गोल्ड कोस्ट में हो रहे 2018 के राष्ट्रमंडल खेलों में भारत को पहला स्वर्ण पदक दिलवाने के बाद, ‘मीराबाई चानु’ नाम से हर भारतीय परिचित हो गया है.

Weightlifting के 48 किलोग्राम वर्ग में अपने वज़न से भी ज़्यादा भार उठाकर, मीराबाई ने स्वर्ण जीतने के साथ ही विश्व रिकॉर्ड भी स्थापित किया.

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स्नैच कैटगरी में पहले उन्होंने 80 किलो, फिर 84 किलो और तीसरे प्रयास में 86 किलो भार उठाकर स्वर्ण पदक अपने नाम किया. 86 किलोग्राम भार उठाकर मीरा ने कॉमनवेल्थ खेलों में भी नया रिकॉर्ड स्थापित किया.

स्नैच कैटगरी के बाद क्लीन एंड जर्क राउंड में मीरा ने पहले प्रयास में 103 किलोग्राम भार उठाया. दूसरे प्रयास में, कॉमनवेल्थ गेम्स के अपने रिकॉर्ड को तोड़कर उन्होंने 107 किलोग्राम भार उठाया. तीसरे प्रयास में उन्होंने दूसरों से बढ़त हासिल करते हुए, 110 किलोग्राम भार उठाया.

कॉमनवेल्थ गेम्स की ऑफ़िशियल ट्विटर हैंडल से ट्वीट कर जानकारी दी गई कि मीराबाई ने 6 प्रयास में तोड़े 6 रिकॉर्ड.

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2018 के पद्म पुरस्कारों में पद्म श्री पाने वाली 23 वर्षीय मीराबाई चानू भी हैं.

2016 के ओलंपिक खेलों में मीराबाई क्वालिफ़ाई करने के बावजूद पदक नहीं जीत पाई थीं. जिसके बाद वे अवसाद ग्रसित हो गईं थीं और खेल को हमेशा के लिए अलविदा कहने का भी मन बना लिया था.

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क़िस्मत को शायद कुछ और ही मंज़ूर था.

मीरा ने Anaheim हुए World Championships ने 194 किलोग्राम(स्नैच में 85 किलो और क्लीन एंड जर्क में 109 किलो) उठाकर न सिर्फ़ स्वर्ण पदक जीता बल्कि एक नया वर्ल्ड रिकॉर्ड भी स्थापित किया.

कहते हैं पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं, कुछ ऐसा ही हुआ मीरा के साथ भी. इम्फ़ाल से 20 किलोमीटर दूर एक गांव, Nongok Kakching में जन्मी मीराबाई 6 भाई-बहनों में सबसे छोटी हैं. मीरा अपने भाई Saikhom Sanantomba Meitei के साथ पहाड़ों पर लकड़ियां चुनने जाती थीं.

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PTI से बातचीत में Sanatomba ने बताया,

एक दिन की बात है, मैं लकड़ियों की एक गठरी नहीं उठा पा रहा था पर मीरा ने उसे आसानी से उठा लिया और 2 किलोमीटर दूर स्थित हमारे घर तक ले गई. उस वक़्त वो सिर्फ़ 12 साल की थी.

Sanatomba ने बचपन की बात याद करते हुए बताया,

मैं फ़ूटबॉल खेलता था और मैंने बचपन से ही उसमें कुछ कर गुज़रने की ललक देखी थी. उसने Weightlifting Join कर लिया. वो Pressurized नहीं होती.
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मीराबाई के पिता, Saikhom Ongi Tombi Leima इम्फ़ाल में पीडब्लयूडी डिपार्टमेंट में कार्यरत हैं और उनकी मां, Saikhom Kriti Meitei गांव में ही एक दुकान चलाती है.

Sanatomba ने ये भी बताया कि परिवार में आर्थिक तंगी होने के बावजूद मीराबाई ने बहुत बड़ा मकाम हासिल किया है. उनके परिवार में किसी ने नहीं सोचा था कि मीराबाई अपने खेल में इतना आगे जायेंगी.

2014 में ग्लासगो में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक जीतने के बाद मीराबाई की ज़िन्दगी बदल गई.

मीराबाई की जीत पर मणिपुर के मुख्यमंत्री ने उन्हें 20 लाख की राशि पुरस्कार स्वरूप देने की घोषणा की है.

मीराबाई ने एक बार फिर साबित किया कि सपने अगर सच्चे हों, तो कोई भी मुश्किल रास्ता नहीं रोक सकती.

Source- Times Now