Ramji Swaminathan Makes Models For ISRO : नौकरी तो ज़्यादातर सभी लोग करते हैं. लेकिन ऐसे बहुत कम लोग हैं, जो अपने जुनून को अपने पेशे से जोड़ पाते हैं. इनमें से एक नाम 78 वर्षीय रामजी स्वामीनाथन का भी है. उन्होंने 74 साल की उम्र में मिनी मॉडल बनाने के अपने सपने को साकार किया है. उन्होंने ये साबित किया है कि अपने सपनों को हासिल करने की कोई उम्र नहीं होती.

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रामजी के इस जुनून को समझने के लिए हमें उनकी शुरुआती ज़िन्दगी के बारे में जानना बेहद ज़रूरी है. आइए आपको उनके बारे में बताते हैं.

पिता और दादा थे इंजीनियर

रामजी तमिलनाडु (Tamilnadu) के तंजावुर जिले के पझामनेरी नामक एक छोटे से गांव में जन्मे थे. उनके चार और भाई थे. हालांकि, सिर्फ़ रामजी ही इस गांव में अपने दादा-दादी के घर पले-बढ़े. उनके पिता इंजीनियर थे और पुणे में कार्यरत थे. गांव में इतनी सुविधाएं ना होने के चलते शुरुआती समय में रामजी के पास करने को ज़्यादा कुछ नहीं होता था. जब वो 8 साल के थे, तब उनके पिता उनके लिए एक मेकानो सेट लाए थे. उस दौरान उनके पिता का 300 रुपए वेतन हुआ करता था. अपने इसी वेतन से उन्होंने इस सेट को 40 रुपए में 1952 में ख़रीदा था और उसे ब्रिटेन से आयात किया था. यहीं से उनकी मॉडल बनाने की ओर रुझान बढ़ा था. उन्होंने इस सेट के साथ कई मॉडल बनाए, जिसे बनाने में वो घंटों बिता देते थे.

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दादा जी ने दिया बढ़ावा

जब उनके दादाजी ने मॉडल बनाने में रामजी की रुचि देखी, तो वो अगले साल उनके लिए कुछ लकड़ी के किट और ब्लॉक ले आए. उस दौरान वो 9 साल के थे, और इनकी मदद से घरों के मॉडल बनाते थे. इसके कुछ साल बाद उनके पिता जी उनके लिए इंजीनियरिंग की कुछ क़िताबें ले आए. उन्होंने 1961-62 में रामजी के लिए 2 रुपए में चार इंजीनियरिंग की क़िताबें खरीदीं. यहीं से उन्होंने ठान लिया कि वो इंजीनियरिंग ही करेंगे. रामजी के मुताबिक, “वे किताबें मेरी बाइबिल हैं, और वे और मेकैनो सेट अभी भी मेरे पास हैं.” अपनी रुचि के चलते वो पुणे (Pune) में मैकेनिकल इंजीनियरिंग के लिए चले गए.

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पिता चाहते थे रामजी की सरकारी नौकरी

अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कार्यशालाओं में लकड़ी का काम सीखा. ऐसा इसलिए क्योंकि उस दौरान मॉडल बनाने को एक व्यवसायिक काम नहीं माना जाता था. उनके पिता चाहते थे कि वो सरकारी नौकरी करें, लेकिन रामजी अपना ख़ुद का कुछ शुरू करना चाहते थे. 1968 में, उन्होंने पुणे में लकड़ी का व्यवसाय स्थापित किया. उन्होंने इंटीरियर डिज़ाइन और फर्नीचर बनाया और कुछ वर्षों के बाद बेंगलुरु चले गए, जहां उन्होंने अपना व्यवसाय जारी रखा. बेंगलुरु में उनके बिज़नेस ने रफ़्तार पकड़ी और वो फलता-फूलता चला गया. उनकी दुकान में लगभग 150 लोग काम करने लगे. हालांकि, कुछ वित्तीय कठिनाइयों के चलते उन्हें अपनी दुकान बंद करनी पड़ी. उन्होंने 2002 से इंटीरियर डिज़ाइन परामर्श देना शुरू कर दिया. हालांकि, अभी भी वो मॉडल ही बनाना चाहते थे. मैसूर जाने के बाद वो दिन के अंत में घर पर ट्रेनों और रॉकेटों के मिनिएचर मॉडल बनाकर आराम करते थे. समय के साथ उन्होंने सैंकड़ों मॉडल बना डाले.

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ऐसे बनाने लगे इसरो के लिए मॉडल

साल 2018 में रामजी ने इसरो के रॉकेट के लिए एक पीतल का मॉडल बनाया था. इसरो मुख्यालय में क्षमता निर्माण और सार्वजनकि आउटरीच टीम इस मॉडल से काफ़ी ख़ुश हुई. उन्होंने रामजी को मीटिंग के लिए बुलाया. वो चाहते थे कि रामजी उनके लिए और मॉडल बनाएं. इसके बाद 74 साल की उम्र में रामजी ने मैसूर में दोस्त मोइज़ वाघ की फैक्ट्री में एक जगह ली. इसके बाद से ही उनके सपनों को उड़ान मिली. ‘क्राफ्टिजन इंजीनियरिंग मॉडल’ के लिए पहला ऑर्डर इसरो से था. तब से इसरो ने रॉकेट मॉडल और किट के लिए हजारों ऑर्डर दिए हैं. रामजी ने चंद्रयान-1, 2, 3 से लेकर गगनयान तक इसरो के सभी मिशनों के मॉडल बनाए हैं. वो इसरो के अलावा विश्वविद्यालयों, स्कूलों और निजी डीलरों के लिए रॉकेट डिज़ाइन करते हैं. इस शौक से उनकी आज कमाई करोड़ों में है.

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