UPSC Success Story Of IAS Ramesh Gholap: मंज़िलें कदमों से नहीं, हौसलों से पाई जाती है. इस बात का सटीक उदाहरण हैं IAS रमेश घोलप, जिनका बचपन ग़रीबी की जंजीरों में जकड़ा था. कम उम्र में ही पोलियो हो गया. पिता शराब की लत का शिकार थे और घर चलाने के लिए वो ख़ुद मां के साथ चूड़ियां बेचने को मजबूर थे. मगर इन सबके बावजूद वो न सिर्फ़ अपनी मंज़िल की ओर चले, बल्क़ि उन्होंने ऐसी उड़ान भरी कि UPSC का एग्ज़ाम क्लियर कर लिया.

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आज हम आपको IAS रमेश घोलप की संघर्ष भरी दास्तां से रू-ब-रू कराएंगे.

चूड़ियां बेचकर चलता था घर

रमेश घोलप, महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के वारसी तहसील के महागांव में पैदा हुए थे. पिता साइकिल रिपेयरिंग की दुकान चलाते थे. शराब की बुरी लत के आगे उन्हें अपना परिवार भी नहीं दिखता था. दो वक़्त की रोटी भी परिवार को बमुश्किल नसीब थी, उस पर डेढ़ साल की उम्र में रमेश का बांया पैर पोलियों की चपेट में आ गया. घर का खर्च निकालने के लिए रमेश की मां गांव-गांव जाकर चूड़ियां बेचती थीं.

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रमेश और उनके भाई भी इस काम में अपनी मां का हाथ बंटाते थे. रमेश मां के साथ नंगे पांव गांव-गांव घूम कर ‘चूड़ियां ले लो चूड़ियां’ की आवाज़ देता रहते थे. इस दौरान कुछ अच्छा था तो ये कि रमेश को पढ़ने का शौक था. वो गांव के ही प्राथमिक विद्यालय में पढ़ते थे. हालांकि, गांव में आगे की पढ़ाई का स्कोप नहीं था. ऐसे में वो आगे की पढ़ाई के लिए अपने चाचा के घर चले गए.

पिता के अंतिम संस्कार में भी आने के पैसे नहीं थे

रमेश जब 12वीं का एग्ज़ाम देने वाले थे, तब उनके पिता का निधन हो गया. अंतिम संस्कार के लिए उन्हें गांव वापस लौटना था. एक दिव्यांग के लिए किराया 2 रुपये था. मगर उस वक़्त इतना भी पैसा रमेश के पास नहीं था. पड़ोसियों की मदद से वो किसी तरह गांव लौटे और पिता के अंतिम संस्कार में शामिल हुए.

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इस दौरान रमेश के एग्ज़ाम भी थे, मगर ऐसे हालात में उनका वापस जाने का मन नहीं था. मगर मां के समझाने पर वो परीक्षा में शामिल हुए. 12वीं की परीक्षा में उन्होंने 88.5 प्रतिशत अंक प्राप्त किए. इसके बाद उन्होंने डीएड और ग्रेजुएशन भी पूरा किया. इसकी बदौलत वो 2009 में एक अध्यापक बन चुके थे.

नौकरी छोड़कर करने लगे UPSC की तैयारी

भारत में सरकारी नौकरी मिलते ही इंसान जीवन को सफ़ल मान लेता है. फिर रमेश जिस आर्थिक स्थिति से निकले थे, उसमें सरकारी नौकरी वाक़ई किसी वरदान से कम नहीं था. मगर रमेश को अभी कुछ बड़ा करना था. ऐसे मे वो अपनी नौकरी छोड़कर यूपीएएससी की तैयारी के लिए पुणे चले गए.

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UPSC Success Story Of IAS Ramesh Gholap

रमेश अपने खर्चों को पूरा करने के लिए पोस्टर तक पेंट करते थे. हालांकि, रमेश की ये सारी मेहनत ज़ाया नहीं गई. साल 2011 में उनका सेलेक्शन आईएएस में हो गया. एक लड़का जिसने कभी अपनी मां के साथ चूड़ियां बेची थीं, जो कभी पोस्टर पेंट करता था आज वो आईएएस ऑफिसर रमेश गोरख घोलप बन चुका था. उनकी ऑल इंडिया 287 रैंक आई थी.

IAS रमेश घोलप हर उस शख़्स के लिए प्रेरणा हैं, जो ज़िंदगी में कुछ ऊंचा मुक़ाम हासिल करना चाहता है. रमेश की कहानी साबित करती है कि अगर आप मन से मज़बूत हैं तो शरीर की दिव्यांगता आपको आगे बढ़ने से कभी रोक न हीं सकती है.

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