भाई, ऐसा है सर्दियां आ चुकी हैं और अमूमन लोगों कि सर्दियां सोने में, गाज़र का हलवा, गर्मागर्म पराठे खाने में निकलती हैं. लेकिन मेरी सर्दियां सब्ज़ियों में से मटर बीनने में निकल जाती हैं. 

मतलब कौन हैं ये लोग? कहां से आते हैं ये लोग, जिन्हें मटर पसंद है. मैं बता रही हूं ऐसे लोगों का खाने के प्रति कोई धर्म नहीं होता.

मैं इन हरी-हरी उदास सी दिखने वाली नन्ही-नन्ही गेंदों को किसी भी क़ीमत पर अंदर नहीं जाने देना चाहती. 

क़सम से इन हरी गोलियों ने मेरा जीवन नर्क करके रखा हुआ है. हर खाने में घुस जाती हैं. इनको कोई तो सिखाओ कि तहज़ीब नाम की एक चीज़ होती है. ज़बरदस्ती आलू बनने की कोशिश तो न ही करें. 

पहली बात तो ये कि इन बेस्वाद और फीकी सी चीज़ को खाने के लिए आपको कितनी मेहनत करनी पड़ती है. भाई आलू को देखो, गोभी को देखो, मेहनत है पर फ़ल भी टेस्टी है. न कि इस मटर की तरह और ये तो छोड़ो इनकी शक़्ल भी एक दम चूसे हुए आम की तरह है. अब भला कोई बताओ ऐसे कैसे फ़ील आएगा इसको खाने का. 

सिर्फ़ मैं ही नहीं हर दूसरा इंसान मटर को प्लेट से ऐसे निकालता है, जैसे मेरे घर वाले मुझे इग्नोर करते हैं. 

ये साल के वो दिन जब मटर आपके हर पसंदीदा खाने में बिन बुलाए मेहमान की तरह नज़र आने लगेगी. भाई, की आलू बनने की ख़्वाहिश जो है. 

शाही पनीर अब एकदम से मटर पनीर बन जाएगा. 

मेरे पसंदीदा पुलाव में भी मटर जी विराजमान हो जाते हैं. यार, मेरे चावलों से दूर रहो. 

मतलब दिल तो तब टूट जाता है, जब मेरी मैगी और आलू की सब्ज़ी में भी मटर पड़ने लगती है. 

मैं जानना चाहती हूं कि मटर जैसी निराशाजनक सब्ज़ी को इज़ात किसने किया है. उसे अपनी ज़िंदगी से ऐसी कौन सी नाराज़गी थी. 

मैं सरकार से मांग करना चाहती हूं कि प्याज़ को जाने दें और मटर जैसे बदतमीज़ सब्ज़ियों पर लगाम लगाएं और इनकी फ़ीस बढ़ाएं. ताकि लोगों के घरों और पेटों में शांति बनी रहे.