था ही नहीं. उन्होंने अपना पूरा जीवन देश हित में लगाया है. उनकी कर्मठता व ईमानदारी युवाओं की मिसाल बनी है. आज एपीजे अब्दुल कलाम के प्रयासों का ही नतीजा है कि भारत रक्षा विभाग मजबूती से खड़ा है. 

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होमी जहांगीर भाभा ‘भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम’ का जनक थे. डॉ. विक्रम साराभाई ‘ISRO’ के जनक थे, जबकि डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम भारत के ‘मिसाइल कार्यक्रम’ के जनक माने जाते हैं. कुछ ऐसी थी भारत के इन 3 महान वैज्ञानिकों की दास्तान. अगर आप इन 3 महान हस्तियों के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं तो Sony Liv की वेब सीरीज़ Rocket Boys देख सकते हैं, जो इन 3 वैज्ञानिकों की ज़िंदगी पर आधारित है.

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