हर साल छठ आता है और जाता है. 1-2 सप्ताह के हर्षों-उल्लास के बाद सब सामान्य हो जाता है. मगर कुछ ऐसी चीज़ें हैं जिसे हम साल नज़रअंदाज़ कर देते हैं.

हर साल इन चीज़ों के वज़ह से हम में से काफ़ी लोगों परेशानी और दुःख झेलना पड़ता है. लेकिन इसके बारे में शायद ही कोई बात होती है.  

इसलिए आज हम उन बातों को आपके सामने रख रहे हैं, जो छठ पर्व के दौरान हर साल हमारे दिमाग़ में आती हैं और बहुत सारा कष्ट देकर जाती हैं:

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1. लबालब भरी ट्रेन 

भारत के किसी भी हिस्से से अगर आपको छठ के समय पूर्वांचल यानी पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार जाना है तो टिकट के लिए इतनी भाग-दौर, इतनी मारा-मारी करनी पड़ेगी की पूछिये मत. ट्रेन के रेज़र्वेशन के सारे टिकट महीनों पहले ही बुक हो जाते हैं. और क्या मज़ाल की तत्काल टिकट आपसे बुक जाए! भूल जाइये.     

Amar Ujala

इक्का-दुक्का फ़ेस्टिवल स्पेशल ट्रेन का अता-पता भी नहीं रहता है. कोई 10-12 घंटे लेट चलती है तो कोई – कोई 24 से 36 घंटे तक लेट जाती है. 

2. हवाई जहाज़ का हाल भी समान

छठ के समय हवाई जहाज़ की टिकट इतनी महंगी हो जाती है कि लगता है आपकी ज़ायदाद एयरलाइन वालों के पास गिरवी रखना पड़ेगा. ये हाल तब है जब सर्वसाधारण (आम लोग) फ्लाइट की टिकट का ख़र्च नहीं उठा सकता है, आम दिनों में.

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3. काली पड़ चुकी यमुना में डुबकी 

दिल्ली में छठ पर्व मनाने वालों की कमी नहीं है. और छठ पूजा में नदी के घाट पर जाकर सूर्य भगवान को अर्क दिया जाता है. लेकिन हर साल वो फ़ोटो इंटरनेट पर लोगों का दिल तोड़ देती है जिसमें उपासक को यमुना के झाग भरे, काले पानी में उतर कर डुबकी लगानी पड़ती है. ऐसा लगता है यमुना को बस नाला मानकर छोड़ दिया है दिया है दिल्ली ने.

The Weather Channel
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4. भेदभाव (कहीं थोड़ा, कहीं ज़्यादा)

कहने को तो ”हिंद देश के निवासी, सब जन एक हैं” मगर भेदभाव करने में हमें तनिक भी शर्म नहीं आती है. आए-दिन पूर्वांचल (बिहार, यूपी) के लोगों को भेदभाव झेलना पड़ता है, ख़ासकर उन्हें जो पलायन करके दूसरे राज्यों में मेहनत-मज़दूरी करने के लिए गए हैं.

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कभी भाषा के नाम पर उन्हें महाराष्ट्र में दुत्कारा जाता है, तो कभी बाहरी कहकर कश्मीर में गोली मार दी जाती है. आप जगहों के नाम बदलते जाइये, कहानी वही रहती है.

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5. घाट पर बद-इतज़ामी 

शायद ही कोई साल ऐसा गुजरता है जब छठ पर कहीं कोई हादसा नहीं होता हो. हर साल कहीं कोई डूब जाता है, कहीं भगदड़ मच जाती है, तो कहीं कोई और दुर्घटना घट जाती है. घाट पर साफ़-सफ़ाई और  सुरक्षा इंतेज़ाम के सारे दावे धरे के धरे रह जाते हैं.  

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तो इस बार जहां भी छठ मनाइये, कुछ बेहतर करने की कोशिश और उम्मीद के साथ पर्व मनाइये.

इन सब पर आप अपनी राय कमेंट सेक्शन में ज़रूर लिखे और दोस्तों को टैग भी कर सकते हैं.