भारत में कोरोना वायरस ने फिर से रफ़्तार पकड़ ली है. देश में अब पहले की तरह हर दिन क़रीब 50 हज़ार मामले सामने आने लगे हैं. लेकिन इससे बड़ी मुसीबत कोरोना के ‘डबल म्यूटेंट’ वैरिएंट ने खड़ी कर दी है.  

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बता दें कि पिछले कुछ समय से भारत में कलेक्‍ट किए गए सैम्पल्स में कोरोना वायरस का एक नया ‘डबल म्यूटेंट’ वैरिएंट मिल रहा है. देश के 18 राज्‍यों के 10,787 सैम्पल्स में कुल 771 वैरिएंट्स मिले हैं. इनमें 736 यूके, 34 साउथ अफ़्रीकन और एक ब्राज़ीलियन है.

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देश के 18 राज्यों में मिला ‘डबल म्यूटेंट’ वैरिएंट 

स्‍वास्‍थ्‍य विभाग मुताबिक़, कोरोना का ये नया ‘डबल म्यूटेंट’ वैरिएंट क़रीब 15-20% सैम्‍पल्‍स में मिला है. हालांकि, ये पहले से कैटलॉग किए गए वैरिएंट्स से मैच नहीं होता. लेकिन इसे महाराष्ट्र के 206 सैम्पल्स और दिल्ली के 9 सैम्पल्स में भी पाया गया है. नागपुर में करीब 20% सैंपल इसी वैरिएंट के हैं.

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आख़िर क्‍या है ये ‘डबल म्यूटेंट’ वैरिएंट? 

किसी भी वायरस का एक जेनेटिक कोड होता है. जो वायरस को ये बताता है कि उसे क्‍या और कैसे करना है. वायरस के जेनेटिक कोड में अक्सर छोटे-छोटे बदलाव होते रहते हैं. इनमें से अधिकतर बेअसर होते हैं. मगर कुछ की वजह से वायरस तेज़ी से फ़ैलने लगता है. इसी बदले हुए वायरस को ‘वैरिएंट’ कहते हैं. इसीलिए यूके और साउथ अफ़्रीका वाले ‘वैरिएंट’ को ज़्यादा संक्रामक और घातक माना जा रहा है.

ये कौन सा वैरिएंट है? क्‍या ख़तरा है इससे? 

आसान शब्दों में कहें तो ‘डबल म्‍यूटेशन’ तब होता है जब वायरस के दो म्‍यूटेटेड स्‍ट्रेन्‍स मिलकर एक तीसरा स्‍ट्रेन बनाते हैं. भारत में जो ‘डबल म्यूटेंट’ वैरिएंट मिला है वो E484Q और L452R म्‍यूटेशंस का कॉम्बिनेशन है. E484Q और L452R को अलग से वायरस को और संक्रामक व कुछ हद तक वैक्सीन से इम्‍यून पाया गया है.

इस वायरस में अक्सर बदलाव आते रहते हैं. हालांकि, अधिकतर की वजह से ज़्यादा परेशानी तो नहीं होती, लेकिन इसके कुछ म्‍यूटेशंस के चलते ये वायरस बेहद संक्रामक या घातक भी हो सकता है. डबल म्‍यूटेशन की वजह से इस वायरस के भीतर इम्‍युन रेस्‍पांस से बचने की क्षमता आ जाती है यानी ऐंटीबॉडीज़ उसका कुछ नहीं बिगाड़ पातीं. इस वायरस का एक बड़ा रिस्‍क ये है कि पहले से बने टीकों का इस वैरिएंट पर असर होगा या नहीं, ये नहीं पता.

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क्या ‘डबल म्यूटेंट’ वैरिएंट पर वैक्सीन असर करेगी? 

एक्सपर्ट की मानें तो अब तक सिर्फ़ इतना ही पता लग पाया कि नया स्‍ट्रेन असरदार तो है मगर सुपरस्‍प्रेडर नहीं है. कितना घातक है, इसके भी सबूत अब तक नहीं मिले हैं. वैज्ञानिक, कुछ और डेटा मिलने के बाद इसकी स्थिति स्पष्ट करने की बात कह रहे हैं. इस नए वैरिएंट पर कोरोना वैक्‍सीन असर करेगी या नहीं, अभी तक ऐसी कोई वजह नहीं मिली है जिससे ये माना जाए कि वैक्‍सीन की डोज़ इनसे सुरक्षा देने में कामयाब है.

‘नेशनल सेंटर फ़ॉर डिजीज़ कंट्रोल’ के डायरेक्‍टर सुजीत कुमार का कहना है कि, देश के जिन राज्‍यों में कोरोना के मामले तेज़ी से बढ़े हैं, वहां अलग तरह के म्‍यूटेशन वैरिएंट्स डिटेक्‍ट किए गए हैं, जो पिछले 6 से 8 महीनों में सबसे ज़्यादा फ़ैले वैरिएंट्स में शामिल हैं.