पूर्वी उत्तर प्रदेश के के नक्शे पर आपको हर जगह माफ़ियाओं के निशान मिल जाएंगे. पूरा पूर्वांचल एक से बढ़कर एक बदमाशों के कारनामों और कहानियों से पटा पड़ा है. मगर जो नाम कहर बरपा कर श्रीप्रकाश शुक्ला (Shri Prakash Shukla) ने कमाया, उस मुकाम तक दूसरा कोई नहीं पहुंच पाया. महज़ 25 साल की उम्र में पुलिस एनकाउंटर में मारे गए इस अपराधी के खूंखार क़िस्से तो यूपी की राजधानी लखनऊ में आज भी सुनाए जाते हैं.

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मास्टर का लड़का कैसे बना हत्यारा?

श्रीप्रकाश शुक्ला (Shri Prakash Shukla) के पिता गोरखपुर के मामखोर गांव में मास्टर थे. शुक्ला सेहत का तगड़ा था और पहलवानी का शौक़ रखता था. अखाड़ों में वो अपना दम-खम दिखाता रहता था. मगर एक दिन जब उसने सड़क पर अपनी ताकत इस्तेमाल की, तो नतीजा एक शख़्स की मौत के रूप में सामने आया.

दरअसल, 1993 की बात है. कहते हैं कि शुक्ला की बहन को एक राकेश तिवारी नाम के लफंगे ने छेड़ दिया था. 20 साल के श्रीप्रकाश को इस बात पर इतना ग़ुस्सा आया कि उसने तिवारी को सड़क गिरा-गिराकर मारा. इतना कि उसकी मौत हो गई. इस कांड के बाद शुक्ला देश से भागकर बैंकॉक पहुंच गया.

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श्रीप्रकाश (Shri Prakash Shukla) भारत वापस लौटा, मगर अब वो किसी मास्टर का बेटा नहीं, बल्कि एक उभरता अपराधी था. उस वक़्त यूपी के अपराध जगत में दो नाम सबसे ज़्यादा चर्चा में रहते थे. हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र प्रताप शाही. ये दोनों ही नहीं जानते थे कि शुक्ला जुर्म की दुनिया में इन सबको पीछे छोड़कर आगे निकल जाएगा. 

शुक्ला ने एक के बाद एक हत्याएं करना शुरू कीं. साल 1997 में उसने वीरेंद्र शाही को गोलियों से भून डाला. दिन-दहाड़े हुई इस हत्या ने पूरी प्रदेश में शुक्ला के नाम की दहशत फैला दी. फिर अपहरण और फ़िरौती का दौर शुरू हुआ. 

विधानसभा के पास बने होटल में गोलियों की तड़तड़ाहट

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BBC की रिपोर्ट के मुताबिक, 1 अगस्त, 1997 को यूपी विधानसभा का सत्र चल रहा था. पास में दिलीप होटल था, जहां उसने तीन लोगों को गोलियों से उड़ा दिया. कहते हैं शुक्ला ने वहां AK-47 की गोलियों से 100 से ऊपर फ़ायर किए. इसकी आवाज़ विधानसभा तक पहुंची थी. इसके बाद उसने बिहार सरकार में बाहुबली मंत्री बृज बिहारी प्रसाद का खुलेआम क़त्म कर दिया.

मुख्यमंंत्री को मारने की सुपारी ली, हुआ STF का गठन

श्रीप्रकाश शुक्ला का उस वक़्त ऐसा ख़ौफ़ हो गया था कि रेलवे ठेकों का टेंडर कोई दूसरा लेना का सोच भी नहीं सकता था. मगर शुक्ला को अभी और बड़ा नाम कमाना था. शायद यही वजह थी कि उसने तत्कालीन यूपी सीएम कल्याण सिंह की सुपारी उठा ली. क़ीमत थी 5 करोड़ रुपये. 

ये बात जैसे ही पुलिस तक पहुंची, तो हड़कंप मच गया. सब जानते थे कि शुक्ला का गैंग इतना क़ाबिल है कि मुख्यमंत्री की सुरक्षा में भी सेंध लगा सकता है. ऐसे में उसे पकड़ना अब ज़रूरी हो गया. कहते हैं उस वक़्त STF यानि स्पेशल टास्क फ़ोर्स वजूद में आई. अब ज़िंदा या मुर्दा, शुक्ला का चैप्टर ख़त्म करना ही था. 

