बर्फ़ के एक ब्लॉक को घूरता पिता और चारों ओर फ़र्श पर फ़ैला पानी, ये चित्रण रविवार दोपहर यूपी के औरैया शवगृह का है. झारखंड के पलामू के रहने वाले 43 साल के सुदामा यादव अपने बेटे के शव को लेने यहां पहुंचे थे. अंदर पोस्टमार्टम परीक्षण अभी भी जारी था. लेकिन सुदामा के भीतर शायद इस वक़्त को चीर देने का गुस्सा भरा था. वो बेटे की मौत का दोष किसे दें? लॉकडाउन को या ख़ुद की ग़रीबी को. 

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सुदामा पलामू में एक किसान हैं. उन्होंने बताया कि अपने बेटे के शव को लेने यहां पहुंचने के लिए उन्हें एक कार चालक को 19,000 रुपये देने पड़े, तब जाकर वो उन्हें और उनके जीजा गुड्डू यादव को यहां लाया. 

सुदामा यहां अपने बड़े बेटे नीतीश के शव को लेने पहुंचे थे. 21 साल के नीतीश उन 26 प्रवासी मज़दूरों में से एक थे, जिनकी शनिवार को औरेया में हुए सड़क हादसे में मौत हो गई थी. ये लोग राजस्थान और दिल्ली से अपने-अपने घर लौट रहे थे. 

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नीतीश जयपुर में एक मार्बल फ़ैक्टरी में काम करते थे. सुदामा ने कहा, ‘मैंने आखिरी बार अपने बेटे से शुक्रवार को क़रीब रात 8 बजे बात की. उसने बताया कि वो गया (बिहार) के लिए एक ट्रक में सवार हुआ था और अगले दिन पहुंच जाएगा.’ 

‘शनिवार सुबह, मैंने टीवी पर देखा कि एक सड़क दुर्घटना हुई थी और उसमें शामिल एक ट्रक राजस्थान से आ रहा था. मैंने तुरंत अपने बेटे को कॉल किया पर उसका फ़ोन स्विच ऑफ़ था. मैंने अपने बेटे के साथ काम करने वाले दूसरे शख़्स को फ़ोन किया तो उसने बताया कि मेरा बेटा अब इस दुनिया में नहीं रहा.’ 

सुदामा और गुड्डू को औरैया पहुंचाने वाला ड्राइवर वापस झारखंड चला गया, क्योंकि जिला प्रशासन ने उनके बेटे के लिए परिवहन व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए कहा. शव को बाद में एक एसी एंबुलेंस में रखा गया. 

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सुदामा की एक बेटी और बेटा और भी हैं. बेटी ने हाल ही में स्कूल की पढ़ाई पूरी की है और बेटा अभी 8वीं में पढ़ रहा है. सुदामा ने बताया कि, ‘मेरे बड़े बेटे नीतीश ने परिवार की आर्थिक मदद करने के लिए 7वीं के बाद पढ़ाई छोड़कर काम करना शुरू कर दिया था. लॉकडाउन के दो महीने बाद तक उसे सैलरी नहीं मिली. मैंने उसे घर लौटने के लिए 13 मई को तीन हज़ार रुपये भेजे थे.’ 

शवगृह के अधिकारियों ने बताया कि कुछ शवों को बर्फ़ के ब्लॉक पर रखकर ट्रकों में भेज दिया गया था. औरेया के अतिरिक्त एसपी कमलेश कुमार दीक्षित ने कहा कि किसी भी शव को खुले ट्रक में नहीं भेजा गया है. उन्होंने कहा, ‘कुछ शवों को कवर डीसीएम ट्रकों में भेजा गया है, कुछ को एसयूवी में लेकिन किसी को भी खुले ट्रक में नहीं भेजा गया है.’ 

SHO दिनेश कुमार ने बताया कि शवों की पहचान के लिए घायलों की मदद ली गई. कुछ की पहचान उनकी जेब में पड़ी पेपर चिट्स की मदद से गई, उसमें फ़ोन नंबर थे. दो शवों को छोड़कर बाकी सभी शवों को कॉन्स्टेबल के साथ भेजा गया है.