हम यूपी वाले बड़े पीड़ित लोग हैं. हमारी भावनाओं को देश में कोई नहीं समझता. ऊपर से ये मुए बॉलीवुड वाले हमारे ख़िलाफ़ अलग लेवल का स्टीरियोटाइप फैलाते हैं. मिर्जापुर बनाए, तो गालियां और गुंडई में हमें लपेट दिए. हर फिलम में हमें या तो कट्टा चलाते दिखाते हैं या देश. जबकि हम दोनों ढंग से चलाना नहीं जानते.
अब देखिए सोशल मीडिया पर नया रायता फैल गया है. भारत-न्यूज़ीलैंड के टेस्ट मैच में हमारा एक कनपुरिया बालक चर्चा का केंद्र बन गया. बेचारा शांति से लड़की के बगल में बैठा गुटखा चबा रहा था, तो लोग उसके मज़े लेने लगे.
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लड़के को तो छोड़िए इंटरनेट के इन जुल्मी लोगों ने तो शहर को भी नहीं छोड़ा. कह रहे कि ‘कानहीपुर में मैच अहै आज’. अजी दुनिया को पता है, इसमें आपको भोंपू बनने की क्या तड़प है.
ऊपर से मीम पर मील अलग पेल रहे. कह रहे मुंह से सुपारी निकालकर बात कर.
😅 #INDvNZ pic.twitter.com/JpRSwzk8RQ
— Wasim Jaffer (@WasimJaffer14) November 25, 2021
अबे पहले तो अपना भाई सुपारी खा नहीं रहा. दूसरा, अभी अगल-बगल कहीं थूक दे, तो कानपुर वालों पर यही लोग गरियंधा होने का टैग लगा देंगे. भइया शराफ़त किसी को नहीं दिख रही कि हमारा मासूम नौजवान पूरे मैच में गुटखा थूकने के बजाय कितनी बार लील चुका होगा.
कुछ तो इतने ख़ुराफ़ाती लोग हैं, बोल रहे कि कानपुर को कमला पसंद है.
कानपुर को कमला पसंद है और कंटेट वायरल है 😅 pic.twitter.com/LomZd0tafY
— Yours Truly (@UrsTruly_ok) November 25, 2021
इससे बेशर्मी की बात कुछ नहीं हो सकती. एक पूरे शहर के लिए आप कह रहे कि उन्हें कमला पसंद है. अमा, काहे कमला, हमें रजनीगंधा भी पसंद है, रॉयल भी खाते हैं, श्यामबहार और पुकार भी एक ज़माने में हमारा कम फ़ेवरेट नहीं रहा है.
और आख़िर गुड्डू को गुटखा लाने को बोल भी दिया होता, तो इसमें इतना हंसने वाली क्या बात है?
“Abe Guddu, Guthka sath leke aana, idhar mehenga bech rahe.” pic.twitter.com/9HyYg33S1U
— Silly Point (@FarziCricketer) November 25, 2021
इस बात से कौन इन्कार करेगा कि स्टेडियम में सामान महंगा मिलता है. ऊपर से ससुरा टेस्ट मैच, चलता भी देर तक है. 20-20 होता तो 20-30 पुड़िया में मामला निपट जाता है. अब घंटों बैठना है तो आदमी अपना जुगाड़ भी न करे.
फिर मैच भी रखा, तो ग्रीन स्टेडियम में. नाम भी ग्रीन, घास भी ग्रीन, ऐसे में कनपुरिया बुद्धि सोची कुछ डिफ़रेंट करने को. तो बस कर लिया मुंह लाल. लेकिन नहीं, दुनिया अब उसी की लाल करने पर आमादा है.
आख़िर में बस इतना कहना चाहूंगा कि प्लीज़ कानपुर हो या यूपी का कोई शहर, हमारे लिए ऐसी सोच मत रखिए. और न ही इस तरह मज़ाक उड़ाइए. वी डोन्ट लाइक दिस एट ऑल. हमसे जितना हो सकता है, हम कर रहे. राफ़ेल विमान नहीं बना सकते तो क्या, राफ़ेल गुटखा तो बनाए. और फिर वैसे भी लाल रंग प्यार का निशानी होता है, और हमारे कनपुरिये हमेशा मोहब्बत अपनी ज़ुबान पर लेकर चलते हैं.
समझे कि नहीं, वरना लगाएं एक कंटाप!