Chandrayaan-3 Mission: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने आख़िरकार 5 अगस्त 2023 को चंद्रमा के ऑर्बिट में चंद्रयान-3 को सफलतापूर्वक पहुंचा दिया है. दरअसल, इसरो ने भारत के तीसरे मानवरहित चांद मिशन ‘चंद्रयान 3’ द्वारा ली गई चंद्रमा की पहली तस्वीर जारी की हैं. चंद्रयान-3 को 22 दिन पहले चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने के लिए प्रक्षेपित किया गया था, जहां अब तक कोई भी देश नहीं पहुंचा है.
1- विक्रम लैंडर इस महीने के अंत में 23 अगस्त को चंद्रमा की सतह पर सॉफ़्ट लैंडिंग करेगा. इसरो के मुताबिक़, चंद्रयान-3 अब 1900 किलोमीटर प्रति सेकेंड की गति से चांद के चारों तरफ़ 170 km x 4313 km के अंडाकार ऑर्बिट में यात्रा कर रहा है.
2- चंद्रयान 3 द्वारा खींची गई चांद की तस्वीरों में आप बाएं तरफ़ गोल्डेन रंग का सोलर पैनल भी देख सकते हैं. सामने चंद्रमा की सतह और उसके गड्ढे दिख रहे हैं जो हर तस्वीर में बढ़ते जा रहे हैं.
3- इसरो के मुताबिक़, 9 अगस्त की दोपहर 1:45 बजे के क़रीब इसके ऑर्बिट को बदलकर 4 से 5 हज़ार किलोमीटर की ऑर्बिट में डाला जाएगा. इसके बाद हर तस्वीर में ‘चंद्रमा’ बड़ा और गहरा होता जाएगा.
4- 14 अगस्त की दोपहर इसे घटाकर 1000 किलोमीटर किया जाएगा. पांचवें ऑर्बिट मैन्यूवर में इसे 100 किलोमीटर की कक्षा में डाला जाएगा. इसरो के मुताबिक़, 17 अगस्त को प्रोपल्शन मॉड्यूल और लैंडर मॉड्यूल अलग होंगे.
5- 18 और 20 अगस्त को डीऑर्बिटिंग होगी. मतलब चांद के ऑर्बिट की दूरी को कम किया जाएगा. लैंडर मॉड्यूल 100 x 35 KM के ऑर्बिट में जाएगा. इसके बाद 23 अगस्त की शाम 5:47 बजे चंद्रयान की लैंडिंग कराई जाएगी.
6- चांद के ऑर्बिट को पकड़ने के लिए ‘चंद्रयान-3’ की गति को क़रीब 3600 किलोमीटर प्रतिघंटा के आसपास किया गया. क्योंकि चंद्रमा की ग्रैविटी धरती की तुलना में 6 गुना कम है. अगर ज़्यादा गति रहती तो चंद्रयान इसे पार कर जाता.
7- वैज्ञानिकों ने ‘चंद्रयान 3’ की गति को कम करके 2 या 1 किलोमीटर प्रति सेकेंड किया. इस गति की वजह से वो चंद्रमा के ऑर्बिट को पकड़ पाया. अब धीरे-धीरे चांद के चारों तरफ़ उसके ऑर्बिट की दूरी को कम करके दक्षिणी ध्रुव के पास पर लैंड कराया जाएगा.
8- चंद्रयान-3 इससे पहले 288 x 369 किलोमीटर की ट्रांस लूनर ट्रैजेक्टरी में यात्रा कर रहा था. अगर ये चांद का ऑर्बिट नहीं पकड़ पाता तो 230 घंटे बाद ये धरती के 5वीं कक्षा वाले ऑर्बिट में वापस आ जाता. इसरो इसे दोबारा चांद पर भेजने का दूसरा प्रयास कर सकते थे.