हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के बाद भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान धनराज पिल्लै भारत के दूसरे सबसे शानदार हॉकी खिलाड़ी रहे हैं. धनराज पिल्लै का जन्म 16 जुलाई, 1968 को पुणे के पास खड़की में हुआ था. उनके पिता यहीं की एक ऑर्डिनेंस फ़ैक्ट्री की देखभाल का काम करते थे. धनराज को बचपन से ही हॉकी से प्यार था. लेकिन ग़रीबी के चलते उस समय उनके पास हॉकी स्टिक भी नहीं हुआ करती थी. धनराज ने अपने बड़े भाई के साथ टूटी लकड़ियों और फ़ेंकी हुई हॉकी गेंदों के साथ हॉकी खेलना शुरू किया.

करियर की शुरूआत

वक़्त ने करवट बदली और धनराज के बड़े भाई रमेश हॉकी सीखने मुंबई आ गए. यहां रमेश को आरसीएफ़ की ओर से मुंबई लीग में खेलने का मौका मिला. बाद में रमेश ने भारत के लिए भी कुछ अंतर्राष्ट्रीय मैच खेले. अस्सी के दशक में धनराज अपने भाई रमेश के पास मुंबई चले आये. उनके मार्गदर्शन में ही धनराज पिल्लै ने हॉकी सीखी. इसके बाद महिंद्रा एंड महिंद्रा क्लब से कई साल खेलने के बाद उनको साल 1989 में भारत के लिए खेलने का मौका मिला.
गोल्स का सही रिकॉर्ड मौजूद नहीं

धनराज पिल्लै ने उस वक़्त अंतर्राष्ट्रीय हॉकी में कदम रखा जब भारत को दूसरे ध्यानचंद की तलाश थी. बस यहीं से भारत के तेज़ तर्रार स्ट्राइकर धनराज पिल्लै का दौर शुरू हुआ. साल 1989 से लेकर साल 2004 तक धनराज टीम के अहम खिलाड़ी होने के साथ-साथ कप्तान भी बने. इस बीच उन्होंने कुल 339 मैच खेले. जबकि भारतीय हॉकी फ़ेडरेशन के मुताबिक़ उनके पास धनराज के गोल्स का सही रिकॉर्ड मौज़ूद नहीं है. लेकिन धनराज का मानना है कि उन्होंने 170 गोल किये थे.
अचीवमेंट

धनराज पिल्लै भारत के एकमात्र ऐसे हॉकी खिलाड़ी हैं, जिन्होंने चार बार 1992, 1996, 2000 और 2004 ओलंपिक में हिस्सा लिया. जबकि वो 1995, 1996, 2002, और 2003 में हुई चैंपियंस ट्रॉफ़ी का भी हिस्सा रहे. साथ ही 1990, 1994, 1998, और 2002 में हुए एशियन गेम्स में भी धनराज पिल्लै देश के लिए खेले. भारत ने उनकी कप्तानी में साल 1998 और 2003 में एशियन गेम्स का ख़िताब और एशिया कप भी जीता था. जबकि साल 2002 चैंम्पियंस ट्रॉफ़ी और बैंकाक एशियन गेम्स में धनराज प्लेयर ऑफ़ द टूर्नामेंट बने थे.
अवॉर्ड्स

धनराज पिल्लै को उनके शानदार खेल के लिए साल 1995 में ‘अर्जुन पुरस्कार’ और साल 1999 में ‘राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार’ से नवाज़ा गया. वहीं साल 2001 में उन्हें ‘पद्मश्री’ से भी सम्मानित किया गया.

लेकिन इतनी उपलब्धियों के बावज़ूद हॉकी के इस मास्टर को आज भी वो सम्मान नहीं मिला, जो ध्यानचंद को दिया जाता है. इसके बाद भी धनराज हमेशा विनम्र बने रहते हैं. जब कभी भी किसी खिलाड़ी को उनकी ज़रूरत होती है, वो बेझिझक उनकी मदद को तैयार रहते हैं. आज भारतीय टीम में खेल रहे कई खिलाड़ी उन्हें अपना रोल मॉडल मानते हैं. वो सिर्फ़ भारत के लिए ही नहीं, बल्कि कई विदेशी क्लबों के लिए हॉकी खेल चुके हैं.

मेजर ध्यानचंद को अपना आदर्श मानने वाले धनराज का मानना है कि उनके बड़े भाई ने उनका करियर बनाने के लिए ख़ुद के करियर को दांव पर लगा दिया था. वो आज जो कुछ भी हैं अपने बड़े भाई की बदौलत हैं. वहीं ज़िंदगी में क़ाबिल बनने के लिए वो हमेशा अपनी मां का शुक्रिया अदा करते हैं.
धनराज पिल्लै और कॉन्ट्रोवर्सी

धनराज पिल्लै हमेशा से ही अपनी बेबाक छवि के लिए जाने जाते रहे हैं. वो कई बार हॉकी प्रबंधन के ख़िलाफ़ अपना रोष प्रकट कर चुके हैं. एक खिलाड़ी के तौर पर उनको इसका खामियाज़ा भी भुगतना पड़ा.
1- बैंकाक एशियाई खेलों में प्लेयर ऑफ़ द टूर्नामेंट होने के बावजूद भारतीय टीम के लिए उनका चयन नहीं किया गया था. इसके लिए आधिकारिक कारण दिया गया था कि धनराज और 6 अन्य वरिष्ठ खिलाड़ियों को विश्राम दिया गया है. लेकिन इसके पीछे असल कारण कम फ़ीस दिया जाना बताया गया था.
2- धनराज ने साल 1998 में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ श्रृंखला से पहले विदेशी दौरों पर टीम को कम भत्ता दिए जाने का विरोध भी किया था.

3- मैच फ़ीस का भुगतान समय से न करने और जीत के बाद टीम को उचित सम्मान न देने के लिए भी वो कई बार प्रबंधन के खिलाफ़ अपनी नाराज़गी ज़ाहिर कर चुके हैं.
4- साल 2004 एथेंस ओलंपिक में उनके आख़िरी मैच में टीम के कोच ने उनको सिर्फ़ 2 मिनट्स 55 सेकंड ही खेलने का मौका दिया. कोच के इस फ़ैसले से धनराज बेहद निराश हो गए थे.

5- ‘राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार’ प्राप्त करने के दौरान पिल्लै ने टिप्पणी की, ‘ये पुरस्कार कुछ कड़वी यादों को मिटाने में मदद करेगा.’
6- हाल के कुछ सालों में हॉकी प्रबंधन में हुए बदलाओं के बाद उनको भारतीय हॉकी टीम का मैनेजर नियुक्त किया गया है.

धनराज पिल्लै ने भारत को कई अहम मौकों पर जीत दिलाई है. वो हर भारतीय के लिए एक महान खिलाड़ी थे, महान खिलाड़ी हैं और हमेशा महान खिलाड़ी रहेंगे.