Bahubali Rocket Chandrayaan 3 : भारत के स्पेस मिशन चंद्रयान-3 (Chandrayaan 3) को 14 जून को शक्तिशाली रॉकेट द्वारा लॉन्च किया गया. इस बाहुबली रॉकेट ने क़रीब साढ़े तीन साल पहले चंद्रयान-2 को भी लॉन्च किया था. ये रॉकेट आकार और क्षमता दोनों में इंजीनियरिंग की एक प्रभावशाली उपलब्धि है. ये लंबा और चौड़ा है और इसकी संपूर्णता को देखने के लिए ऊपर की ओर देखने की आवश्यकता होती है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा विकसित ये रॉकेट वाकई भारत के लिए ख़ास है.

अगर इस बाहुबली रॉकेट के वज़न की बात करें, तो ये 642 टन का है, यानी अगर 130 हाथियों को एक साथ खड़ा कर दें तो ये उनके भार के बराबर होगा. इसकी लंबाई 43.5 मीटर है, जो आइकॉनिक इमारत क़ुतुब मीनार से भी ऊंची है यानी 15 स्टोरी बिल्डिंग के बराबर. यही वजह है कि ये रॉकेट अपने नाम के हिसाब से बिल्कुल फ़िट बैठता है. इसरो ने इस रॉकेट की मदद से कई यान स्पेस में लॉन्च किए हैं.

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इसका ऑफिशियल नाम जियोसिंक्रोनस स्टैडिंग सेटेलाइट लॉन्च व्हिकल मार्क 3 यानि GSLV Mk3 है, पर इसरो के वैज्ञानिक इसे ‘बाहुबली’ कहकर बुलाते हैं. इस रॉकेट को LVM3 M4 भी कहा जाता है और ये पेट्रोल या डीज़ल से नहीं बल्कि एक स्पेशल ईधन से चलता है. ये रॉकेट, चन्द्रयान स्पेसक्राफ्ट जोकि 3.9 टन का है, उसे लूनार सतह तक कैरी करेगा.

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आइए आपको कुछ पॉइंट्स में इस रॉकेट की खासियतें बता देते हैं. (Bahubali Rocket Chandrayaan 3)

1-इसका वज़न 642 टन है, जो अब तक का सबसे भारी-भरकम लॉन्चर है.

2- 43.3 मीटर की ऊंचाई के साथ ये क़ुतुब मीनार को भी मात देता है.

3-इसके पास 4 टन की सैटेलाइट को स्पेस में ले जाने और 10 टन की सैटेलाइट को लो अर्थ ऑर्बिट में ले जाने की क्षमता है.

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4-इस रॉकेट में शक्तिशाली क्रायोजेनिक इंजन C25 लगा है, जिसे CE-20 से ऊर्जा मिलती है.

5-इसमें s200 रॉकेट बूस्टर हैं, जिसे विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर ने बनाया है, जिससे एक आसाधारण प्रक्षेपण क्षमता मिलती है.

6-GSLV Mk3 अब तक तीन बार अलग मॉडल में लॉन्च किया जा चुका है.

7-LVM3 को तीन चरणों के वाहन के तौर पर कांफिगर किया गया है. इसमें दो सॉलिड स्ट्रैप-ऑन मोटर्स (S200), एक लिक्विड कोर चरण (L110) और एक हाई थ्रस्ट क्रायोजेनिक ऊपरी चरण (C25) हैं.

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8-भारी कम्युनीकेशन सैटेलाइट को लॉन्च करते समय, ये रॉकेट केवल 974 सेकंड में 180×36,000 किमी की दूरी तय करके उनकी सफ़ल तैनाती सुनिश्चित करता है.

9-इसरो ने पहली बार इस रॉकेट को अंतरिक्ष में साल 2014 में टेस्टिंग के लिए भेजा था. इसके बाद इसमें कई बदलाव किए गए, जिसमें कुल 155 करोड़ रुपए की लागत आई.

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चंद्रयान-3 के अपनी यात्रा के दौरान, ये रॉकेट अंतरिक्ष अन्वेषण में भारत की शक्ति के प्रतीक के रूप में खड़ा है, जो इसरो के सफ़ल मिशनों और अभूतपूर्व उपलब्धियों की विरासत को जारी रखने का वादा करता है.