एक बात तो तय है कि हमारे देश में क्रिकेट को छोड़ कर दूसरे खेलों की हालत बहुत ही खस्ता है. य़कीन न हो तो किसी दूसरे खेल के खिलाड़ी से बात कर के देख लीजिएगा. सच्चाई सामने आ जाएगी. इसका जीता-जागता उदाहरण हैं बॉक्सर कमल कुमार, जो ज़िला स्तर पर कई मेडल जीत चुके हैं. बावजूद इसके वो आजकल कूड़ा उठाकर अपनी रोज़ी-रोटी कमाने के लिए मजबूर हैं.

कमल कुमार नब्बे के दशक के बॉक्सर हैं. उन्होंने 1993 में यूपी ओलिंपिक्स में ब्रॉन्ज़ मेडल, साल 2006 में स्टेट गेम्स में भी ब्रॉन्ज़ और 2011 में इंटर यूनिवर्सिटी गेम्स में सिल्वर मेडल जीता था.

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एक टैलेंटेड बॉक्सर होने के बावजूद उन्हें अपनी रोज़ी-रोटी के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है. इनकी कहानी जान कर आपको दुख हुआ होगा, लेकिन हमारे खिलाड़ियों के साथ सिस्टम द्वारा ऐसा व्यवहार करना कोई नई बात नहीं है. एक बार खिलाड़ियों के गोल्डन दिन चले जाते हैं, तो उन्हें कोई नहीं पूछता.

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कमल भी उन्हीं में से एक हैं. इस बारे में कमल का कहना है कि उन्होंने खेल कोटे से नौकरी पाने के लिए सरकारी दफ़्तरों के कई चक्कर काटे, लेकिन हर बार उन्हें खाली हाथ ही लौटा दिया गया. कमल का मानना है कि उनके गुस्से के चलते वो बॉक्सिंग में अपना करियर संवार न सके. वो बाद में बॉक्सिंग कोच बनना चाहते थे, लेकिन उनका ये ख़्वाब भी अधूरा रह गया.

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फ़िलहाल वो दूसरे के घरों का कचरा उठाकर किसी तरह गुज़र बसर कर रहे हैं. उनका कहना है कि वो अपने बेटे को भी बॉक्सर बनाना चाहते हैं. बॉक्सिंग में बेटे का करियर बनाने के लिए उन्होंने सरकार से लोन लेने की अर्जी दी है. लेकिन उसका भी अभी तक कोई जवाब नहीं आया है.

आशा है कि खेल मंत्रालय उनकी तरफ़ ध्यान देगा और उनकी उचित सहायता करेगा. 

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