नो-फ़्लाई ज़ोन (No-Fly Zone), ये शब्द आपने न्यूज़ में सुना ही होगा. थोड़ा-बहुत आपका इस मतलब भी समझ गए होंगे. मगर शायद ही आप इसका अर्थ पूरी तरह समझ पाए होंगे. ऐसे में आज हम आपको न सिर्फ़ इसका मतलब बताएंगे, बल्कि ये भी बताएंगे कि कब और कहां नो-फ़्लाई ज़ोन लागू हो चुका है.

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तो आइए, देखते हैं कि नो-फ़्लाई ज़ोन का मतलब क्या है और ये पहले कहां लागू हो चुका है?

क्या होता है नो-फ़्लाई ज़ोन (No-Fly Zone)?

एयरस्पेस का वो एरिया जहां कुछ एयरक्राफ़्टस को उड़ने की इजाज़त नहीं दी जाती, उसे नो-फ़्लाई जो़न कहते हैं. इसका इस्तेमाल संवेदनशील क्षेत्रों की रक्षा के लिए किया जा सकता है, जैसे कि शाही निवास या अस्थायी रूप से खेल आयोजनों और बड़े समारोहों के लिए हो सकता है. 

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सामान्य तौर पर इसका निर्धारण सैन्य ताक़तें करती हैं. ख़ासतौर से इस तरह के ज़ोन का निर्माण लड़ाई के समय किया जाता है. ताकि संघर्ष या युद्ध के वक़्त उस एरिया में किसी तरह का हमला न हो सके. इसके लिए सेना पूरी तरह से प्रतिबंधित एरिया की निगरानी करती है. 

अगर किसी एरिया को नो-फ़्लाई ज़ोन घोषित कर दिया गया, तो वहां किसी तरह के विमान के संचालन की इजाज़त नहीं होती है. अगर नो-फ़्लाई ज़ोन में दुश्मन देश का एयरक्राफ़्ट दाख़िल हुआ, तो फिर उसे मार गिराया जाएगा. मसलन, अगर रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine War) में नाटो (NATO) यूक्रेन के एयरस्पेस को नो-फ़्लाई ज़ोन (No-Fly Zone) घोषित कर देता, तो रूसी एयरक्राफ़्ट्स के लिए परेशानी हो जाती. मगर इससे पूरे यूरोप में युद्ध भड़क सकता था, तो ऐसा क़दम नहीं उठाया गया.

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हालांकि, कुछ लोग एयरस्‍पेस बंद होने का मतलब भी नो-फ़्लाई ज़ोन से लगा लेते हैं, जो कि सही नहीं है. एयरस्‍पेस बंद करने का मतलब ये होता है कि वाणिज्यिक विमानों (चार्टर यात्री और कार्गो उड़ानों) के संचालन पर रोक लगी है. ऐसा होने पर एक विमान को अधिक घुमावदार मार्ग लेने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. इससे फ़्लाइट का ख़र्च और समय दोनों बढ़ जाएगा.

पहले कब और कहां लागू हो चुका है नो-फ़्लाई ज़ोन 

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1991 में पहले खाड़ी युद्ध के बाद, अमेरिका और गठबंधन सहयोगियों ने कुछ जातीय और धार्मिक समूहों के ख़िलाफ़ हमलों को रोकने के लिए इराक में दो नो-फ़्लाई ज़ोन की स्थापना की थी. हालांकि, ये संयुक्त राष्ट्र के समर्थन के बिना किया गया था.

बाद में, 1992 में बाल्कन संघर्ष के दौरान, संयुक्त राष्ट्र ने एक प्रस्ताव पारित किया, जिसने बोस्नियाई हवाई क्षेत्र में अनधिकृत सैन्य उड़ानों पर प्रतिबंध लगा दिया था. वहीं, साल 2011 में लीबिया युद्ध के दौरान भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने नो-फ़्लाई ज़ोन (No-Fly Zone) को मंज़ूरी थी. इन दोनों ही नो-फ़्लाई ज़ोन्स को नाटो ने लागू किया था.