हमारे देश में हर रोज हज़ारों नये मुकदमे अदालतों में दर्ज़ होने के लिए आते हैं. करोड़ों केस वर्तमान समय में अदालतों में हर रोज अपनी सुनवाई के इंतज़ार में राह तकते नज़र आते हैं. इंसाफ़ के लिए अदालत की दहलीज़ पर आने वाले इन मामलों में कुछ मामले काफ़ी अजीब और अनोखे होते हैं. इन मामलों की सुनवाई के दौरान भी अदालत में कई बार काफ़ी अजीब स्थितियां पैदा हो जाती है.

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ऐसा ही एक मामला दिल्ली में देखने को मिला जहां कुछ लोगों के खिलाफ़ झगड़े के मुकदमे में अपना मत रख रही एक महिला से जज ने झगड़े के दौरान टूटा हुआ दांत उसे अदालत में दिखाने को कह दिया. टूटा दांत ना दिखा पाने और अन्य संदेहास्पद परिस्थितियों की वजह से कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया.

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यह मामला मई, 2006 में घटी एक तथाकथित मारपीट की घटना को लेकर एक महिला द्वारा दर्ज करवाया गया था. यह मामला दिल्ली के कोटला मुबारकपुर क्षेत्र का है. यहां रहने वाली एक महिला ने 7 लोगों के खिलाफ़ उस समय मारपीट करने और इस दौरान उसका दांत तोड़ने का मामला दर्ज़ करवाया था.

मामले की सुनवाई कर रहे, एडिशनल सेशन जज लोकेश कुमार शर्मा ने कोर्ट रूम की कार्यवाही के दौरान महिला से उसका टूटा हुआ दांत सबूत के रूप में मांगा. महिला के सबूत पेश ना कर पाने पर मामले को रद्द कर दिया गया. अदालत में बताया गया कि महिला ने ना तो कोर्ट में और ना ही तत्कालीन समय में मामले की सुनवाई कर रहे पुलिस ऑफिसर को कोई टूटा हुआ दांत दिखाया था.

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कार्यवाही में यह भी पता चला कि इस महिला और इस मामले में नामजद आरोपियों के बीच और भी दूसरे मामले एक-दूसरे के खिलाफ़ चल रहे हैं. इसके अलावा पूरी सुनवाई में महिला के द्वारा दिए गये बयान काफ़ी संदेह भरे रहे हैं.

घटना के तत्काल बाद महिला ने अपने बेटे को अपनी बहन के पास सारी बात बताने के लिए भेज दिया था, जबकि उसे पुलिस को बुला कर यह सब बताना चाहिए था. महिला काफ़ी भीड़-भाड़ भरे इलाके में रहती है, फिर भी किसी ने किसी तरीके से महिला की उस समय चिल्लाने और रोने की कोई आवाज़ नहीं सुनी थी. ना ही पड़ोसियों में से कोई भी महिला की तरफ़ से अपना बयान देने आया था.

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महिला द्वारा समय-समय पर दिए गये बयानों में भी काफ़ी मतभेद नज़र आया है. जज ने बताया कि जांच एजेंसी द्वारा भी पड़ोसियों से हुई किसी भी तरह की पूछताछ की रिपोर्ट उनके पास नहीं आई है.

महिला द्वारा दर्ज़ करवाये गये मामले में कितनी सच्चाई थी, ये तो हम नहीं कह सकते लेकिन हमारे देश में कई ऐसे मामले आते रहते हैं, जहां सबूतों के अभाव में फ़ैसला सुनाना पड़ता है. इसके लिए जांच एजेंसियों को अपना काम और भी ज़्यादा मुस्तैदी के साथ करना होगा. इससे फ़रियादी द्वारा लगाया जाने वाला आरोप सही है या गलत, यह जानने में भी काफ़ी मदद मिलेगी.