Dedicated To All Mothers: बच्चे का चेहरा देखते ही दर्द दूर हो जाते हैं…
अरे जागने की आदत पड़ जाती है….
तुम मां हो तुम्हें नहीं समझ आ रहा….
हमें लगता है भूखा है..तभी रो रहा है…सब छोड़ो पहले उसे देखो…
डायपर मत पहनाया करो..बच्चों को नुकसान करता है…

ये तो बहुत थोड़ी से तंज हैं जो मैंने बताये. मांओं को तो इससे भी बहुत कुछ सुनना और सहना पड़ता है. मैं इन बातों को लेकर इतनी गंभीर पहले नहीं थी. ऐसा भी नहीं था कि जिनके लिए सुनती थी तो बोलती नहीं थी… बोल देती थी, लेकिन साल 2021 के बाद सह नहीं पाती हूं. लड़की से मां बनने का सफ़र बहुत प्यारा था लेकिन मां बनने के बाद समझ आया कि जो बोलते हैं वो वाकई नहीं होता है. हां, मां बनना बहुत बड़ा सौभाग्य है और मां बनने का एहसास भी बहुत ख़ास है. मगर मां के उस दर्द को इस एहसास में कवर कर देना वो ग़लत है.

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आप सोच रहे होंगे कि, मैं किस दर्द की बात कर रही हूं. अब बताती हूं मैं अपना मां बनने का सफ़र. हो सकता है कि कुछ मांएं मेरे इस सफ़र में साथी बनें या कुछ नहीं भी बनेंगी, लेकिन सोचेंगी तो ज़रूर. साल 2019 जब मैं आराम से कंधे पर बैग लिए ऑफ़िस जाती थी. शाम को घर आती थी और थोड़ी बहुत देर बातें-वातें करके सो जाती थी. मेरा रूटीन यही था. फिर मेरी शादी फ़िक्स हुई साल 2020 में मेरी शादी हो गई तो मैं कुछ महीनों के अंतराल में एक पत्नी, बहू और भी बहुत कुछ बन गई. (Dedicated To All Mothers)

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शादी हो जाती है तो बच्चे भी होने चाहिए तो मुझे भगवान ने इस सौभाग्य से थोड़ा जल्दी नवाज़ दिया. मैं शादी के कुछ ही महीने बाद प्रेगनेंट हो गई. ये एहसास पहली बार जी रही थी तो शुरू में कुछ दिन सब ठीक रहा फिर कभी उलझन तो कभी बी पी लो, कभी किसी से बात करने का मन करे तो कभी चुप रहने का. कभी बहुत ज़्यादा अकेला लगे, जिससे भी बताओ तो ऐसा ही होता है…कुछ दिन यही चलेगा… फिर मुझे समझ आया कि लड़की मां उस दिन नहीं बनती जब वो बच्चे को जन्म देती है वो तो उसी दिन से मां बन जाती है जब बच्चा उसके शरीर में आता है.

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एक लड़की जब मां बनने वाली होती है तो पूरी दुनिया उससे ये उम्मीद करती है कि अब उसे हर चीज़ में एडजस्ट करना पड़ेगा. ज़िंदगी में, करियर में, कपड़ों में, खाने में हर चीज़ में. मगर लोग ये क्यों भूल जाते हैं कि लड़की से मां बनते उस शरीर में एहसास, जज़्बात, जिज्ञासा, कुछ पाने का जुनून सब कुछ है कुछ पल में वो कैसे सब छोड़ दे. जब मैं प्रेगनेंट हुई तो मेरी चाय छूट गई, जो मुझे बहुत अच्छी लगती है. मैं एक वर्किंग वुमेन हूं तो मुझे अचानक से छुट्टी लेनी पड़ती थी, उस समय दिमाग़ में बहुत सी उधेड़बुन चलती थी कि क्या सभी मांएं ऐसी करती होंगी? क्या सब मेरी तरह छुट्टी लेती होंगी? मां बनने के उस एहसा के साथ-साथ दिमाग़ में ख़ुद को कमतर समझने का भी दर्द चलता रहता था. मगर शरीर साथ नहीं देता और हां सब मांएं ऐसा ही करती हैं.

