राजा रवि वर्मा… एक ऐसी शख़्सियत जिनसे लोग मोहब्बत कर सकते थे, नफ़रत कर सकते थे, पर नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते थे. एक ऐसा राजा, जिसका कोई राज्य नहीं था और न ही अथाह दौलत और शोहरत थी, पर वो राजा था अपने काम के कारण.

एक चित्रकार, जिसकी लोकप्रियता इतनी की संचार के उत्तम साधन न होने के बावजूद, शायद ही कोई ऐसा होगा, जो उनका नाम न जानता हो.

देश के हर घर में देवी-देवताओं के चित्र आम हैं. लेकिन आज से करीब 100 साल पहले ऐसा नहीं था. देवी-देवताओं की जगह सिर्फ़ मंदिरों तक ही सीमित थी और वहां भी सभी को जाने की अनुमित नहीं थी. ऊंची जाति वाले ही मंदिर में प्रवेश कर सकते थे. घरों में भी अगर देवी-देवता होते, तो वो मूर्ति रूप में होते. कहने का मतलब है कोई चेहरा नहीं, सिर्फ़ पत्थर की एक आकृति.

आज कैलेंडर, किताबों, अख़बार आदि जगहों पर जो हिन्दू देवी-देवताओं की तस्वीरें और पेंटिंग्स दिखती हैं, वो राजा रवि वर्मा की ही देने है. वो पहले चित्रकार थे, जिन्होंने देवी-देवताओं को आम इंसानों की तरह दिखाया.

29 अप्रैल 1848 के दिन राजा रवि वर्मा, केरल के किलिमानूर में पैदा हुए. कुशल चित्रकार थे उनके चाचा और कहा जाता है कि वहीं से चित्रकारी का शौक़ रवि वर्मा को लगा.

विख्यात लोगों और परेशानियों का चोली-दामन का रिश्ता होता है. रवि वर्मा पर भी देश के अलग-अलग अदालतों में कई मुक़दमे चले. रवि वर्मा को इससे काफ़ी आर्थिक और मानसिक नुकसान हुआ.

रवि वर्मा पर ये भी आरोप लगे कि उनकी बनाई हुई लक्ष्मी और सरस्वती की पेंटिंग्स के चेहरे, उनकी प्रेमिका सुगंधा से काफ़ी मिलते-जुलते थे. 58 वर्ष की आयु में 2 अक्टूबर, 1906 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया.

उस महान चित्रकार द्वारा बनाई गई कुछ तस्वीरें-

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ऐसी प्रतिभा कम ही लोगों में होती है.