Woman Killed For Periods : अखबारों और सोशल मीडिया पर आए दिन हम न्यूज़ में बालिग़ युवकों या पुरुषों द्वारा की जाने वाली यौन हिंसा की ख़बरें पढ़ते रहते हैं. हमने कई ऐसी ख़बरें भी पढ़ी हैं, जहां आरोपी महिलाओं से रेप या हत्या करने की अलग-अलग वजह गिनाते हैं. हाल ही में, मुंबई के ठाणे में इंसानियत को शर्मसार कर देने वाला मामला सामने आया है. यहां एक 30 साल के सिक्योरिटी गार्ड ने अपनी 12 साल की बहन की हत्या कर दी. हत्या का कारण उसका बेबुनियाद शक़ था. दरअसल, उसकी बहन को पहली बार पीरियड्स आए थे. इस पर आरोपी को ये शक हुआ कि उसकी बहन ने किसी के साथ शारीरिक संबंध बनाए हैं. इसी शक़ में उसने बुरी तरह टॉर्चर करके मासूम की हत्या कर दी.

Woman Killed For Periods

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इस मासूम के साथ हुई घिनौनी हरकत पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर के द्वारा रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद सुर्ख़ियों में आई है. मगर उन घटनाओं का क्या, जिनकी हमें और आपको भनक भी नहीं लगती. देश में सेक्स एजुकेशन के अभाव में ना जानें कितनी हत्याएं होती हैं, जिन में मात्र कुछ ही हम तक पहुंचती हैं. कुछ समय पहले उत्तराखंड के एक स्कूल की घटना बहुत चर्चा में थी, जहां स्कूल की छात्राओं को पीरियड्स के समय स्कूल में इसलिए प्रवेश नहीं दिया गया, क्योंकि उनके स्कूल के रास्ते में कुछ मंदिर पड़ते थे. वहीं तमिलनाडू में एक लड़की को उस समय अपनी जान से हाथ धोना पड़ा, जब पीरियड्स के दौरान उसे अपने घर से दूर झोपड़ी में रहने के लिए मजबूर किया गया.

एक सर्वे बताता है कि केवल 1 प्रतिशत महिलाओं को ही उनकी माओं, डॉक्टर्स या सरकारी अभियानों के ज़रिये यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारी हासिल हुई. ऑल इंडिया एजुकेशनल एंड वोकेशन गाइडेंस इंस्टीट्यूट ने अपने सर्वे में पाया कि भारत में 42% से 52% युवा छात्रों को लगता है कि उनके पास सेक्स के बारे में पर्याप्त जानकारी है ही नहीं. ऐसा क्यों हैं, ये आंकड़े क्या बताने की कोशिश कर रहे हैं. ये आंकड़े यही दिखाते हैं कि सेक्स और अपने शरीर में होने वाले बदलावों से जुड़ी शर्मिंदगी के कितने गंभीर परिणाम हो सकते हैं.

क्यों सेक्स एजुकेशन है ज़रूरी?

मैं सेक्स एजुकेशन की कवायद इसलिए भी कर रही हूं, क्योंकि भारतीय समाज सेक्स और जेंडर पर बात करने से हिचकिचाने वाला देश है. यही कारण है कि मेरी जैसी तमाम ऐसी लड़कियां इस बात से रिलेट कर पाएंगी कि अगर स्कूलों या घरों में पीरियड्स के बारे में सही शिक्षा दी जाती, तो शायद वो मासूम लड़की आज ज़िन्दा होती. हमारे स्कूलों में कैसे किशोर उम्र के स्टूडेंट्स के साथ शिक्षकों, स्कूल प्रशासन का रवैया अचानक से बदल जाता था. लड़कियों को हिदायत दी जाती थी कि वे दुपट्टा ठीक से ओढ़ें, स्कर्ट की जगह सूट पहनें, लड़के-लड़कियों को हर तरीके से अलग रखा जाता था.

हमारा समाज ऐसे बुनियादी और संवेदनशील मामलों पर चुप्पी साधना ज्यादा सही समझता है. ये साल 2023 है और हम आज भी अपने समाज में जेंडर और सेक्स से जुड़े किसी भी मुद्दे पर बात करना उचित नहीं समझते. योनि और लिंग पर खुलकर बात नहीं कर सकते. ये इस चुप्पी का असर ही है, जो बच्चों को अपने अंदर हो रहे बदलावों के बारे में समझ नहीं आता. कभी-कभी ये चुप्पी और सवाल समय के साथ मन में इतने गहरे होते चले जाते हैं कि हिंसा का रूप ले लेते हैं.

ये एक पितृसत्तात्मक सोच ही है तो है कि हमारे समाज को इस बात का डर है कि अगर इस पर ख़ुलकर बात की जाने लगी, तो लोग अपनी यौनिकता का इज़हार खुल कर करने लगेंगे. इसके उदाहरण के तौर पर ख़ासकर लड़कियों, नॉन बाइनरी, एलजीबीटीक्यूएआई+ समुदाय के लोगों को बढ़ती उम्र के साथ जो उनकी टीनेज अवस्था में बदलाव होते हैं, उसे लेकर शर्मिंदा करवाया जाता है. खुले में गर्भनिरोधक या कॉन्डोम लेना, आपके पार्टनर का चयन, आप किसके साथ संबंध बनाते हैं उस पर कंट्रोल, प्रेग्नेंट होने पर प्रेग्नेंसी को जारी या ना जारी रखने पर शर्मिंदगी आदि. मैं आपको ऐसे तमाम उदाहरण दे सकती हूं, जहां हमें सेक्स से जुड़ी चुप्पी का सामना करना पड़ता है.

इसीलिए मेरा मानना है कि अगर स्कूलों में सेक्स एजुकेशन दी जाएगी तो हम उनकी जिज्ञासा को शांत कर सकेंगे. उनके शारीरिक परिवर्तनों के बारे में जागरूकता बढ़ेगी और ये सिखा सकेंगे कि यौन हिंसा गलत है, एक अपराध है. साथ ही कंसेंट जैसी बुनियादी बातें उनके जेहन में डाल सकेंगे. पीरियड्स और वर्जिनिटी जैसे ज़रूरी टर्म्स के बारे में सही शिक्षा दे सकेंगे. मौजूदा समय में बढ़ते अपराध और न्यायिक व्यवस्था को देखते हुए हमें सेक्स एजुकेशन की भी भरपूर कवायद करनी चाहिए.