हम अक्सर अपने आसपास बहुत से ग़रीब बच्चों को नंगे पांव चलते-फिरते देखते हैं. धूप हो या बारिश या फिर सर्दी, ये मासूम बच्चे बिना जूते-चप्पलों के ही सड़कों पर घूमते नज़र आते हैं. इनके पैरों के तलवे तक उधड़ तक जाते हैं. (Sia Godika donates old Footwear to poor Sole Warriors)

कुछ ऐसा ही मंज़र बेंगलुरु के कोरमंगला में सिया गोडिका नाम की 13 वर्षीय लड़की ने भी देखा था. वहां कंस्ट्रक्शन का काम कर रहे मज़दूरों के बच्चे नंगे पांव घूम रहे थे. उनके तलवों की दरारें देख सिया अपने घर आकर पुराने फ़ुटवियर ढूंढने लगीं. तब उन्हें मालूम पड़ा कि उनके पास बहुत से एक्स्ट्रा जूते-चप्पल हैं, जिन्हें वो पहनती तक नहीं. इस एहसास ने उन्हें एक नेक मुहिम शुरू करने का हौसला दिया.

साल 2019 में सिया ने अपने माता-पिता और वॉलेंटियर्स की मदद से ‘सोल वारियर्स’ अभियान शुरू किया, जिसका उद्देश्य था, ‘Donate A Sole, Save A Soul.’

लोगों से पुराने फ़ुटवियर इकट्ठा कर ज़रूरतमंदों तक पहुंचाती हैं

सिया अपने NGO के ज़रिए लोगों के पुराने फ़ुटवियर इकट्ठा करती हैं, फिर उन्हें ठीक करके ज़रूरतमंदों को डोनेट करती हैं.

वो कहती हैं, ‘ये एक बड़ी समस्या है, जिससे काफ़ी तादाद में लोग प्रभावित हैं. इस हल तलाशना ज़रूरी है. मैं सोल वारियर्स के ज़रिए यही करने की कोशिश कर रही हूं.’

Sia Godika donates old Footwear to poor Sole Warriors

सिया ने जब इस मुहिम की शुरुआत की तो उन्होंने ख़ुद ही अपने पोस्टर बनाए और वॉलेंटियर्स से WhatsApp ग्रुप्स के ज़रिए जुड़ीं. महज़ महीनेभर में उन्होंने 500 जोड़ी फ़ुटवियर इकट्ठा कर लिया. फिर जैसे-जैसे दूसरे लोगों तक उनकी ये मुहिम पहुंची, डोनेट करने वालों की तादाद बढ़ गई.

मुंबई-चेन्नई तक पहुंच गई मुहिम

बेंगलुरु में सिया को काफ़ी अच्छा रिस्पॉन्स मिला. उनका मिशन मुंबई और चेन्नई जैसे शहरों तक पहुंच गया. आज की तारीख में ‘सोल वारियर्स’ ने 15,000 से ज़्यादा जोड़ी फ़ुटवियर इकट्ठा कर लोगों तक पहुंचा दिए हैं. ये संख्या लगातार बढ़ रही है.

सिया को उनके असाधारण काम के लिए डायना अवार्ड और डायना लिगेसी अवार्ड से सम्मानित किया गया. अब सिया का प्लान अपनी इस मुहिम को भारत से बाहर अमेरिका और पश्चिमी अफ़्रीका तक ले जाने का है.

वो कहती हैं, ‘अगर हम एक दूसरे की मदद करेंगे तो किसी को भी फिर से नंगे पैर काम करने या स्कूल जाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी.’

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