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मुझे तब एहसास हुआ कि वो 9 महीने मेरे बस में नहीं थे. मैं जो भी कर रही थी या करना पड़ रहा था या खा रही थी वो कुछ भी मेरे बस में नहीं था. मेरी इस बात से सभी मांएं ख़ुद को रिलेट करेंगी. जैसे-जैसे दिन बीत रहे थे और मेरी डिलीवरी का दिन पास आ रहा था मुझे उस नन्हीं सी जान का चेहरा देखने का मन और भी करता जा रहा था, जिसे अभी तक सोनोग्राफ़ी मशीन में देख रही थी, सुन रही थी. फिर उसके इस दुनिया में आने का दिन हुआ. डॉक्टर ने मुझे दो आप्शन दिए मैं दर्द में करहाते हुए हॉस्पिटल आऊं या पहले एडमिट हो जाऊं और डॉक्टर्स के बीच दर्द में रहूं तो मेरे पति और फ़ैमिली ने दूसरे ऑप्शन को चुना.

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मैंने हॉस्पिटल जाने से पहले नेलपेंट लगाया ताकि जब मैं अपने बच्चे के साथ पहली फ़ोटो लूं तो मेरे हाथ अच्छे लगें. मुझे तब तक नहीं एहसास था कि आगे क्या होगा? कितना दर्द होगा, कितना सहना पड़ेगा? मैं जैसे ही हॉस्पिटल पहुंची वो मुझे रूम में लेकर गए और मेरी नेल पेंट रिमूव कर दी. मैंने पूछा तो कहा कि इंफ़ेक्शन का डर है बच्चे को. वहां से शुरू हुआ मेरा बदलाव का सफ़र. इसके बाद उन्होंने मुझे इंजेक्शन दिया और मुझे दर्द होना शुरू हुआ और मैं उस दर्द में पूरे 16 घंटे तक चिल्लाती रही क्योंकि मेरी डॉक्टर चाहती थी कि मुझे नॉर्मल बेबी हो. 16 घंटे के दर्द के बाद डॉक्टर को एहसास हुआ कि शायद जो वो जो चाहती हैं वो अब नहीं होगा फिर उन्होंने मुझे लेबर रूम ले जाकर लास्ट ट्राई किया.

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उस रूम में बहुत लोग थे सब मेरे शरीर से उस जान को निकालने की कोशिश में लगे थे, तभी मुझे एक रोने की आवाज़ सुनाई दी. हालांकि, मैं दर्द की वजह से इतनी बेसुध थी कि मुझे धुंधला-धुंधला सब नज़र आ रहा था. उस समय दिमाग़ बहुत साफ़ था कि जिसके लिए 9 महीने से सब हो रहा था वो तो दुनिया में सही सलामत आ गया. मगर मेरा विश्वास करिये जो लोग कहते हैं न कि बच्चे का चेहरा देखते ही दर्द छू-मंतर हो जाता है तो मैं उन्हें बता दूं ऐसा कुछ नहीं होता है क्योंकि उस पल तक एक मां सिर्फ़ दर्द में होती है. नॉर्मल में भी टांकें झेल रही होती है. मैं भी सह रही थी और फिर मुझे टांके दिए गए मुझे कुछ भी होश नहीं था. बस दर्द हो रहा था. थोड़ी देर के बाद सब कुछ हो गया और मुझे वापस रूम में शिफ़्ट किया गया.

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मेरे बगल में मेरे बच्चे को लिटा दिया गया कि इसे दूध पिला दो. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे, क्या करूं? शरीर मेरा मेरे साथ नहीं था. फिर मुझे नर्स ने समझाया कि ऐसे पिलाओ. किसी भी लड़की को नहीं पता होता. ये संघर्ष ऐसा होता है कि जिसके बारे में अगर मां बात करे तो लोग उसके मां होने पर सवाल खड़ा करते हैं. उसे ये सुनाया जाता है कि कैसी मां हो तुम? अरे मां तो मैं अभी बनी हूं लड़की तो पिछले कई सालों से हूं उसे एक पल में अंदर से कैसे निकाल दूं?

