ISRO ने तीसरा Moon Mission ‘Chandrayaan-3’ 14 जुलाई को क़रीब 2:35 बजे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में मौजूद Satish Dhawan Space Centre से लॉन्च कर दिया है. Chandrayaan-3 को चांद पर भेजने के लिए LVM-3 Launcher का इस्तेमाल किया गया. माना जा रहा ये क़रीब 40 दिनों की यात्रा के बाद 23 अगस्त तक चंद्रमा के South Pole के पास लैंड करेगा. (Why Chandrayaan-3 Needs Over 40 Days To Reach The Moon)

हालांकि, दूसरे देशों ने जो मून मिशन लॉन्च किए हैं, उन्हें चांद पर पहुंचने में इतना वक़्त नहीं लगा था. मसलन, चीन के Chang’e 2 और Chang’e 3 को पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी तय करने में केवल चार दिन लगे थे. सोवियत संघ का Luna-1 चांद के क़रीब पहुंचने वाला पहला मानवरहित मिशन था, जिसे यात्रा करने में केवल 36 घंटे लगे. वहीं, अमेरिका के Apollo-11 को चांद तक पहुंंचने में महज़ 4 दिन से थोड़ा ज़्यादा वक़्त लगा.

ऐस में लोग समझ नहीं पा रहे कि आख़िर क्यों फिर चंद्रयान-3 को लगभग 3.80 लाख किलोमीटर की दूरी तय करने में हफ्तों लग जाएंगे?

तो आइए जानते हैं क्यों चंद्रयान-3 को चांद पर लैंड होने में क़रीब 40 दिन का वक़्त लग रहा है-

क्यों 40 दिन में चांद पर पहुंचेगा चंद्रयान-3

इसका सीधा सा जवाब है कि भारत के रॉकेट इतने शक्तिशाली नहीं हैं कि दूसरे देशों की तरह चंद्रमा पर अंतरिक्ष यान सीधे भेज सकें. मसलन, अपोलो मिशंस में ट्रांसलूनार इंजेक्‍शन (TLI) नाम की ट्रैजेक्टरी का यूज़ हुआ था. मतलब लॉन्च व्हीकल ने पहले अपोलो स्पेसक्राफ्ट को धरती की कक्षा में पहुंचाया. फिर वहां से एक शक्तिशाली इंजन ने स्पेसक्राफ्ट को चांद के रास्‍ते पर डाला. इसके लिए छह मिनट तक रॉकेट को जलाए रखा गया और किसी गुलेल की तरह अपोलो 11 को तेजी से चांद की ओर रवाना किया गया था.

हालांकि, इसका मतलब ये नहीं है कि ISRO सीधे अपने यान को चंद्रमा तक नहीं भेज सकता. लेकिन NASA की तुलना में इसरो के प्रोजेक्ट सस्ते होते हैं. किफायती होते हैं. इसरो के पास नासा की तरह बड़े और ताकतवर रॉकेट नहीं हैं. जो चंद्रयान को सीधे चंद्रमा की सीधी कक्षा में डाल सकें. ऐसे रॉकेट बनाने के लिए हज़ारों करोड़ रुपए लगेंगे.

इसके बजाय इसरो एक घुमावदार मार्ग का उपयोग करता है, जो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का लाभ उठाता है. इसमें धरती की अलग-अलग कक्षाओं और इंजन बर्न्स का इस्तेमाल कर चंद्रयान-3 की स्पीड बढ़ाई जाएगी. जिस वक्त इसे धरती की ग्रेविटी से निकलने के लिए ताकत चाहिए होगी, उसी वक्त इंजन बर्न किया जाएगा. फिर ये चांद की कक्षा की ओर चल पड़ेगा. फिर ये चांद के चक्कर लगाता रहेगा.

100 किलोमीटर के सर्कुलर ऑर्बिट में नाचते हुए चंद्रयान-3 नीचे उतरेगा. फिर प्रपल्शन मॉड्यूल लैंडर से अलग हो जाएगा और लैंडर चांद की सतह की ओर बढ़ेगा. फिर आख़िर में चांद पर उतरेगा. इस मल्‍टी-स्‍टेप अप्रोच से वक़्त ज़रूर लगता है लेकिन कम ताकतवर लॉन्च वीइकल से भी काम चल जाता है. साथ ही, कम पैसों में बड़े लक्ष्य हासिल हो जाते हैं.

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