जासूस विजय, राजा-रैंचो, CID जासूसी कहानियों वाले ये सीरियल देखने में हमें बड़ा मज़ा आता था. दुख की बात है कि अब इनमें से कोई भी सीरियल टीवी पर नहीं आता.

जेम्स बॉन्ड की फ़िल्में अंग्रेज़ी में न सही, हिन्दी में ही देखने का उतावलापन सभी में होता था.

CID के कैरेक्टर्स न जाने कितनों के Ideal थे. बोले तो जासूसी का कीड़ा सभी को कभी न कभी काटता ही है.

ET Womens Forum

Humans of Bombay ने शेयर की है एक जासूस की कहानी. ये कहानी है देश की पहली महिला प्राइवेट जासूस की कहानी उन्हीं की ज़बानी.

‘मैं कॉलेज में थी जब मैंने अपना पहला केस सॉल्व किया. कॉलेज के पहले साल में पार्ट-टाइम क्लर्क के तौर पर काम करती थी. मेरी एक सहकर्मी ने मुझे उसके घर में हो रही लगातार चोरियों के बारे में बताया. उसे अपनी नई बहु पर शक़ था लेकिन कोई सबूत नहीं था. मैंने जांच करने का ऑफ़र दिया और वो राज़ी हो गई.

मैं हमेशा से जिज्ञासु थी, पापा CID में थे, तो जासूसी के थोड़े गुर मुझ में भी थे. मैंने जांच की और पाया कि उस औरत का बेटा ही चोरी कर रहा था. जब उससे पूछा गया, तो उसने चोरी की बात क़बूल कर ली. वहीं से मेरे करयिर की शुरुआत हो गई. मैं सिर्फ़ 22 साल की थी.

बातें फैलती गईं और लोग मेरे पास अपने केस लेकर आने लगे. मेरे पास मीडियाकर्मी भी आने लगे. मैं देश की पहली महिला जासूस बन गई. ये एक मुश्किल काम था और मेरे माता-पिता को भी काफ़ी बाद में पता चला.

SBS

मेरे पिता को पता चला, तो उन्होंने मुझे इस प्रोफ़ेशन से जुड़े ख़तरों के बारे में बताया, लेकिन अगर वो कर सकते थे तो मैं क्यों नहीं? मैंने अपना काम जारी रखा. मेरी शादी मेरे काम से ही हो चुकी थी और अपना परिवार शुरू करने की कोई इच्छा नहीं था.

मेरा सबसे मुश्किल केस था एक ‘मर्डर मिस्ट्री’. बेटे और पिता दोनों की ही हत्या कर दी गई थी, लेकिन ख़ूनी कौन था ये पता नहीं था. 6 महिनों तक मैंने अंडरकवर रहकर एक बाई के तौर पर शक़ के दायरे में घिरी महिला के साथ काम किया. वो बीमार पड़ी, तो मैंने उसकी सेवा करके उसका भरोसा जीता. एक बार मेरे रिकॉर्डर ने ‘क्लिक’ की आवाज़ कर दी और उसे शक़ हो गया. उसने मेरा बाहर जाना पूरी तरह से बंद कर दिया.

फिर एक दिन वो आदमी आया जिसे उसने हत्या के लिए Hire किया था. मुझे लगा यही मौक़ा है, मैंने अपने पैर को काटा और उनसे कहा कि मुझे महरम-पट्टी करवाने जाना है. मैं भाग के नज़दीकी STD Booth पर गई और अपने Client को फ़ोन किया. उसी दिन दोनों को गिरफ़्तार कर लिया गया. मैंने अब तक 80,000 से ज़्यादा केस सॉल्व कर लिए हैं. मैंने 2 किताबें लिखी हैं, कई मीडिया हाउसेज़ ने मेरा इंटरव्यू लिया है. मुझे कई बार धमकियां भी मिली हैं लेकिन मैं ईमानदारी से अपना काम करती आई हूं. मैं देसी Sherlock हूं, सही है न?’

ऐसी जांबाज़ महिला के जीवन पर बॉलीवुड फ़िल्म तो बननी ही चाहिए.