Why do People Believe in Ghost in Hindi: एक अंतरराष्ट्रीय शोध में पता चला है कि 21वीं सदी में रहने वाले लोग भी भूत-प्रेत और जादू-टोने में यकीन करते हैं. ऐसा क्यों है? जर्मनी के कोलोन में रहने वालीं बारबरा कहती हैं, “मैं एक आधुनिक चुड़ैल हूं. मैं अपने इस दावे पर कायम हूं.” मध्य युग में ऐसी बात कहने पर शायद बारबरा को ज़िंदा जला दिया जाता, लेकिन आज उन जैसे बहुत से लोग हैं जो ऐसे दावे करते हैं.
नवंबर में वॉशिंगटन की अमेरिकन यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले अर्थशास्त्री बोरिस ग्रेशमन ने अपने एक अध्ययन के नतीजे जारी किए. ‘विचक्राफ्ट बिलीफ्स अराउंड द वर्ल्ड’ नामक इस शोध के मुताबिक दुनिया के 95 देशों में रहने वाली विश्व की लगभग 40 प्रतिशत आबादी मानती है कि भूत-प्रेत होते हैं. यह आंकड़ा अलग अलग देश में थोड़ा ऊपर नीचे हो सकता है. मसलन, ट्यूनिशिया में ऐसा मानने वालों की संख्या 90 प्रतिशत है जबकि जर्मनी में सिर्फ 13 फीसदी. शोधकर्ताओं ने इनमें उन लोगों को भी शामिल किया है जो श्राप और बुरी नजर जैसी चीजों में यकीन करते हैं.
वैसे बारबरा किसी को श्राप नहीं देतीं. उन्होंने डॉयचे वेले को बताया, “ये सोचना कि चुड़ैलें (Are Ghosts Real?) रात में निकलती हैं, झाड़ू पर उड़ती हैं और लोगों का बुरा करती हैं, ये सब बकवास है.”
महिलाओं को सज़ा
Why do People Believe in Ghost in Hindi: सदियों तक चुड़ैलों पर समाज यकीन करते रहे और इसके नाम पर महिलाओं को सजा देते रहे. खासकर 1450 से 1750 ईस्वी के यूरोप में तो इस यकीन का बहुत बोलबाला था. जब भी कोई रोग फैलता, फसल बर्बाद हो जाती, मवेशी मारे जाते या किसी के व्यापार में घाटा हो जाता तो लोगों को एक बलि के बकरे की जरूरत होती. पहले तो यह बहुत आम होता था, लेकिन आज भी ऐसा मानने वाले लोग पूरी दुनिया में मौजूद हैं.
मानवजाति विज्ञानी आइरिस गैरेस कहते हैं कि आज भी लोग कुदरती आपदाओं के लिए जादू-टोने को दोष देते हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, “दुर्भाग्य से दशकों तक लोगों का काला जादू करने वाले या चुड़ैल बताकर बेरहमी से कत्ल किया जाता रहा है.”
तंजानिया और घाना जैसे देशों में तो ऐसे कैंप मौजूद हैं जहां वे महिलाएं शरण लेती हैं जिन पर चुड़ैल होने के आरोप लगे. उत्तरी गोलार्ध में तो कुछ लोग खुलेआम कालला जादू-टोना करने का दावा करते हैं.
मध्य युग में जादू-टोना
Why Do People Believe in Ghost Stories? 1450 से 1750 ईस्वी के बीच चुड़ैल या जादू-टोना करने वालों के इल्ज़ाम लगाकर करीब तीस लाख लोगों पर मुकदमे चलाए गए और 60 हजार लोगों को जान से मार दिया गया. लेकिन यह प्रथा मध्य युग में नहीं बल्कि आधुनिक काल में अपने चरम पर पहुंची और सिर्फ जर्मनी में 40 हजार लोगों को चुड़ैल बताकर मार दिया गया. यह पूरी प्रक्रिया कानून के तहत होती थी. लोगों का एक तरह का टेस्ट लिया जाता था, जिसके जरिए यह आंका जाता था. एक टेस्ट को स्विमिंग टेस्ट कहा जाता था. आरोपी को बांध कर पानी में फेंक दिया जाता. जो डूब जाते उन्हें मासूम माना जाता और जो तैरकर बाहर जाते, उन्हें चुड़ैल माना जाता. लोग कहते थे के इन्होंने जान बचाने के लिए शैतान से मदद ली.
