तंबाकू जानलेवा है… आज ही छोड़ें…

भारतीय सिनेमाघरों में फ़िल्म शुरू होने से पहले ‘नो स्मोकिंग’ के विज्ञापन तो आपने देखे ही होंगे. इस विज्ञापन को बड़े परदे पर बार-बार दिखाए जाने से लोगों के अच्छे खासे मूड की बैंड बज जाती है. ये ख़ासकर उन लोगों को बहुत ज़्यादा परेशान करता है जो स्मोकिंग या किसी भी तरह के तंबाकू के सेवन से कोसों दूर हैं. लेकिन सच तो यही है कि ये विज्ञापन लोगों को जागरुक करने के लिए बनाया गया है.

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इस विज्ञापन में मुकेश नाम के एक कैंसर पीड़ित की कहानी दिखाई गई है. मुकेश को अत्यधिक मात्रा में तंबाकू के सेवन से कैंसर हो गया था. ये विज्ञापन आपको ज़रूर याद होगा और आप इसे कभी भूल नहीं सकेंगे. आज कई लोग ऐसे भी हैं जो मुकेश का मज़ाक उड़ाते हैं, लेकिन उन्हें मुकेश की दर्दनाक मौत के बारे में कोई जानकारी नहीं है.

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मुकेश की असल कहानी है बेहद दर्दनाक  

तंबाकू के इस विज्ञापन में दिखने वाला कोई एक्टर नहीं, बल्कि महाराष्ट्र के भुसावल शहर का रहने वाला नौजवान मुकेश था. मुकेश का पूरा नाम मुकेश हराने (Mukesh Harane) था. बेहद साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाले मुकेश को ग़लत संगत के चलते गुटखा चबाने की लत लग गई थी. इसी आदत ने उसकी ज़िंदगी बर्बाद कर दी. मुकेश अपने परिवार के लिए कमाने वाला एक मात्र स्रोत था, उनके पिता मज़दूर थे.

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साल 2009 में भारत में जब ‘तंबाकू विरोधी अभियान’ के लिए एक विज्ञापन बनाया जा रहा था तब मुकेश मुंबई के अस्पताल में भर्ती थे. इस दौरान मुकेश के परिवार से उनका वीडियो इस विज्ञापन में शामिल करने की अनुमति ली गई थी. जब मुकेश की वीडियो ग्राफ़ी के लिए अनुमति ली गई तब उनके पास कहने के लिए बेहद कम शब्द थे.  

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वीडियो में मुकेश कहते हैं, ‘मेरा नाम मुकेश है. मैंने सिर्फ़ 1 साल गुटखा चबाया और मुझे कैंसर हो गया. मेरा ऑपरेशन हुआ है. शायद में इसके आगे बोल नहीं सकूंगा’. ये मुकेश के आख़िरी शब्द थे.

गुटखा चबाने के 1 साल बाद मौत  

27 अक्टूबर, 2009 को कैंसर के चलते मुकेश ने केवल 24 साल की उम्र में दम तोड़ दिया था. इस दौरान सबसे हैरानी की बात ये थी कि मुकेश को तंबाकू की लत लगने और मृत्यु के बीच का समय केवल 1 साल था. मतलब ये कि गुटखा चबाने के 1 साल बाद ही मुकेश की मौत हो गयी थी.

मुकेश की मौत को लेकर असमंजस  

साल 2017 में रेडियो स्टेशन रेड FM से बातचीत के दौरान मुकेश हरारे के भाई मंगेश ने कहा कि, ‘मुकेश को केंसर नहीं था, बल्कि उसे फूड पाइप का इंफ़ेक्शन था. हमने मुकेश को बुखार आने पर भर्ती किया था. हमारे पास उसके डाक्यूमेंट्स भी हैं जिनसे ये साफ़ होता है कि मुकेश को कभी कैंसर हुआ ही नहीं. विज्ञापन के लिए उनके परिवार को कोई कोई पैसे भी नहीं दिया गया था’.

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इस बात की पुष्टि के लिए जब रेडियो स्टेशन रेड FM ने मुंबई के उस अस्पताल में भी फ़ोन करके डॉक्टर चतुर्वेदी से बात की. इस दौरान डॉक्टर चतुर्वेदी ने बताया कि, मुकेश को कैंसर था और उसका बाकायदा इलाज भी किया गया था. हमारे पास उनके डाक्यूमेंट्स भी हैं जिनसे ये साबित हो जाएगा कि मुकेश की मौत कैंसर की वजह से ही हुई थी.  

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साल 2012 में नेशनल ऑर्गेनाइजेशन फॉर टोबैको इरडिकेशन (नोट) ने देशभर के सभी सिनेमाघरों में ‘मुकेश’ और ‘स्पंज’ के विज्ञापन को फ़िल्म प्रर्दशन के दौरान अनिवार्य कर दिया था, जिसे अक्टूबर 2013 जारी रखा गया. आज भी देश के कई कई सिनेमाघरों में ‘मुकेश’ का विज्ञापन दिखाया जाता है.

WHO की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, दुनियाभर में प्रतिवर्ष तंबाकू के सेवन से 60 लाख लोगों की मौत हो जाती है. भारत में इसकी तादात सबसे अधिक है.

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