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जिस लड़की का ख़्याल उसके बालों का ख़्याल, उसके चेहरे का ख़्याल मैं रखती हूं उसे कैसे कह दूंगी कि अब मैंने तुझे छोड़ दिया या तू मुझे छोड़ कर चली जा क्योंकि मैं अब मां बन गई हूं. मां बनना तो दूसरी ज़िंदगी को पाना होता है तो मैं अपनी दूसरी ज़िंदगी के लिए पहली ज़िंदगी को मार दूं? लोग यही नहीं समझते जबकि मां बनने के बाद बहुत सी चीज़ें आप में बदलती हैं. वो बदलाव ख़ुद से आते हैं जो ख़ूबसूरत लगते हैं. मैं पहले दोस्तों के साथ हैंगआउट पर जाती थी अब मेरा ख़ुद मन नहीं करता. मां जिन बदलावों को ख़ुद स्वीकार कर रही है उसे अगर आप भी नोटिस करोगे तो उसकी मां बनने की जर्नी आसान हो जाएगी.

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किसी के बच्चे खाते नहीं है, किसी के ज़्यादा रोते हैं, किसी के चुप रहते हैं, वैसे ही मेरा बेटा पूरी रात नहीं सोता. उसके साथ मुझे पूरी रात जागना होता है. मैं जागती हूं पूरी-पूरी रात जागती हूं, लेकिन मेरी इस जद्दोजहद में मुझे हर तरफ़ से सपोर्ट मिलता है जिससे मेरे सारे काम आसान होते हैं. ठीक वैसे ही अगर कोई मां इस पड़ाव से गुज़र रही है तो उसका साथ देना ज़रूरी होता है क्योंकि पूरी रात जागना छोटी बात नहीं होती है. पूरी रात जागना माइग्रेन, चिड़चिड़ापन, काले घेरे बहुत कुछ अपने साथ लाता है ऐसे में वो लड़की कहीं ख़त्म होती जाती है उस लड़की को बचाने के लिए मां का साथ देना ज़रूरी है.

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सबसे ज़रूरी बात ये समझना बहुत ज़रूरी है कि कुछ भी हो नहीं जाता है…उसके लिए एक लड़की को अपना सबकुछ देना पड़ता है, ख़ुद को वैसे ढालना पड़ता है…होता कुछ नहीं है. तक़लीफ़ तब ज़्यादा होती है जब एक औरत ही ये नहीं समझती, जिसने शायद अपने समय में मझसे ज़्यादा दर्द झेला होगा, वो जब नहीं बचाना चाहती न तब ज़्यादा तक़लीफ़ होती है.

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इस ख़ूबसूरत एहसास के साथ एक मां का जो संघर्ष होता है वो समझो उसे मां शब्द के नीचे दबाओ मत. इससे पता है क्या होता है कभी-कभी मां बनना ख़राब लगने लगता है, जिस ज़िंदगी को इतने दर्द के बाद दुनिया में लाते हैं वो दर्द देने लगती है. ये सिर्फ़ इसलिए होता है क्योंकि उसे नकारा जाता है. अगर आपके घर में कोई लड़की नई-नई मां बनी होती है तो उसका साथ दो जब वो ज़िंदा रहेगी तो ही किसी ज़िंदगी को ज़िंदगी दे पाएगी!

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कुछ महीनों में बदल गया सब कुछ
लड़की थी
हो गई अगले ही पल और कुछ
कहते हैं मां बन गई हो
अरे मां ही तो बनी है
समझोगे उसको तो वो जी जाएगी
जो नकारा तो अंदर ही अंदर घुट जाएगी
ज़िदंगी देकर किसी एक जान को
वो ज़रूर एक दिन मर जाएगी.

कोशिश करना उसको समझने की…बस इतना ही चाहिए एक मां को.