उदाहरण के लिए जस्टिन बताते हैं, “बचपन में आप हैंसल और ग्रेटल की कहानी सुनते हैं और जानते हैं कि कैसे बुराई ने अच्छाई को निगल लिया. कुछ समय बाद आप समझने लगते हैं कि चुड़ैल कैसे एक समझदार महिला है.” जस्टिन खुद भी जादू-टोना करने का दावा करते हैं. वह वीका के अनुयायी हैं. एक नियो पेगन धार्मिक आंदोलन है. वीका चुड़ैल के लिए पुरानी अंग्रेजी का शब्द है.
इसी तरह बारबरा को क्रिश्चियन चर्च में सहजता महसूस नहीं हुई और उन्होंने प्राकृतिक धर्म का पालन करना शुरू कर दिया. वह कहती हैं कि वह पेड़ों से बात करती हैं और आत्माओं से भी. वह बताती हैं कि उन्होंने यह सब एक शमन से सीखा है. बारबरा बताती हैं, “जादू-टोने की दुनिया समृद्ध और रंगीन है. थोड़ा सा आप यहां जीते हैं और थोड़ा सा समानांतर दुनिया में.”बहुत सी आधुनिक चुड़ैलें टैरो कार्ड पढ़ती हैं लेकिन बारबरा भविष्य बताने के लिए जर्मन अक्षरों वाले कागजात का इस्तेमाल करती हैं. वह कहती हैं, “मैं कुछ पाने के लिए किस्मत का इंतजार क्यों करूं? अगर मैं कोई सवाल पूछती हूं तो उसका जवाब जरूर आता है.”
नारीवाद बनाम चुड़ैलें
मानवजाति विज्ञानी आइरिस गैरिस कहती हैं, “जिन लोगों को चुड़ैल बताकर कत्ल किया गया, वे आम लोग थे. उनके हमेशा लाल बाल भी नहीं होते थे, जैसा कि दावा किया जाता है.” फिर भी, चुड़ैल की ऐसी छवियां लोगों के मन में बस गई हैं.
आधुनिक युग में चुड़ैलों का होना 1970 के महिला आंदोलन से जोड़कर देखा जाता है, जो अक्सर पुरुष वर्चस्व को चुनौती देने के रूप में शुरू हुआ था. गैरिस कहती हैं, “चुड़ैलों के बीच भी एक मुखिया जैसी शख्सियत होती थी. ये लोग नारीवादी होते थे. ये कोई शोधकर्ता भी नहीं थे, बस आम बुद्धिजीवी थे जिन्होंने इन छवियों को दमित महिलाओं के रूप में पेश किया.”
1980 के दशक में इसमें अध्यात्मिक पक्ष भी जुड़ गया. खासतौर पर शहरी महिलाओं ने प्रकृति आधारित धर्मों को अपनाया. गैरिस कहती हैं, “मुझे लगता है कि अनिश्चितता के समय में लोग कुदरत की शरण में जाते ही हैं.”
बहुत सारी आधुनिक चुड़ैलें किसी समूह से जुड़ी नहीं हैं लेकिन वीका के अनुयायी समूहों में मिलते-जुलते हैं. जस्टिन कहते हैं कि जादू-टोना कोई खेल नहीं है. वह कहते हैं, “जो लोग मानसिक रूप से अस्थिर हैं उन्हें जादू-टोने से दूर रहना चाहिए. अगर वे अपनी जिंदगी को नियंत्रित नहीं रख सकते तो उन्हें यहां भी संतुलन नहीं मिलेगा. अगर में जमीन से नहीं जुड़ा हूं तो मैं स्वर्ग तक नहीं पहुंच सकता.”