श्री प्रकाश शुक्ला (Shri Prakash Shukla) का सुनील शेट्टी कनेक्शन

एसटीएफ़ शुक्ला की तलाश में जुट गई. मगर उनके पास श्रीप्रकाश की पहचान करने के लिए कोई तस्वीर नहीं थी. मालूम पड़ा कि श्रीप्रकाश कभी अपने एक रिश्तेदार की बर्थडे पार्टी में गया था. वहां उसकी एक तस्वीर खींची गई थी. मगर किसी में भी हिम्मत नहीं थी कि वो तस्वीर पुलिस को दे. हालांकि, एसटीएफ ने दबाव डालकर तस्वीर ली और वादा किया कि उन रिश्तेदारों का नाम नहीं आएगा.

ऐसे में एसटीएफ ने लखनऊ के हज़रतगंज इलाके में एक स्डूडियो में फ़ोटो को एडिट करवाया. जिस फ़ेमस तस्वीर को लोग देखते हैं, उसमें शक्ल तो शुक्ला की है, मगर धड़ सुनील शेट्टी का है. जिसे पुलिस ने पोस्टकार्ड से काटकर लगवाया था, ताकि शुक्ला समझ न सके कि उसकी ये तस्वीर आई कहां से.

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शुक्ला की अय्याशी और फ़ोन इस्तेमाल करने की आदत बनी मौत का कारण

श्रीप्रकाश शुक्ला (Shri Prakash Shukla) एक गंदा और अय्याश क़िस्म का आदमी था. उसे महंगी कॉलगर्ल्स, बड़े होटल, मसाज पार्लर वगैरह का बड़ा शौक़ था. कहते हैं दोस्तों में वो डायलॉग मारता था कि उसका टेलीफोन का खर्च रोज़ाना 5 हज़ार रुपये है. मगर उसे नहीं मालूम था कि यही रंगबाज़ी उसकी मौत का कारण बनेगी. 

दरअसल, शुक्ला बात करने के लिए कई सिम कार्ड इस्तेमाल करता था. मगर पता नहीं क्यों, ज़िंदगी के आखिरी हफ़्ते में उसने एक ही कार्ड से बात की. इससे पुलिस को उसका फ़ोन टैप करने में आसानी हो गई. 21 सितंबर की शाम एक मुखबिर ने STF को बताया कि अगली सुबह 5:45 बजे शुक्ला रांची के लिए इंडियन एअरलाइंस की फ़्लाइट लेगा. एसटीएफ़ ने दिल्ली एयरपोर्ट पर जाल बिछाया, मगर शुक्ला नहीं आया. 

फ़ोन टैपिंग से मालूम पड़ा कि शुक्ला की फ़्लाइट छूट गई थी और अब वो अपनी गर्लफ़्रेंड से मिलने गाज़ियाबाद आने वाला है. पुलिस ने उसकी वापसी के समय जाल बिछा दिया. दिल्ली-गाजियाबाद स्टेट हाइवे पर फोर्स लग गई.

वो HR26 G 7305 नंबर की सिएलो कार से ग़ाज़ियाबाद के लिए निकला. गाड़ी का नंबर फ़र्ज़ी था. रास्ते में उसे एहसास हो गया कि उसकी गाड़ी का पीछा किया जा रहा है. ऐसे में उसने अपनी गाड़ी कच्चे रास्ते में उतार दी. उस वक़्त शुक्ला के साथ उसके साथी अनुज प्रताप सिंह और सुधीर त्रिपाठी भी थे. 

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स्टेट हाइवे से एक किलोमीटर हटकर उसे घेर लिया गया. शुक्ला ने ख़ुद को घिरा पाकर गोलियां चलानी शुरू कर दीं. शुक्र था कि उस दिन उसके पास एके-47 नहीं थी. उसने रिवॉल्वर से उसने 14 गोलियां चलाईं. जवाब में पुलिस ने 45. शुक्ला और उसके साथियों का 22 सितंबर 1998 को काम तमाम हो गया. 

एक ऐसा अपराधी जिसके ग़ैर-क़ानूनी काम यूपी, बिहार, दिल्ली, पश्चिम बंगाल और नेपाल तक फैले थे, उसका ख़ौफ़ एसटीएफ़ ने ख़त्म कर दिया था.  बता दें Shri Prakash Shukla की ज़िंदगी पर 2005 में फ़िल्म ‘सहर’ बन चुकी है. साथ ही, रंगबाज़ 2 वेब सीरीज़ भी साल 2018 में आई थी.