सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक वीडियो को देख हर किसी की आंखे नम हो जाएंगी. वीडियो में मंदिर की सीढ़ियों पर भीख़ मांगती एक बुज़ुर्ग महिला नज़र आ रही हैं, जिनका नाम पूर्णिमा देवी (Purnima Devi) बताया जा रहा है. क़रीब 90 साल की ये बुज़ुर्ग कोई आम महिला नहीं है, बल्कि मशहूर टीवी एक्ट्रेस की मां हैं. दामाद भी जाने-माने डायरेक्टर है. बेटी की बेटी यानी नातिन भी अभिनेत्री हैं. बावजूद इसके पूर्णिमा देवी को भीख़ मांगकर खाना पड़ रहा है. पुर्णिमा देवी की ये भरी दास्तां सुनकर हर किसी का दिल पसीज जाएगा. लेकिन ख़ुद की बेटी का दिल नहीं पसीज रहा.

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दरअसल, बिहार की राजधानी पटना के कालीघाट स्थित काली मंदिर की सीढ़ियों पर पूर्णिमा देवी नाम की ये महिला भीख़ मांगकर अपना गुज़ारा कर रही हैं. उम्र अधिक होने की वजह से वो चल-फिर भी नहीं पाती हैं. इसलिए सुबह से लेकर शाम तक मंदिर की सीढ़ियों पर बैठकर भीख़ मांगती हैं. पूर्णिमा देवी पिछले कई दशकों से काली मंदिर में हारमोनियम पर भजन गाया करती थीं. उनका अलग ही रुतबा हुआ करता था, आज भी मंदिर परिसर का हर व्यक्ति उन्हें मैडम कहता है, लेकिन आज उनकी दयनीय हालत देखी नहीं जाती.

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आख़िर कौन हैं पूर्णिमा देवी?

पूर्णिमा देवी पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग स्थित महाकाल मंदिर के पुजारी हरिप्रसाद शर्मा की बेटी हैं. इंटरमीडिएट की पढ़ाई के बाद सन 1974 में उनकी शादी बाराबंकी के मशहूर फ़िजिशियन डॉ. एच.पी. दिवाकर से हो गई थी. शादी के बाद पूर्णिमा और दिवाकर के एक बेटा और एक बेटी पैदा हुई. डॉक्टर होने के साथ-साथ पति दिवाकर को लिखने का भी शौक था. 70 के दशक में बॉलीवुड की कई फ़िल्मों में उनके गाने इस्तेमाल किए गए थे, लेकिन किसी और के नाम से. इनमें ‘शाम हुई सिंदूरी’ और ‘आज की रात अभी बाकी है’ गाने शामिल हैं.

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दरअसल, साल 1984 में संपत्ति को लेकर हुए किसी विवाद की वजह से बदमाशों ने डॉक्टर दिवाकर की गोली मारकर हत्या कर दी थी. पति की मौत के बाद पूर्णिमा अपना ससुराल और संपत्ति में हिस्सा छोड़कर पटना आ गईं और अपनी मौसी के यहां रहने लगीं. यहीं पर उन्होंने गीत-संगीत सीखा और रेडियो पर भी गाना गाने लगीं. इस दौरान पूर्णिमा अपनी कमाई से ही बच्चों का भरण-पोषण किया और धीरे-धीरे पटना के एक स्कूल में म्यूज़िक क्लास देने लगीं.

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पूर्णिमा देवी टीचिंग के अलावा सिंगिंग स्टेज शोज़ भी करती थीं. सन 1990 में झारखंड के गढ़वा से शुरू हुआ गाने का सफर 2002 तक बदस्तूर जारी रहा. बेटा भी ऑर्केस्ट्रा में मोहम्मद रफ़ी के गाने गाया करता था. लेकिन कुछ समय के बाद वो डिप्रेशन का शिकार हो गया और अब मानसिक रूप से विकलांग है. जबकि बेटी वंदना पटना से पढ़ाई-लिखाई करने के बाद मुंबई चली गई और टीवी सीरियल में हीरोइन बन गई.

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पूर्णिमा देवी की बेटी वंदना हीरोइन बनने के बाद कभी वापस नहीं लौटी, न ही कभी मां और भाई की खोज-ख़बर ली. पूर्णिमा देवी के जानने वालों का कहना है कि उनकी बेटी ‘सपने सुहाने लड़कपन के’ समेत कई टीवी सीरियलों में काम कर चुकी है. कुछ लोगों ने उन्हें मीडिया के माध्यम से उनकी मां की दयनीय हालत से अवगत कराने की कोशिश भी की, लेकिन बेटी ने ऐसी किसी महिला को जानने से इंकार कर दिया. बेटी अब मुंबई में अपनी पहचान छिपाकर रह रही है. बिहार से होने के बावजूद भी ख़ुद को गुजराती बताती है.

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आम नहीं, ख़ास महिला थीं पूर्णिमा देवी

पटना के काली मंदिर के पास दुकान लगाने वाले राज किशोर मुताबिक़, एक समय था जब पूर्णिमा मैडम की गिनती बिहार की बड़ी लोक गायिकाओं में होती थी. वो सरकार के बड़े-बड़े कार्यक्रमों में गाना गाया करती थीं. पिछले 13 साल से वो मंदिर परिसर में ही रहकर भजन गाया करती थीं. लेकिन पिछले कई महीने से उनकी तबियत ख़राब है. उनको चलने में भी दिक्कत है. इसलिए सीढ़ियों पर ही पड़ी रहती हैं.

पूर्णिमा देवी की हालत आज इतनी ख़राब हो चुकी है कि वो 2 वक़्त की रोटी के लिए भी तरस रही हैं. ऊपर से वो मानसिक तौर पर बीमार बेटे की देखभाल भी ख़ुद ही करती हैं. लाचारी की इस हालात में आज इनके साथ कोई नहीं है. इसलिए मंदिर की सीढ़ियों पर परिश्रम कर ख़ुद अपना पेट पालती हैं. आते-जाते लोग इन्हें कुछ रुपये दे देते हैं, जिससे वो अपने बेटे के भोजन का इंतज़ाम करती हैं.

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