बीते रविवार को भारत की तीनों सेनाओं में अपना शौर्य कौशल दिखाने वाले भारतीय सेना के इकलौते कर्नल पृथीपाल सिंह गिल (Colonel Prithipal Singh Gill) का 100 साल की उम्र में निधन हो गया. रिटायर्ड कर्नल सिंह इसी महीने 11 दिसंबर को 101 साल के होने वाले थे, लेकिन उससे पहले ही भारतीय सेना का ये शेर हमें हमेशा-हमेशा के लिए छोड़ गया. परिजनों ने बताया कि वो पिछले कई दिनों से बीमार चल रहे थे. रविवार दोपहर क़रीब 2:00 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली. रविवार को ही उनका अंतिम संस्कार चंडीगढ़ के सेक्टर 25 श्मशान घाट में किया गया. कर्नल पृथीपाल सिंह गिल तीनों सेनाओं में अपना शौर्य कौशल दिखाने के साथ ही ‘द्वितीय विश्व युद्ध’ में अपनी सेवाएं दे चुके थे.
चलिए आज हम आपको इसी ‘सुपर हीरो’ की कहानी बताने जा रहे हैं जिनकी बहादुरी पर हर हिंदुस्तानी को गर्व है.
भारतीय सेना के रिटायर्ड कर्नल पृथीपाल सिंह गिल (Colonel Prithipal Singh Gill) ने साल 1942 में ‘रॉयल इंडियन एयरफ़ोर्स’ में बतौर पायलट अपने सैन्य करियर की शुरुआत की थी. किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि ये व्यक्ति अपने सपनों की उड़ान इस कदर भरेगा कि, उसके पंखों की फड़फड़ाहट धरती से लेकर जल और आकाश तक में हलचल मचा देगी. जी हां, साल 1920 में पटियाला में जन्मे पृथीपाल सिंह भारतीय सेना के इकलौते ऐसे कर्नल थे, जिन्होंने तीनों सेनाओं के साथ ही पैरामिलिट्री फ़ोर्स में भी अपना शौर्य दिखाया है.
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पिता के डर ने ज्वाइन कराई नेवी
ऐसे खुले भारतीय सेना के दरवाज़े
दुश्मन के इलाके में घुसकर दिखाया था ज़िंदादिली का प्रदर्शन
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पृथीपाल ने अपने जीवन में सेना में दिखाए अपने पराक्रम और शूरवीरता के बारे में अपनी जिंदगी में कभी बात नहीं की. उनके इकलौते बेटे डॉ. अजय पाल सिंह ने एक बार कहा था कि, उन्होंने अपने पिता से दूसरे विश्व युद्ध या भारत पाक युद्ध (1965) के बारे में शायद ही कोई कहानी सुनी हो, लेकिन कर्नल गिल पर एक स्केच में उनकी रेजिमेंट के इतिहासकार ब्रिगेडियर गखल कहते हैं, ‘1965 के युद्ध के दौरान दुश्मन की कार्रवाई से उनकी रेजिमेंट की चार तोपों को काट दिया गया था. कर्नल गिल ने व्यक्तिगत रूप से चार तोपों को पुनः प्राप्त करने के लिए एक मिशन का नेतृत्व किया. हालांकि, उनकी बहादुरी के लिए उन्हें कोई पुरस्कार नहीं मिला था’.
कर्नल पृथीपाल सिंह गिल 11 दिसंबर 2021 को उम्र में शतक की दहलीज़ पार कर अपना 101वां जन्मदिन मनाने वाले थे. लेकिन, क़िस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था और भारतीय सेना का ये शेर हमें हमेशा-हमेशा के लिए छोड़ गया.