मैं एक दोस्त के बर्थ डे पर गुरुग्राम के क्लब में गई थी. क्लब्स, बार का शौक़ नहीं, पर ख़ास दोस्त का जन्मदिन था तो मना करना प्रलय को न्यौता देने जैसी बात हो जाती. हम 8-10 लोग थे, तो हमें ज़रा इंतज़ार करना पड़ा. हम बाहर खड़े होकर बातें कर रहे थे. तभी 2 लड़के आए. मेरे कानों में उनमें से एक की बात पड़ी, ‘कितनी सही जगह है यार, आज तो ख़ूब चिल करेंगे. पूरे हफ़्ते कंपनी ने हालत ख़राब कर रखी थी.’


मैं सुनकर मुस्कुरा दी, समझ आ रहा था कि वो Trainees या Interns हैं. पर कुछ मिनट में ही उनके प्लैन पर बाउंसर ने पानी फेर दिया. दोनों लड़कों से बाउंसर ने कहा, ‘सर, Stag Entry Allowed नहीं है.’ 

उन दोनों के चेहरे उतर गए. शायद शहर में नए थे इसीलिए ‘तू जानता नहीं मेरा बाप कौन है’ मुंह से नहीं निकला.


मैं इतना सोच ही रही थी कि उस लड़के के साथ वाले लड़के ने पूछा, ‘क्या अकेली लड़कियों को एन्ट्री नहीं मिलती?’

बाउंसर ने कहा, ‘नहीं सर. उनको तो एन्ट्री दे देते हैं’

तब तक अंदर जगह बन गई थी तो उन दोनों के सामने ही हमें एन्ट्री मिल गई.  

देश के अधिकतर बार्स और क्लब्स की यही हालत है. साथ लड़की न हो तो न तो अकेला बंदा अंदर जा सकता है और न ही बंदों का ग्रुप. कहीं-कहीं ये ‘असुविधा’ हफ़्ते के कुछ तय दिनों पर दी जाती है. मेरे कई दोस्त बार के बाहर से भगाए गए हैं, कईयों ने कई हज़ार घूस दिए हैं और कुछ ने तो अनजान लड़कियों से मदद मांगी है. अब होता ये है कि अगर ऐसी कोशिश में उन्हें अलग ‘बेइज़्ज़त’ किया गया है. 

‘मैं करूं तो साला कैरेक्टर ढीला है’ 

मेरे बेवड़ों के अनुभव की बात करें तो पीकर बद्तमीज़ी करते हुए लड़कों और लड़कियों दोनों को ही देखा है. चाहे वो बार के अंदर हो या बार से निकलकर सड़क पर. हां परसेंटेज पर बहस हो सकती है क्योंकि लड़कियों की तुलना में लड़कों की जनसंख्या ज़्यादा है. पीने की बात करें तो न पीने वाली लड़कियां ही ज़्यादा दिखती हैं.


एक तरफ़ तो पूरी दुनिया में ढोल, नगाड़े आदि बजा-बजाकर Equality की बात की जा रही है और दूसरी तरफ़ इतना बड़ा भेदभाव चल रहा है देश के हर एक शहर में.  

‘व्हाई क्लब्स व्हाई?’ 

इस सवाल का जवाब एक ही मिलता है, ‘महिला सुरक्षा’… बहुत ज़रूरी है सनम. पर सुरक्षा के दूसरे इंतज़ाम हो सकते हैं. बिल्कुल हो सकते हैं. विदेशों में बार और क्लब्स के बाहर लंबी कतारें Crowd Management का उत्तम उदाहरण है.


ये माना कि लड़के पीकर बवाल काटते हैं, पर हर एक को ही तराज़ू में तौलना कतई ग़लत नहीं है? और ऐसा तो है नहीं कि कभी किसी महिला ने पीकर बवाल नहीं मचाया हो? बवाली लड़के तो अंदर कर दिए जा हैं महिलाओं को महिला बोलकर बहुत बार छोड़ दिया जाता है. जबकि पब्लिक को असहजता दोनों ने ही महसूस करवाई होती है.  

लड़कियों के सुरक्षा की बात तो ठीक है पर लड़कों के Night Out का क्या ब्रो? 

लड़कियां कई बार असहज होती हैं, क्लब्स में लड़के लड़कियों पर चांस भी मारते हैं पर ऐसा तो है नहीं कि दुनिया का हर एक लड़का क्लब लड़कियों पर लाइन मारने ही जाता हो? और क्या इसका उल्टा नहीं होता? मतलब कि कुछ भी?

लिखने को आर्टिकल तो लिख दिया पर एक Stag का दुख एक Stag ही समझ सकता है. हम बस सहानुभूति ही जता सकते हैं.