रॉबिन सिंह अपने क्रिकेटिंग करियर के अंतिम पड़ाव पर थे, भारतीय टीम को उनकी ही तरह एक ज़बरदस्त फ़ील्डर की ज़रूरत थी. मोहम्मद कैफ़ की कप्तानी में भारतीय टीम अंडर-19 वर्ल्ड कप की विजेता बनी थी. कैफ़ एक कंप्लीट पैकज लगते थे, उनमें भारतीय टीम का भविष्य ढूंढा जा रहा था. अच्छे बल्लेबाज़, बेहतरीन फ़ील्डर, सफ़ल कप्तान.
2000 में भारत अंडर-19 विश्व कप का विजेता बना और उसी साल कैफ़ ने अंतराष्ट्रिय क्रिकेट में भी कदम रखा. 2 मार्च 2000 में कैफ़ ने साउथ अफ़्रीका के ख़िलाफ अपना पहला टेस्ट मैच खेला था. तब कैफ़ की उम्र मात्र 20 वर्ष थी. शुरुआत अच्छी नहीं रही, कुछ ख़राब मैचों के बाद उन्हें टेस्ट टीम से कुछ सालों के लिए रुख़्सत कर दिया गया.
जनवरी 2002 में एकदिवसीय मैच में भी कैफ़ को मौका दिया गया. कैफ़ ने पहला मैच इंग्लैंड के ख़िलाफ़ खेला. ये वही साल था और सामने वही इंग्लैंड की टीम थी, जिसके साथ जुलाई में यादगार नेटवेस्ट सीरीज़ होने वाले थी.
नेटवेस्ट सीरीज़ फ़ाइनल
आप कैफ़ को शायद भूल जाएं, उनकी बेहतरीन फ़िल्डिंग भी न याद रहे लेकिन इस मैच को कभी नहीं भुला सकते. भारतीय क्रिकेट प्रेमियों के ज़ेहन में इस मैच को वर्ल्ड कप का दर्जा प्राप्त है.
इंग्लैंड ने पहले बल्लेबाज़ी करते हुए स्कोरबर्ड पर 326 रनों का विशाल लक्ष्य टांग दिया था. भारत ने पीछा करते हुए 145 रन पर अपने 5 महत्वपूर्ण विकेट गवां दिए थे. सचिन, सहवाग, गांगुली, ड्रविड लॉर्डस के पवेलियन में वापस जा चुके थे. पीच पर दो युवा बल्लेबाज़- युवराज सिंह और मोहम्मद कैफ़. इसके आगे क्या हुआ, ये बताने की ज़रूरत नहीं है, बस इतना जान लीजिए कि कैफ़ अंत तक पिच पर खड़े रहे और भारत ने उस मैच को 3 गेंद शेष रहते जीत लिया था, जिसके बाद ‘दादा’ ने अपनी टी-शर्ट उतारी थी.
कैफ़ और युवराज की जोड़ी
अंडर 19 से शुरु हुई कैफ़ और युवराज की जोड़ी कई सालों तक अंतरराष्ट्रीय मैचों में देखने को मिली. जब प्वॉइंट पर युवराज और कवर पर कैफ़ खड़े हो जाते थे, तब किसी बल्लेाज़ के लिए क्षेत्ररक्षण की उस दीवार को भेद पाना मुश्किल हो जाता था.
ये मान लीजिए कि दोनों सिर्फ़ अपनी फ़िल्डिंग के दम पर सामने वाली टीम के 30-40 रन कम कर देते थे. विश्व क्रिकेट में उस वक़्त सिर्फ़ साउथ अफ़्रीका और ऑस्ट्रेलिया की फ़ील्डिंग की बातें होती थी. भारत इन युवा खिलाड़ियों के दम पर नया-नया रुतबा हासिल कर रहा था.
कैफ़ की फ़ुर्ती के सभी कायल थे, लपक कर गेंद पकड़ने के बाद सधा हुआ थ्रो बल्लेबाज़ को हमेशा डराए रहती थी.
ग़लती कहां हुई.
अभी तक कैफ़ के करियर का स्वर्णिम दौर चल रहा था, बल्लेबाज़ी में जो कमी रह जा रही थी, उसे वो अपनी फ़ील्डिंग से पूरी कर देते थे लेकिन इस बीच टीम का प्रबंधन बदल गया, गांगुली कप्तान नहीं रहे, कोच जॉन राइट भी जा चुके थे. कैफ़ ने साक्षात्कार में ख़ुद भी कहा है कि नए मैनेज़मेंट को कैफ़ के ऊपर भरोसा नहीं था. कोच ग्रेग चैपल उनकी बैटिंग और फ़ील्डिंग तकनीक पर सवाल उठाने लगे, जिससे वो दबाव में आते चले गए. कैच भी छूटने लगे और टीम से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.
आप आंकड़ों पर नज़र दौड़ाएंगे, तो आपको आश्चर्य होगा कि घरेलु मैचों में दस हज़ार से भी ऊपर रन बनाने वाला बल्लेबाज़ अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में फ़ेल कैसे हो गया. इसकी एक मुख्य वजह है कैफ़ का बैटिंग नंबर. जहां घरेलु मैचों में कैफ़ तीसरे नंबर के बल्लेबाज़ थे वहीं अंतरराष्ट्रीय मैचों में उन्हें छठे, या सातवें नंबर पर उतारा जाता था. जो उनके बैटिंग स्टाइल के अनुकूल नहीं था.
करियर का अंत
7 साल के भीतर करीयर में ढेरों उतार-चढ़ाव देखने वाले मुहम्मद कैफ़ ने अपना अंतिम अंतरराष्ट्रीय मैच 29 नवंबर,2006 को साउथ अफ्रीका के खिलाफ़ खेला. इस बीच कैफ़ 125 एकदिवसीय और 13 टेस्ट मैच खेल चुके थे. यहां पर उनका क्रिकेट से नाता नहीं टूटा, वो लगातार घरेलु क्रिकेट खेलते रहे, टीम में वापसी की उम्मीद बची हुई थी.
इस साल 13 जुलाई को मुहम्मद कैफ़ ने क्रिकेट के सभी प्रारूपों से सन्यास ले लिया.और छत्तिसगढ़ की रणजी टीम के साथ नई भूमिका में जुट गए.