25 जनवरी को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 2021 के ‘पद्मश्री पुरस्कारों’ की घोषणा कर दी है. इस साल विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े 119 लोगों को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘पद्म विभूषण’, ‘पद्म भूषण’ और ‘पद्मश्री’ पुरस्कारों से सम्मानित किया जायेगा.

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विजेताओं की इस सूची में एक नाम महाराष्ट्र की रहने वाली 72 वर्षीय सिंधुताई सपकाल का भी है, उन्हें ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया जायेगा. आमतौर पर लोग इन्हें ‘सिंधुताई’ या ‘माई’ के नाम से जानते हैं. सिंधुताई के बारे में ख़ास बात ये है कि वो अब तक क़रीब 2000 अनाथ बच्चों को गोद ले चुकी हैं. इसलिए उन्हें ‘हज़ारों अनाथों की मां’ भी कहा जाता है.

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72 वर्षीय सिंधुताई सपकाल का जन्म महाराष्ट्र के वर्धा ज़िले के एक ग़रीब परिवार में 14 नवंबर, 1948 को हुआ था. लड़की होने के कारण सिंधुताई को जन्म के बाद से ही भेदभाव का सामना करना पड़ा. उनकी ख़ुद की मां उनके बेटी होने और शिक्षा के ख़िलाफ़ थीं, लेकिन पिता चाहते थे कि वो पढ़े. ऐसे में वो बेटी को मां की नज़रों से बचाकर पढ़ने के लिए भेजते थे. मां को लगता था कि बेटी मवेशी चराने गई है.

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10 साल की उम्र में हो गयी थी शादी 

सिंधुताई जब मात्र 10 साल की थीं, तब परिवार ने पढ़ाई छुड़वाकर उम्र में उनसे 20 साल बड़े लड़के के साथ उनकी शादी करा दी. शादी के बाद वो अपने पति के साथ नवरगांव में रहने लगीं, लेकिन शादी के बाद से ही पति मारपीट और अपमानित करने लगा. रोज़-रोज़ की मारपीट और अपमान सहने के बाद आख़िरकार एक दिन सिंधुताई ने अपने हक के लिए लड़ने की हिम्मत दिखाई.

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इंडिया टुडे में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, सिंधुताई ने किशोरवस्था में वन विभाग और ज़मींदारों की तरफ़ से उत्पीड़न का सामना कर रही स्थानीय महिलाओं के हक में लड़ना शुरू किया. लेकिन, इस बीच जब वो 20 साल की उम्र में चौथी बार गर्भवती हुईं, तो गांव वालों ने ही उनके चरित्र पर ही सवाल उठाने शुरू कर दिए. अफ़फवाहों पर भरोसा कर पति मार-पीटकर 9 महीने की गर्भवती सिंधुताई को घर से निकाल दिया.

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मां और पति निकाल दिया था घर से  

इसके बाद सिंधुताई जब मदद के लिए मां के पास गईं, तो उन्होंने ने भी घर से निकाल दिया. ऐसे में उन्होंने किसी तरह एक तबेले में बेटी को जन्म दिया. बेटी को जन्म देने के बाद जब उन्होंने फिर से घर लौटने की कोशिश की तो मां ने बेइज्जत कर घर से निकाल दिया. मां और पति द्वारा घर से निकाले जाने के बाद उन्होंने रास्तों और ट्रेन में भीख मांगना शुरू कर दिया.  

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सिंधुताई ने अपनी मासूम बच्ची को जीवित रखने के लिए शमशान और तबेलों में रातें गुजारी. ट्रेन में भीख मांगने के बाद वो स्टेशन पर ही रात गुजरती थीं. एक दिन रेलवे स्टेशन पर सिंधुताई को एक बच्चा मिला. बस यहीं से उन्हें बेसहारा बच्चों की सहायता करने की प्रेरणा मिली. वो बच्चे जिनके खाने-पीने की चिंता करने वाला कोई नहीं था, सिंधुताई ने इन बच्चों को उस वक्त अपनाया जब वो ख़ुद अपने लिए आसरा जुटाने के लिए प्रयास कर रही थीं.

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ट्रेन में भीख़ मांगकर अनाथ बच्चों को पाला  

इसके बाद सिंधुताई ने क़रीब एक दर्जन अनाथ बच्चों को गोद ले लिया. ट्रेन में भीख़ मांगकर व मज़दूरी करके वो इन बच्चों का पेट भरने लगीं. धीरे-धीर बच्चों की संख्या बढ़ने लगीं और सिंधुताई के नेक काम को पहचान मिलने लगी. इसके बाद सन 1970 में उनके शुभचिंतकों ने सिंधुताई को चिकलदारा में पहला आश्रम खोलने में मदद की. सिंधुताई का पहला एनजीओ ‘सावित्रीबाई फुले गर्ल्स हॉस्टल’ भी चिकलदारा में ही है.

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300 से अधिक दामाद, 150 से अधिक बहुएं और 1500 से अधिक पोते-पोतियां  

72 साल की हो चुकी सिंधुताई ने आज अपना पूरा जीवन अनाथों के नाम कर दिया है. उनके गोद लिए कई बच्चे आज वकील और डॉक्टर भी हैं. सिंधुताई आज अकेली नहीं हैं, बल्कि उनके पास बहुत बड़ा परिवार है. ये सभी बच्चे उन्हें माई कहकर बुलाते हैं. इसमें 300 से अधिक दामाद, तो 150 से अधिक बहुएं हैं. इनसे उनके 1500 से अधिक पोते-पोतियां भी हैं.  

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‘पद्मश्री अवॉर्ड’ मिलने से पहले सिंधुताई को उनके नेक कार्यों के लिए 500 से अधिक सम्मानों से नवाजा जा चुका है. आज उनके नाम पर 6 संस्थाएं चलती हैं जो अनाथ बच्चों की मदद करती हैं. सिंधुताई की संस्था में ‘अनाथ’ शब्द का इस्तेमाल वर्जित है. बच्चे उन्हें ताई (मां) कहकर बुलाते हैं. इन आश्रमों में विधवा महिलाओं को भी आसरा मिलता है. वो खाना बनाने से लेकर बच्चों की देखरेख का काम करती हैं.