भारत में हमें सरकार को कई तरह के टैक्स चुकाने पड़ते हैं. इनमें से कुछ डायरेक्ट तो कुछ इनडायरेक्ट टैक्स होते हैं. इसी देश में महिलाओं को एक ऐसा टैक्स भी चुकाना पड़ता है जो अदृश्य है. लेकिन महिलाओं को इसकी कोई जानकारी ही नहीं होती है. इसका नाम पिंक टैक्स (Pink Tax) है. ये महिलाओं द्वारा चुकाई जाने वाली एक इनविज़िबल कॉस्ट (अदृश्य लागत) है. ये राशि उन्हें उन उत्पादों के लिये चुकानी पड़ती है जो विशेष तौर पर उनके लिये डिज़ाइन किये जाते हैं.

ये भी पढ़ें- पुराने समय के ये 9 बेतुके टैक्स, अब लग जाएं तो आफ़त ही आ जाए

janshakti

न्यूयॉर्क के उपभोगता मामलों के विभाग द्वारा किये गए अध्ययन में पता चला है कि 800 से अधिक समान उत्पादों की क़ीमतों की तुलना करने पर महिलाओं के लिये बने उत्पादों की लागत पुरुषों के लिये बनाये गए उत्पादों की तुलना में 7% अधिक होती है. पर्सनल केयर प्रोडक्ट्स के मामले में ये अंतर 13% तक बढ़ जाता है. ये अंतर केवल विकसित देशों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि भारत में भी महिलाएं प्रत्येक प्रोडक्ट्स पर ‘पिंक टैक्स’ का भुगतान कर रही हैं.  

thoughtco

क्या है पिंक टैक्स? 

सबसे पहले तो ये जान लें कि पिंक टैक्स (Pink Tax) कोई आधिकारिक टैक्स नहीं है. ये एक अदृश्य लागत है जिसे महिलाएं विशेष रूप से उनके लिए डिज़ाइन किये गये उत्पादों और सेवाओं के लिए चुका रही हैं. इसे आसान शब्दों में इस तरह भी कह सकते हैं कि समान वस्तुओं और सेवाओं के लिए पुरुषों के मुक़ाबले महिलाओं को अधिक पैसे चुकाने पड़ते हैं.

tomorrowmakers

इस टैक्स को दो तरीके से समझा जा सकता है-

पहला वो उत्पाद (प्रोडक्ट्स) जो ख़ास तौर पर महिलाओं के लिए ही डिज़ाइन किये जाते हैं. इनकी कीमतें काफ़ी ज़्यादा होती हैं. उदाहरण के तौर पर मेकअप का सामान, नेल पेंट, लिपस्टिक, आर्टिफ़िशियल ज्वेलरी, सेनिटरी पैड समेत कई ऐसी वस्तुएं हैं जो बेहद महंगी होती हैं. इन प्रोडक्ट्स के लिए महिलाओं को प्रोडक्शन कॉस्ट और मार्केटिंग कॉस्ट मिलाने के बाद भी क़रीब तीन गुना ज़्यादा क़ीमत चुकानी पड़ती है.

thoughtco

ये भी पढ़ें- Restaurants, Service Tax के नाम पर कुछ ऐसे करते हैं झोल, सर्विस चार्ज के बदले पूरे बिल पर लगाते हैं टैक्स

दूसरे वो उत्पाद (प्रोडक्ट्स) जिन्हें महिलाएं और पुरुष दोनों इस्तेमाल करते हैं. उदाहरण के तौर पर परफ़्यूम, डियोड्रेंट, हेयर ऑइल, रेज़र, कपड़े समेत कई ऐसे प्रोडक्ट्स हैं जो एक ही कंपनी के होने के बावजूद क़ीमत में अलग-अलग होते हैं. किसी भी बड़े ब्रांड के डिस्पोज़ेबल रेज़र की क़ीमत पुरुषों के लिये 35 रुपये के क़रीब होती है, जबकि महिलाओं के लिये इसी कंपनी के डिस्पोज़ेबल रेज़र की क़ीमत 55 रुपये के क़रीब होती है. इसी तरह पुरुषों के मुक़ाबले महिलाओं के परफ़्यूम, डियोड्रेंट, हेयर ऑइल और कपड़ों की क़ीमत भी अधिक होती है.

civilhindipedia

दरअसल, पुरुषों के मुक़ाबले महिलाओं को कई तरह के ‘पर्सनल केयर प्रोडक्ट्स’ इस्तेमाल करने पड़ते हैं. मल्टीनेशनल कंपनियां महिलाओं की इन्हीं ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए ऐसा करती हैं. ये कंपनियां अच्छे से जानती हैं कि महिलाएं ख़ुद की ख़ूबसूरती को लेकर कितनी सतर्क रहती हैं. कंपनियां इसी बात का फ़ायदा उठाकर मन मुताबिक़ अपने प्रोडक्ट्स की कीमतें बढ़ा लेती हैं. शानदार मार्केटिंग और पैकेजिंग के दम पर ये महिलाओं को लुभाने में क़ामयाब भी रहते हैं.

shortyawards

भारत में हर साल प्रत्येक महिला पिंक टैक्स (Pink Tax) के रूप में मल्टीनेशनल कंपनियों को 1 लाख रुपये अतिरिक्त चुका रही है. आज के दौर में इस टैक्स से बच पाना बेहद मुश्किल है. सरकार भी इस पर कुछ नहीं कर पा रही है. 

ये भी पढ़ें- दुनिया के वो टॉप 8 Tax Haven देश, जहां पर लोगों को टैक्स में मिलती है बहुत छूट