Dhirendra Brahmachari And Indira Gandhi: बाबा, धर्मगुरु आदि का भारतीय राजनीति पर हमेशा से ही असर रहा है. अक्सर ये देखा गया है कि वोट पाने के लिए बहुत से राजनेता किसी बाबा से नज़दिकियां बढ़ाते पाए गए. 80 के दशक में भारतीय राजनीति में एक बाबा बहुत बोलबाला था. 

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उसका रुतबा ऐसा था कि उनकी बात कोई टाल नहीं सकता था. यहां तक भी कहा जाता है कि कैबिनेट मंत्रियों की लिस्ट तक वो तय करते थे. ये बाबा कौन था और कैसे वो एक आम योग गुरु से सत्ता के गलियारों तक पहुंचा, चलिए आज आपको बताते हैं…

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बिहार के रहने वाले थे ये बाबा

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जिस बाबा के बारे में हम बात कर रहें हैं वो बिहार के मधुबनी के रहने वाले थे. धीरेंद्र ब्रह्मचारी. असली नाम तो था धीरेंद्र चौधरी, लेकिन लखनऊ से एक योग गुरु से योग की शिक्षा लेने के बाद ये ब्रह्मचारी बन गए. 1958 मे इन्होंने दिल्ली में भी योग सिखाना शुरू किया. इंदिरा गांधी के पिता यानी पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भी उनसे योग सीखा था. उन्होंने ही इंदिरा को इनसे योग सीखने की सलाह दी थी.

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कश्मीर में हुई थी इंदिरा गांधी से इनकी मुलाकात

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इंदिरा से इनकी पहली मुलाकात कश्मीर में हुई थी. पीएम और इंदिरा गांधी उनसे योग सीखते थे इसलिए उन्हें दिल्ली में भी अपना खुद का योग आश्रम खोलने में परेशानी नहीं हुई. इनके ‘विश्वायतन योग’ केंद्र का उद्घाटन पंडित जे. नेहरू ने ही किया था. पीएम हाउस में ये इंदिरा गांधी को योग सिखाते थे. एक बुक के मुताबिक, इंदिरा धीरेंद्र ब्रह्मचारी से योग सीख ख़ुश थीं और इसकी ज़िक्र उन्होंने एक विदेशी दोस्त को लिखे पत्र में भी किया था.

दिल्ली में था बाबा के नाम पर सरकारी बंगला

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उन्होंने इसमें लिखा था कि एक सुंदर योगी उन्हें योग सिखाता है. इसलिए उनकी योग में दिलचस्पी बढ़ गई है. धीरे-धीरे धीरेंद्र और इंदिरा की दोस्ती बढ़ती गई. यहां तक कि वो उनके कमरे में अकेले भी योग सिखाने लगता था. पीएम हाउस और इंदिरा के घर में उन्हें जाने से कोई रोकता नहीं था. उनके नाम पर एक सरकारी बंग्ला भी जारी किया था. 

इंदिरा मानती थीं उनकी सलाह

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यहां बहुते नेता और अभिनेता उनका आशीर्वाद लेने आते थे. यही नहीं जब इंदिरा गांधी पीएम बनी तो धीरेंद्र ब्रह्मचारी के नाम पर सैकड़ों एकड़ ज़मीन, कई लग्ज़री गाड़ियां और प्राइवेट जेट जारी हो गए. इनमें से कुछ तो विदेशों से मंगाए गए थे जिस पर कोई टैक्स नहीं लिया गया था. कहा जाता है कि इंदिरा अधिकतर राजनीतिक फैसले इनकी सलाह पर ही लेती थी. कोई इनकी शिकायत करता तो वो उस पर ध्यान भी नहीं देती थीं.

कहलाते थे इंडिया के रासपुतिन

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मां की तरह धीरेंद्र का जादू बेटे संजय गांधी पर भी चला. दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई थी. वो दोनो अक्सर प्लेन उड़ाने साथ जाया करते थे. कुछ लोगों का कहना है कि आपातकाल के समय धीरेंद्र ब्रह्मचारी ने इंदिरा को उनके दुश्मनों से लड़ने-बचने के कुछ तांत्रिक उपाय बताए थे. गांधी परिवार यानी सत्ताधारी परिवार के साथ उठ-बैठ होने के चलते एक बार तो उसे इंडिया का रासपुतिन भी कहा जाने लगा था.

अपनी मौत की भविष्यवाणी की थी

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मगर राजीव गांधी को उनका साथ पसंद न था. इसलिए वो उनसे दूर ही रहते थे. इंदिरा गांधी की मौत के बाद भी धीरेंद्र को राजीव के कारण ही उनके अंतिम यात्रा में शामिल नहीं होने दिया गया था. इंदिरा की मौत के बाद धीरेंद्र ने अपनी मौत की भविष्यवाणी कर दी थी. उसने का था कि जून 1994 में उसकी मौत हो जाएगी. हुआ भी ऐसा 9 जून को उसी साल एक प्लेन क्रैश में उसकी मौत हो गई थी. 

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आध्यात्मिकता के बल पर सत्ता का लाभ उठाने वाले धीरेंद्र ब्रह्मचारी की मौत पर न्यूयॉर्क टाइम्स में भी लेख छपा था. इससे ही आप अंदाजा लगा सकते हैं कि उस दौर में भारतीय राजनीति में उसकी कितनी साख थी.